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संघ से कड़वाहट दूर करने के लिए कर्मचारियों पर प्रतिबंध हटाया: विपक्ष

संघ से कड़वाहट दूर करने के लिए कर्मचारियों पर प्रतिबंध हटाया: विपक्ष

केंद्र सरकार ने इस महीने की शुरुआत में एक आदेश से आरएसएस की गतिविधियों में सरकारी कर्मचारियों के शामिल होने पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया है। जानिए, इसको लेकर विपक्षी दलों ने क्यों आपत्ति जताई।

आरएसएस और इसके प्रमुख मोहन भागवत द्वारा संकेतों में पीएम व मोदी सरकार पर सवाल खड़े किए जाने के बीच अब मोदी सरकार ने आरएसएस को बड़ा तोहफ़ा दिया है। मोदी सरकार ने आरएसएस की गतिविधियों में सरकारी कर्मचारियों के शामिल होने पर दशकों पहले लगे प्रतिबंध को हटा दिया है। सरकार के इस फ़ैसले से राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया है। विपक्षी दलों ने सरकार के इस फ़ैसले पर कड़ी आपत्ति जताई है।

विपक्ष ने इस आदेश को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार पर हमला बोला है। शिवसेना (यूबीटी) सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि इस आदेश के साथ प्रवर्तन निदेशालय, आयकर विभाग, केंद्रीय जांच ब्यूरो, चुनाव आयोग और अन्य विभागों में सरकारी अधिकारी आधिकारिक तौर पर अपनी संघ से जुड़ी साख साबित कर सकते हैं। चतुर्वेदी ने कहा, 'यह बहुत शर्म की बात है कि केवल भारत माता के हितों के साथ जुड़ने के बजाय, भाजपा उन्हें वैचारिक हितों को प्राथमिकता देने की ओर ले जा रही है।'

तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने कहा, 'क्या हम इस बात से हैरान हैं कि केंद्र सरकार ने अब सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की गतिविधियों में भाग लेने पर 60 साल का प्रतिबंध हटा दिया है?'

एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि अगर यह आदेश सच है तो यह भारत की अखंडता और एकता के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि आरएसएस पर प्रतिबंध इसलिए है क्योंकि इसने शुरू में संविधान, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। ओवैसी ने कहा, 'आरएसएस का हर सदस्य हिंदुत्व को राष्ट्र से ऊपर रखने की शपथ लेता है। अगर कोई सिविल सेवक आरएसएस का सदस्य है तो वह राष्ट्र के प्रति वफादार नहीं हो सकता।'

सरकार से आदेश वापस लेने की मांग करते हुए बीएसपी प्रमुख मायावती ने कहा कि केंद्र का फ़ैसला राजनीति से प्रेरित है और इसका उद्देश्य आरएसएस को खुश करना है ताकि लोकसभा चुनावों के बाद 'सरकारी नीतियों और उनके अहंकारी रवैये' को लेकर दोनों के बीच बढ़ी कड़वाहट को कम किया जा सके। उन्होंने कहा कि यह आदेश राष्ट्रीय हित के विरोध में है।

जयराम रमेश ने सोशल मीडिया पर कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय द्वारा जारी 9 जुलाई के ज्ञापन को साझा किया, जिसमें सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की गतिविधियों में भाग लेने की बात कही गई है।

उन्होंने कहा, 'सरदार वल्लभभाई पटेल ने गांधी जी की हत्या के बाद फरवरी 1948 में आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बाद अच्छे आचरण के आश्वासन पर प्रतिबंध हटा लिया गया था। इसके बाद भी आरएसएस ने नागपुर में कभी तिरंगा नहीं फहराया। 1966 में सरकारी कर्मचारियों द्वारा आरएसएस की गतिविधियों में भाग लेने पर प्रतिबंध लगाया गया था - और यह सही भी था। 4 जून, 2024 के बाद स्वयंभू नॉन-बायोलॉजिकल पीएम और आरएसएस के बीच संबंधों में गिरावट आई है। 9 जुलाई, 2024 को, 58 साल का प्रतिबंध, जो वाजपेयी के पीएम के कार्यकाल के दौरान भी लागू था, हटा दिया गया। मुझे लगता है कि अब नौकरशाही भी निडर होकर आ सकती है।'

