मानसून के बादलों से भले ही देश में भयावह जल संकट की स्थिति फ़िलहाल ढँक गयी हो, लेकिन दुनिया में 13 सबसे बदतर देशों में भारत पूरी तरह उघड़ गया है। हाल ही में आई एक रिपोर्ट में इसका ख़ुलासा हुआ है। जल संकट की गंभीरता का अंदाज़ा इससे भी होता है कि प्रधानमंत्री मोदी ने 15 अगस्त को लाल क़िले से अपने भाषण में गंभीर जल संकट की ओर इशारा किया और पानी का 23 बार ज़िक्र किया। उन्होंने जल जीवन मिशन के लिए 3.35 लाख करोड़ रुपये की घोषणा की। लेकिन क्या इससे सब ठीक हो जाएगा
पिछले महीने पूरा देश पानी की किल्लत से जूझ रहा था। चेन्नई में पानी के संकट से सम्बंधित समाचार लगातार प्रकाशित होते रहे। प्रधानमंत्री भी पानी की कमी पर चर्चा करते रहे और हवाई योजनाएँ बनाते रहे। इसके बाद देश के अधिकतर हिस्सों में मानसून की बारिश शुरू हो गयी और अब पानी की समस्या पर वैसी चर्चा नहीं की जा रही है। अगले वर्ष यह समस्या फिर उठ खड़ी होगी तब फिर कुछ समय के लिए चर्चा होगी। हमारे देश में समस्याओं का ऐसे ही समाधान होता है।
पानी की समस्या अब विकट होती जा रही है। 5 अगस्त को अमेरिका स्थित वर्ल्ड रिसोर्सेज़ इंस्टिट्यूट द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व में 17 ऐसे देश हैं जहाँ पानी का गंभीर संकट है और भारत उनमें से एक है। जल संकट के सन्दर्भ में इन 17 देशों में भारत का स्थान 13वाँ है। इस सूची में अन्य कुछ देशों के नाम हैं– क़तर, इज़राइल, लेबनान, सउदी अरब, ईरान, अफ़ग़ानिस्तान और बोत्सवाना। इस रिपोर्ट का आधार किसी देश या क्षेत्र में कुल उपलब्ध पानी और कुल ख़पत किये जाने वाले पानी की मात्रा का अनुपात है।
भारत के अधिकतर क्षेत्रों में कुल उपलब्ध पानी में से प्रतिवर्ष 80 प्रतिशत तक पानी का उपयोग कर लिया जाता है और इसमें से 70 प्रतिशत का उपयोग कृषि में किया जाता है, लगभग 50 करोड़ की सम्मिलित आबादी वाले 10 राज्य लगातार सूखे की चपेट में रहते हैं। रिपोर्ट के अनुसार पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, चंडीगढ़, गुजरात, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में पानी की भयानक कमी है। पंजाब के कुछ क्षेत्रों में कुछ वर्ष पहले तक भू-जल स्तर 45 मीटर नीचे था, जो अब बढ़कर 160 मीटर तक पहुँच गया है।
सरकार के लिए पानी कोई मुद्दा नहीं
पिछले वर्ष नीति आयोग ने देश में पानी की कमी से संबंधित एक विस्तृत रिपोर्ट पेश की थी, लेकिन ‘सबका विकास’ का नारा लगाने वाली सरकार के लिए पानी कोई मुद्दा नहीं बना। ज़मीनी स्तर पर कोई काम नहीं किया गया और अब हालत यह है कि पानी की कमी से पूरा देश त्रस्त है। चेन्नई में पानी का संकट तो मीडिया दिखा रहा था, लेकिन कोयम्बतूर में पानी के संकट के विरोध में आन्दोलन करते 550 से अधिक लोग पुलिस हिरासत में भेजे जाते हैं। महाराष्ट्र में अनेक गाँव में पानी के संकट के कारण लोग कहीं और चले गए हैं। राजस्थान में भी लोग पलायन के लिए मजबूर हैं। दिल्ली के भी अनेक क्षेत्रों में हफ़्ते में एक बार पानी की आपूर्ति की जा रही है। गुरुग्राम में लोग हज़ारों रुपये प्रतिमाह पानी के प्राइवेट टैंकर के लिए ख़र्च कर रहे हैं। तंजावूर में पानी के मुद्दे पर लड़ाई में एक 33 वर्षीय व्यक्ति की हत्या कर दी गयी। मध्य प्रदेश में पानी के टैंकर की लूट के मामले इतने बढ़े कि अब टैंकर के साथ पुलिस तैनात रहती है। उत्तर भारत में पानी की कमी के कारण लाखों लोग पलायन के लिए मजबूर हैं। इन सबके बीच सरकार सो रही है।
