2019 चुनाव की तैयारियों में बीजेपी से बहुत पीछे हैं विपक्षी दल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार को समाचार एजेंसी एएनआई की स्मिता प्रकाश को इंटरव्यू दे रहे थे। नए वर्ष का पहला दिन था। उसके पहले वर्ष के आख़िरी दिन सारे मीडिया में उनकी अंडमान निकोबार की यात्रा की खबरें भरी पड़ी थीं! उनका हर दिन एक इवेंट है।
तीन जनवरी को पंजाब में मोदी जी की दो रैलियाँ हैं जालंधर और गुरुदासपुर में। जनवरी-फरवरी में बीस राज्यों में कुल सौ रैलियाँ प्लान हैं, सब पर महीनों से काम चल रहा है।
आम चुनाव के ऐलान के पहले मोदी जी रैलियों से करीब पाँच करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष अपना दावा दोहराने के अभियान पर निकल चुके हैं। और विपक्ष? मायावती, ममता और राहुल एक दूसरे से हिस्से से ज्यादा गोश्त नोचने की पोजीशनिंग कर रहे हैं।
जन असंतोष के भरोसे विपक्ष
संघ परिवार और मोदी जी का अपना निजी संगठन (चुनाव विशेषज्ञ / ट्रोल्स/प्रोफेशनल्स/ कुछ शीर्ष औद्योगिक घराने /विश्वस्त राजनेतागण) अनवरत चुनाव लड़ती मशीन हैं, जबकि विपक्ष में जो लोग और दल हैं वे इस भरोसे हैं कि मोदी जी की नीतियों से जो असंतोष जनता में जन्म ले चुका है, वे उनका चुनावी बेड़ा स्वत: पार करवा देगा!
हमने अभी हालिया विधानसभा चुनावों में पाया कि राजस्थान और मध्य प्रदेश में जनता के सरकार से ग़ुस्से के हर प्रकट चिन्ह के मौजूद होने के बावजूद बदलाव बस किसी तरह हो पाया है। सच तो यह है कि कांग्रेस सत्ता में आई तो ज़रूर, पर बैसाखियों पर। कांग्रेस बीजेपी को मिले मत प्रतिशत भी लगभग बराबर। यह भी कोई जीत है ?
देश में सरकारी कर्मचारी, अफ़सर, रिटायर्ड अफ़सर, सैनिक, पूर्व सैनिक, दुकानदार, बेरोज़गार, किसान, मज़दूर और अब तमाम पत्रकार भी इस सरकार के मुक़ाबिल आ खड़े हुए हैं। सोशल मीडिया पर ट्रोल, उलट-ट्रोल, हो रहे हैं। फिजॉ में बदलाव के संकेत हैं, जिसके चलते राहुल गांधी में भी लोगों को संभावना दिखने लगी है। पर विपक्ष की मोदी का मुक़ाबला करती किसी योजना या कार्यक्रम का कहीं कोई संकेत नहीं है।मोदी कैम्प ने पॉच राज्यों के राज्य चुनावों के वक़्त ही 2019 के आम चुनाव का चुनाव प्रचार ख़ाका तय कर लिया था। संसद का शीतकालीन सत्र तीन तलाक़ दे रहा है और मोदी जी की अगले सौ दिनों की लगभग हर दिन ' इवेंट' तय है।
अभी तक रफ़ाल के सिवा ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे विपक्ष ने जन्मा हो। सारे मुद्दे खुद मोदी जी या संघ परिवार ही रोज़ परोसता है विपक्ष उसकी फॉलोअप में आलोचना करके या सफ़ाई देकर ज़िम्मेदारी से मुक्ति समझता है।
सरकार तय करती है विपक्ष का अजेंडा!
बीते सप्ताह या आने वाले सप्ताह भर का ही आकलन कर लें तो स्थिति समझ आ सकती है। मोदी कैंप और संघ इस बार आंतरिक सुरक्षा का सवाल बड़ा करने जा रहे हैं। 27 दिसंबर 2018 को संघ ने बैठक कर इसे विस्तार दिया। सरकार और प्रचार इसको स्वर देंगे और प्रतिप्रश्न किया जाएगा कि कौन देश बचा सकता है ? वे चुनाव को प्रेसिडेंशियल फॉर्मैट पर ले जाना चाहते हैं ताकि बहस 'मोदी बनाम कौन' हो जाए। विपक्ष इस सवाल पर बैकफ़ुट पर ही है। पूछे जाने पर बग़लें झाँकने लगता है।
खुद में खुश
तमाम पत्रकार और विश्लेषक इस धारणा पर खुद ही खुद में ख़ुश हो लेते हैं कि 'जनता जब मन बना लेती है तो बड़े बड़ों को धूल चटा देती है!' उनके पास इंदिरा गॉधी, राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी आदि के उदाहरण हैं। मैं उन्हे नई उभरती सच्चाइयों के आमने सामने करना चाहता हूँ। मसलन, गुजरात के राज्य सरकार के लिए हुए चुनाव , तीन चौथाई जनपदों में हार के बावजूद मोदी शाह की जोड़ी ने सिर्फ पॉच शहरी इलाक़ों के प्रचंड बहुमत को संगठन धन और चुनावी कौशल से अपने पक्ष में करके नतीजा बदल लिया। राजस्थान के कांग्रेसी मैनेजर सहमत होंगे कि गर बीजेपी को एक सप्ताह और मिल जाता तो इसी विधानसभा में नतीजा उल्टा हो जाता।
ब्रांड मोदी में 'डेंट' हुआ है, पर आज भी सबसे बड़ा ब्रांड वही है। विपक्ष के पास जवाब में यूपी में सपा-बसपा का संभावित गठबंधन है, जो 80 सीटों वाले इस विशाल राज्य में मोदी जी का रथ कीचड़ में फँसा सकता है और जहां से उन्होने 73 सीटें हथियाई थीं।
संघ की सम्मति
विपक्ष को एक और सहयोग संघ परिवार में पड़ती फूट से मिलने की संभावना है। आडवाणी समर्थकों ( यशवंत, शत्रुघ्न, कीर्ति, अरुण शौरी) के ताल ठोकने से कुछ ख़ास न हुआ पर नितिन गडकरी के बयान घातक असर रखते हैं । कल्पना जन्म ले रही है कि ऐसा बिना संघ की सम्मति से संभव है क्या?
काश! विपक्ष ने भी 2019 के आम चुनाव को उसी शिद्दत से लिया होता, जैसे 50 पैसे किलो प्याज़ बेचता किसान लेना चाहता है या 10 हज़ार नौकरियों की ख़ाली होती जगह के लिये एक करोड़ आवेदनकर्ताओं की परास्त आकांक्षा लेती है तो इस बार उसके पास कोई कार्यक्रम होता, चुनावी रणनीति होती और वह भरोसा पैदा करता। हो सकता है कि सारे छल-बल-कौशल के बावजूद मोदी जी हार ही जॉए तो भी अवाम के पक्ष में जीतने को कुछ नया नहीं है। वह चंद रोज़, हफ़्तों, महीनों बाद फिर विपक्ष में ही मिलेगा!