कोरोना वायरस के बारे में दुनिया को वक़्त पर आगाह न करने का आरोप लगाकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को दिया जाने वाला सालाना वित्तीय अनुदान रोकने का विवादास्पद फैसला लिया है। इस पर न केवल उन्हें अंतरराष्ट्रीय समुदाय बल्कि घरेलू स्तर पर भी निंदा का सामना करना पड़ा है।
ट्रम्प ने जिन तथ्यों के आधार पर अब कड़ा रुख़ अपनाया है, उनके बारे में बिना कोई सीधा जिक्र किये भारत ने इशारों में ही दुनिया का ध्यान तब आकर्षित किया था जब 27 मार्च को 20 विकसित और विकासशील देशों के संगठन जी-20 के शिखर नेताओं के साथ वीडियो सम्मेलन को भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सम्बोधित किया था।
अमेरिका ने अनसुनी की थी भारत की
भारत की इस आवाज़ को अमेरिका ने भी अनसुना कर दिया था, क्योंकि तब तक अमेरिका इसके प्रकोप से बचा हुआ महसूस कर रहा था। भारत ने कहा था कि विश्व स्वास्थ्य संगठन को समुचित ताक़त देने और इसके संगठनात्मक ढाँचे को मज़बूत किये जाने की ज़रूरत है।भारत ने यह सुझाव दे कर अप्रत्यक्ष तौर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की नाकामी को ही उजागर करने की कोशिश की थी।
क्या कहा था भारत ने?
लेकिन इसका सीधा निशाना चीन पर ही पड़ रहा था। यह आरोप लगाया जा रहा था कि चीन के दबाव में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना वायरस से निबटने में निष्क्रियता दिखाई थी।
भारत ने केवल जी-20 की बैठक में ही यह मसला उठाकर संतोष नहीं किया, बल्कि जैविक हथियार संधि की 45वीं सालगिरह के मौके पर इस संधि को अधिक कारगर बनाने और विश्व स्वास्थ्य संगठन को अधिक प्रभावी भूमिका निभाने लायक बनाने की बात की थी।
अब जब अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प कोरोना वायरस के हमले से अपने देश में हो रही हज़ारों मौतों और इस वजह से उन पर नाकामी के लग रहे आरोपों से वह तिलमिलाए हुए हैं, उन्होंने अपनी नाकामी की ओर से ध्यान हटाने के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन को अमेरिकी वित्तीय योगदान रोक देने का हैरान कर देने वाले फ़ैसले का ऐलान किया।
संयम क्यों?
वास्तव में विश्व स्वास्थ्य संगठन की भूमिका को लेकर केवल अमेरिका या भारत ही नाराज़ नहीं है, लेकिन भारत की तरह दुनिया के बाकी देश संयम बरत रहे हैं।भारत का कहना है कि फ़िलहाल कोरोना से निबटने की लड़ाई को प्राथमिकता दी जा रही है और जब यह मसला थमेगा तब विश्व स्वास्थ्य संगठन की भूमिका और इसमें ज़रूरी सुधार करने के बारे में चर्चा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर की जाएगी।
क्या कहा है जापान ने?
राजनयिक हलक़ों में चीन पर दबी ज़ुबान से आरोप लगाया जा रहा है कि उसने विश्व स्वास्थ्य संगठन को दुनिया भर में इस वायरस को फैलने से रोकने के लिये ज़रूरी कदम उठाने से रोका।
जापान के उप प्रधामनंत्री तारो आसो ने तो विश्व स्वास्थ्य संगठन पर कटाक्ष किया कि इसे वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के बदले चाइनीज़ हेल्थ ऑर्गनाइजेशन कहा जाना चाहिये।
चीन ने बनाया था डब्लूएचओ का प्रमुख?
राजनयिक हलक़ों में यह भी कहा जा रहा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेड्रोस अधेनोम चीन के शुक्रगुज़ार हैं कि इस पद पर उनकी नियुक्ति के लिये चीन ने अहम भूमिका निभाई थी। टेड्रोस अधेनोम अफ्रीकी देश इथियोपिया के विदेश मंत्री रह चुके हैं और उनके कार्यकाल में चीन ने इथियोपिया को काफी सैनिक साजो सामान का सौदा किया था।टेड्रोस को जब विश्व स्वास्थ्य संगठन का महानिदेशक नियुक्त किया जा रहा था तब सुरक्षा परिषद के बाकी स्थायी सदस्यों ने इस पर विशेष ध्यान इसलिये नहीं दिया था कि वे इसे ग़ैर राजनीतिक संस्था समझते थे।
इसकी गतिविधियाँ चूँकि अधिकतर विकासशील देशों में ही चलती हैं इसलिये वे इसके नेतृत्व को लेकर अधिक चिंतित नहीं थे।
भारत का नरम रवैया!