मध्य प्रदेश के पंजापुर में बड़ी संख्या में बन्दर हैं। वहाँ पानी के संसाधन कम हैं। भीषण गर्मी में जब ये संसाधन भी सिकुड़ने लगे तब बन्दर भी पानी के उपयोग के लिए प्रतिस्पर्धी हो गए। वहाँ के वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार हालत यहाँ तक पहुँच गयी कि बड़े झुंडों के बंदरों ने अपेक्षाकृत छोटे झुंडों पर पानी पीने को लेकर हमला शुरू कर दिया। इन हमलों में 15 से अधिक बन्दर अपनी जान गँवा बैठे।
60 करोड़ लोग पेयजल से वंचित
हमारे देश में 60 करोड़ आबादी पेयजल की आपूर्ति की सुविधा से वंचित है और 10 करोड़ आबादी को पीने का साफ़ पानी नहीं मिलता। 2018 के आरम्भ में जब दक्षिण अफ़्रीका के केपटाउन में ‘डे ज़ीरो’ घोषित किया गया था, तब हमारे देश में भी पानी की कमी पर बहुत चर्चा की गयी थी। ‘डे ज़ीरो’ वह अवस्था है, जब किसी क्षेत्र या शहर के पानी के सभी संसाधन पूरी तरह से पानी-विहीन हो जाएँ।
समस्या ख़त्म नहीं होती और अनदेखी के कारण लगातार विकराल होती जाती है, पानी के साथ यही हो रहा है। जिस डे ज़ीरो की बात केपटाउन में की गयी, वह उसके बाद शिमला भुगत चुका है और बेंगलुरु भी। हालात तो ये हैं कि देश की 10 करोड़ से अधिक आबादी पिछले कुछ वर्षों से डे ज़ीरो वाली स्थिति में ही है। सरकारों को इससे कोई मतलब नहीं है और अब वर्ष 2020 तक देश के 21 शहर, जिनमें दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई और हैदराबाद जैसे शहर शामिल हैं, अपना पूरा भू-जल समाप्त कर चुके होंगे और इससे 10 करोड़ से अधिक आबादी पानी की कमी से जूझेगी।
कुप्रबंधन ज़िम्मेदार
हमारे देश का हास्यास्पद तथ्य तो यह है कि पानी की कमी का कारण जल संसाधनों की कमी नहीं है, बल्कि इसके लिए पानी की बर्बादी और इसका कुप्रबंधन ज़िम्मेदार है। जहाँ जल आपूर्ति की जाती है वहाँ लगभग एक-तिहाई पानी आपूर्ति के दौरान ही व्यर्थ हो जाता है। वाटरऐड नामक संस्था की वर्ष 2018 की रिपोर्ट के अनुसार हमारी 12 प्रतिशत आबादी वर्तमान में डे ज़ीरो वाली स्थिति में ही है और यह स्थिति दुनिया के किसी भी देश से बदतर है। पूरे उत्तर भारत में प्रतिवर्ष जितना पानी भू-जल में पहुँचता है, उसकी तुलना में 20 से 30 गुना पानी प्रतिवर्ष निकाल लिया जाता है। भू-जल का स्तर 2 सेंटीमीटर प्रतिवर्ष की दर से गिरता जा रहा है।
इस मामले में हमारा देश एक कमज़ोर लोकतंत्र तो साबित हो ही रहा है, पर सामाजिक तौर पर भी यह निहायत ही कमज़ोर है। किसी सामाजिक मुद्दे पर हमारा लगातार ध्यान जाता ही नहीं। समस्याएँ आती हैं, हाय तौबा मचती है और फिर सब कुछ सामान्य हो जाता है। यह स्थिति आसानी से नहीं बदलेगी, समस्याएँ ऐसे ही विकराल होंगी, लोग मर रहे होंगे और सरकारें 'सबका विकास' कर रही होंगी!