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चीनी सेना ने पंजाबी गाना बजाया, हिन्दी में दी धमकी, निर्णायक युद्ध के लिए तैयार भारतीय सेना

चीनी सेना ने पंजाबी गाना बजाया, हिन्दी में दी धमकी, निर्णायक युद्ध के लिए तैयार भारतीय सेना

पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) लाउड स्पीकर पर हिन्दी में भारतीय सैनिकों को धमकियाँ दे रही है। इसके अलावा चीनी सेना तेज़ आवाज़ में लाउड स्पीकर पर पंजाबी गाने बजा रही है, जिसमें वह भारतीय सैनिकों को चेतावनी दे रही है। 

चीनी सेना लद्दाख में शायद इस नीति पर चल रही है कि लड़े बिना ही युद्ध जीत लिया जाए। इसलिए वह वहाँ तैनात भारतीय सैनिकों को निरत्साहित करने की कोशिशें लगातार कर रही है। इसके तहत पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) लाउड स्पीकर पर हिन्दी में भारतीय सैनिकों को धमकियाँ दे रही है। इसके अलावा चीनी सेना तेज़ आवाज़ में लाउड स्पीकर पर पंजाबी गाने बजा रही है, जिसमें वह भारतीय सैनिकों को चेतावनी दे रही है। 

यह सारा सबकुछ ऐसे समय हो रहा है जब दोनों सेनाएं आमने-सामने तनी हुई हैं, टैंक, हाउत्ज़र तोप, एअर डिफेन्स प्रणाली, बख़्तबंद गाड़ियां खड़ी हैं। 

चीनी सेना का मक़सद

यह ऐसे समय हो रहा है जब दोनों देशों की सेनाओं के अफ़सरों के बीच छठे दौर की बातचीत की तैयारियाँ हो रही हैं, सुविधाजनक तारीख़ निकाली जा रही है। 

भारतीय सेना के एक आला अफ़सर ने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा, 'पीएलए हमारे सैनिकों में असंतोष के बीज बोने की कोशिश कर रही है। पर कई युद्ध लड़ चुके भारतीय सैनिकों पर इस तरह के मनोवैज्ञानिक ऑपरेशन्स का कोई असर नहीं पड़ता है।' 

उन्होंने कहा कि 'भारतीय सैनिक पंजाबी गाने का लुत्फ़ उठा रहे हैं।'

1962 की पुनरावृत्ति

साल 1962 में युद्ध के पहले भी ऐसा ही हुआ था। चीनी सेना लाउडस्पीकर पर 'हिंदी-चीनी भाई भाई' का नारा लगाती थी, कहती थी, 'आप हमारी ज़मीन से लौट जाओ, हम आपसे युद्ध नहीं चाहते हैं।' और उसके थोड़ी देर बाद ही गोलाबारी शुरू कर देती थी।  

दूसरी ओर, 'द डेकन क्रॉनिकल' ने उत्तरी कमान के एक बड़े अफसर के हवाले से कहा है कि 

भारतीय सैनिकों पर इस तरह के मनोवैज्ञानिक युद्ध का कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि वे कई तरह के युद्ध लड़ चुके हैं और कई ऑपरेशन्स में भाग ले चुके हैं। इसके उलट चीनी सैनिक शहरों में पले पढ़े हैं जिनका दुर्गम पहाड़ियों का कोई ख़ास अनुभव नहीं रहा है।

सियाचिन का अनुभव

उस अफ़सर ने कहा कि 'लद्दाख की ऊंची पहाड़ियों पर ज़बरदस्त बर्फबारी होती है और नवंबर महीने में 40 फीट तक बर्फ गिरती है। तापमान शून्य से 30-40 डिग्री सेल्सियस तक नीचे चला जाता है। बर्फीली हवा बहती है, रास्ते बंद हो जाते हैं। पर भारतीय सैनिक इन स्थितियों के अनुकूल ढले होते हैं, उनका वैसा प्रशिक्षण होता है।'

चीनी प्रोपगैंडा

वह चीनी अख़बार 'ग्लोबल टाइम्स' में छपे एक लेख का जवाब दे रहे थे। चीनी सरकार नियंत्रित इस अख़बार में छपे एक संपादकीय में कहा गया था कि 'सर्दियों में युद्ध के लिए भारतीय सेना तैयार नहीं है।' 

'द डेकन क्रॉनिकल' ने भारतीय सेना के अफ़सर के हवाले कहा है कि भारतीय सेना युद्ध के लिए हर लिहाज से तैयार है। उसके पास लॉजिस्टिक क्षमता है, वह तेज़ी से एक जगह से दूसरी जगह अपने सैनिकों को भेज सकती है, सैनिकों के स्वास्थ्य का पूरा इंतजाम है, विशेष किस्म के राशन की व्यवस्था है, उपकरणों की मरम्मत और रख रखाव का पूरा इंतजाम है, सर्दियों में घर को गर्म रखने की व्यवस्था भी कर ली गई है। 

भारतीय सेना के एक प्रवक्ता ने कहा कि लोगों को यह याद रखना चाहिए कि भारत को दुनिया की सबसे ऊँची युद्ध भूमि सियाचिन में भी तैनात रहने का अनुभव है। सियाचिन की स्थिति लद्दाख की तुलना में तो बहुत ही अधिक विकट है। जब भारतीय सेना सियाचिन में साल भर टिकी रह सकती है तो लद्दाख में क्यों नहीं

इसके अलावा हाल फिलहाल अटल सुरंग बन कर तैयार हो गई है जो रोहतांग को जोडती है। इससे सेना व साजो सामान को ले जाने में सुविधा होगी। 

इसके अलावा भारत ने लद्दाख तक जाने का एक नया और छोटा रास्ता ढूंढ लिया है। श्रीनगर-लेह हाईवे और रोहतांग दर्रा पहले से चालू है, तीसरा रास्ता दारचा से लेह तक का भी खोल दिया गया है।  

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