मोदी सरकार का यह आदेश लोकसभा चुनाव के नतीजों के एक महीने बाद आया है। बीजेपी इस बार बहुमत नहीं पा सकी है और एनडीए के सहयोगी दलों की मदद से इसने सरकार बनाई है। आरएसएस को लेकर ताज़ा फ़ैसले पर जनता दल (यूनाइटेड) और राष्ट्रीय लोक दल जैसे सहयोगी दल चुप रहे। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार जेडी(यू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने आदेश पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया, आरएलडी के राष्ट्रीय प्रवक्ता मोहम्मद इस्लाम ने कहा कि वह पार्टी के भीतर इस मामले पर चर्चा करने के बाद ही टिप्पणी करेंगे।

आरएसएस ने कहा कि सरकार का फैसला सही है और लोकतंत्र को मजबूत करता है। आरएसएस के प्रचार प्रभारी सुनील आंबेकर ने कहा कि आरएसएस पिछले 99 वर्षों से लगातार राष्ट्र के पुनर्निर्माण और समाज की सेवा में लगा हुआ है। बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने भी इस फ़ैसले का स्वागत किया है। 

भागवत ने हाल में क्या की है टिप्पणी

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के एक बयान को पीएम मोदी के नॉन-बायोलॉजिकल वाले बयान से जोड़कर देखा गया था। भागवत ने कहा था कि "मानव होने के बाद कुछ लोग सुपरमैन बनना चाहते हैं, फिर वे ‘देवता’ और फिर ‘भगवान’ और फिर ‘विश्वरूप’ बनना चाहते हैं...।" हालाँकि, इस बयान के साथ उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया था।

वैसे, मोहन भागवत ने पिछले महीने ही एक और तीखी टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि एक सच्चा 'सेवक' विनम्र होता है और लोगों की 'गरिमा' के साथ सेवा करता है। भागवत ने कहा था कि एक सच्चे सेवक में अहंकार नहीं होता और वह दूसरों को कोई नुकसान पहुंचाए बिना काम करता है।

चुनाव अभियान को लेकर भागवत ने कहा था कि चुनाव के दौरान मर्यादा नहीं रखी गई। भागवत ने कहा था, 'चुनाव लोकतंत्र की एक आवश्यक प्रक्रिया है। इसमें दो पक्ष होने के कारण प्रतिस्पर्धा होती है। चूंकि यह प्रतिस्पर्धा है, इसलिए खुद को आगे बढ़ाने का प्रयास किया जाता है। ...झूठ का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। संसद में जाने और देश चलाने के लिए लोगों को चुना जा रहा है। वे सहमति बनाकर ऐसा करेंगे, यह प्रतिस्पर्धा कोई युद्ध नहीं है।' भागवत ने यह भी कहा था, 'एक-दूसरे की जिस तरह की आलोचना की गई, जिस तरह से अभियान चलाने से समाज में मतभेद पैदा होगा और विभाजन होगा - इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। आरएसएस जैसे संगठनों को भी इसमें बेवजह घसीटा गया। तकनीक की मदद से झूठ को पेश किया गया।'

भागवत ने यह भी कहा था, 'झूठ को प्रचारित करने के लिए आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया गया। ऐसा देश कैसे चलेगा? इसे विपक्ष कहते हैं। इसे विरोधी नहीं माना जाना चाहिए। वे विपक्ष हैं, एक पक्ष को उजागर कर रहे हैं। उनकी राय भी सामने आनी चाहिए। चुनाव लड़ने की एक गरिमा होती है। उस गरिमा को बनाए नहीं रखा गया।'

इसी बीच संघ से जुड़ी एक पत्रिका ऑर्गनाइजर ने एक लेख छापा था जिसमें कहा गया कि भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं ने लोकसभा चुनाव में मदद के लिए आरएसएस से संपर्क नहीं किया और इस वजह से पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। ऑर्गनाइजर पत्रिका में छपे लेख में संपर्क नहीं करने की जो बात कही गई है उसकी पुष्टि एक इंटरव्यू में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी लोकसभा चुनाव के दौरान ही की थी।

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