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जाति आधारित सर्वेक्षण पर हाई कोर्ट का स्टे, नीतीश को झटका!

जाति आधारित सर्वेक्षण पर हाई कोर्ट का स्टे, नीतीश को झटका!

जाति आधारित सर्वेक्षण पर पटना हाई कोर्ट ने आख़िर स्टे किस आधार पर दिया है? जानिए, इस सर्वेक्षण के लिए नीतीश कुमार ने क्या-क्या तर्क किया और कौन-कौन से दल इसके पक्ष में हैं?

नीतीश कुमार सरकार के जाति आधारित सर्वेक्षण पर गुरुवार को पटना उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली बिहार सरकार 'वंचितों की मदद' के लिए जाति सर्वे करा रही है। इसे नीतीश सरकार के लिए एक झटका माना जा रहा है। हालाँकि उनकी सरकार के एक मंत्री ने संकेत दिया है कि सरकार जाति आधारित सर्वेक्षण के मामले में पीछे नहीं हटेगी।

बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा है कि उनकी सरकार जाति आधारित सर्वे कराने के लिए पूर्णतः प्रतिबद्ध है और कराएगी। उन्होंने कहा, 'गरीबी, बेरोजगारी हटाने एवं जनकल्याणकारी नीतियाँ बनाने के लिए सरकारों को वैज्ञानिक आँकड़ों की आवश्यकता होती है। इसके लिए ही हमारी सरकार सभी जातियों और वर्गों को सम्मिलित कर जाति आधारित सर्वे करवा रही है।' 

हाई कोर्ट का यह फ़ैसला जाति जनगणना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आया है। अदालत इस मामले से जुड़ी कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। अदालत ने सरकार को जाति-आधारित सर्वेक्षण को तुरंत रोकने और यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि पहले ही जुटा लिए गए डेटा सुरक्षित रहें और अंतिम आदेश पारित होने तक किसी के साथ साझा नहीं किए जाएँ। मामले की अगली सुनवाई सात जुलाई को होगी।

बिहार में चल रहे सर्वेक्षण में जाति, लिंग, धर्म, शैक्षिक और वित्तीय स्थिति सहित 28 प्रश्नों को सूचीबद्ध किया गया है। केंद्र ने जहां इस मांग को ठुकरा दिया था, वहीं इस सर्वे को बिहार की सभी पार्टियों का समर्थन हासिल था। बिहार में जाति सर्वेक्षण का पहला दौर 7 से 21 जनवरी के बीच आयोजित किया गया था। दूसरा दौर 15 अप्रैल को शुरू हुआ था और 15 मई तक जारी रहने वाला था।

कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति मधुरेश प्रसाद की खंडपीठ ने सरकार को जाति आधारित सर्वेक्षण को तुरंत रोकने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा, 'प्रथम दृष्टया हमारी राय है कि राज्य के पास जाति-आधारित सर्वेक्षण करने की कोई शक्ति नहीं है, जिस तरह से यह अब फैशन में है, जो एक जनगणना की तरह होगा, इस प्रकार संघीय संसद की विधायी शक्ति पर अतिक्रमण होगा।'

अदालत ने राज्य विधानसभा में विभिन्न दलों के नेताओं के साथ सर्वेक्षण से डेटा साझा करने की सरकार की मंशा का ज़िक्र करते हुए चिंता जताई। इसने कहा, 'निश्चित रूप से निजता के अधिकार का बड़ा सवाल उठता है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने जीवन के अधिकार का एक पहलू माना है।'

इससे पहले दिन में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य में उनकी सरकार द्वारा की जा रही जातियों की गिनती को लेकर कुछ हलकों से विरोध पर नाराज़गी जताई। राज्य के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे नीतीश कुमार जाति सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली पटना उच्च न्यायालय के समक्ष एक याचिका पर पत्रकारों के सवालों का जवाब दे रहे थे।

पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, 'मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि लोगों को सर्वे से दिक्कत क्यों है। आखिरी बार ऐसी गणना 1931 में की गई थी। हमारे पास निश्चित रूप से एक नया अनुमान है। आखिरकार, जनगणना हर दस साल में अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की आबादी को ध्यान में रखती है।'

सीएम ने कहा कि सभी राजनीतिक समूहों को विश्वास में लेने के बाद राज्य में जाति सर्वेक्षण का आदेश दिया गया था। उन्होंने कहा, 'जाति सर्वेक्षण के पक्ष में प्रस्ताव राज्य विधानमंडल के दोनों सदनों में दो बार, सर्वसम्मति से पारित किए गए। प्रधानमंत्री से औपचारिक अनुरोध करने में सभी दलों के प्रतिनिधि मेरे साथ शामिल हुए थे।'

उन्होंने कहा, 'केंद्र के मना करने के बाद हमने राज्य तक सीमित एक अभ्यास करने का फैसला किया। यह निर्णय भी एक बैठक में लिया गया था, जहां सभी नौ राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि मौजूद थे, जिनके सदस्य विधायिका में हैं।' उन्होंने दोहराया कि यह अभ्यास, एक बार पूरा हो जाने पर सभी के लिए फायदेमंद होगा और दावा किया कि कुछ अपवादों को छोड़कर राज्य में सभी लोग इसके पक्ष में हैं।

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