अब अमेरिका और यूरोपीय देश इसकी भूमिका को लेकर काफी नाराज़ हैं और इसकी समुचित जाँच की माँग कर रहे हैं, आस्ट्रेलिया और अन्य ताक़तवर देशों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन की निंदा की है और इसी बहाने चीन को आड़े हाथों लिया है।
भारत सहित सभी देशों का मानना है कि यह समय कोरोना वायरस से एकजुट होकर लड़ने का है और इस समय विश्व स्वास्थ्य संगठन की भूमिका को लेकर विवादों में पड़ जाएंगे तो कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ लड़ाई कमज़ोर हो जाएगी।
न्यूयार्क में भारत के स्थायी प्रतिनिधि अकबरुद्दीन ने एक भारतीय टीवी चैनल से भेंट में इशारों में कहा है कि जब कोरोना वायरस के हमले से निबट लेंगे तो इससे जुड़े मुद्दे ज़रूर उठाए जाएँगे।
अमेरिका और यूरोप के सामरिक हलक़ों में कहा जा रहा है कि कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई पूरी दुनिया पर थोपी गई है और यदि चीनी नेतृत्व गम्भीर, ईमानदार व पारदर्शी होता तो आज दुनिया में इतना त्राहिमाम नहीं मचा होता।
ट्रंप के आरोप में दम है?
अमेरिका और यूरोप के सामरिक हलक़ों में कहा जा रहा है कि कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई पूरी दुनिया पर थोपी गई है और यदि चीनी नेतृत्व गम्भीर, ईमानदार व पारदर्शी होता तो आज दुनिया में इतना त्राहिमाम नहीं मचा होता।चीन भले ही कोरोना के ख़िलाफ़ चल रही मौजूदा लड़ाई को विश्व एकजुटता के नाम पर अपने ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय रोष दबाने में कामयाब हो रहा हो, एक दिन उसे चीन पर लगाए जा रहे आरोपों का जवाब देना ही होगा।
ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन पर नाकामी का आरोप लगाकर अप्रत्यक्ष तौर पर चीन को लपेटा है, इशारों में कहा है कि डब्लूएचओ चीन के निर्देशों का पालन कर रहा था।
उन्होंने कहा है कि वह वायरस महामारी के कुप्रबंधन की जाँच होने तक अमेरिकी मदद को स्थगित कर रहे हैं। ट्रम्प के मुताबिक़ अमेरिकी करदाता डब्ल्यूएचओ को हर साल 40 से 50 करोड़ डॉलर की वित्तीय मदद देते हैं, पर डब्ल्यूएचओ ने उन्हें निराश किया है।
पैसा बोलता है!
इसके विपरीत चीन अमेरिकी मदद का करीब दसवाँ भाग ही वित्तीय योगदान करता है। ट्रम्प ने कहा कि अमेरिकी जनता डब्ल्यूएचओ से बेहतर व्यवहार की अपेक्षा करती है, और उसके कुप्रबंधन, लीपापोती और नाकामियों की जाँच होने तक उसे और मदद नहीं दी जाएगी।
कोरोना वायरस के मानव-से-मानव में संक्रमण की रिपोर्टों से अवगत होने के बाद 31 दिसंबर को ताइवान ने डब्ल्यूएचओ को इसकी जानकारी दी थी, उसने इसे सार्वजनिक नहीं किया।
डब्लूएचओ ने जानकारी छुपाई?
डब्ल्यूएचओ ने पूरे जनवरी के दौरान चीनी सरकार के प्रयासों की सराहना और इस बात का दावा करता रहा कि मानव-से-मानव स्तर पर संक्रमण नहीं हो रहा है, जबकि ऊहान में डॉक्टर दावा कर रहे थे कि ऐसा हो रहा है।ट्रम्प के मुताबिक डब्ल्यूएचओ ने 22 जनवरी को घोषित किया था कि कोरोना वायरस से अंतरराष्ट्रीय स्तर की सार्वजनिक स्वास्थ्य आपदा का ख़तरा नहीं है, साथ ही वह चीन के क़दमों की प्रशंसा करता रहा।
ट्रम्प के मुताबिक डब्ल्यूएचओ ने साबित कर दिया कि वह एक गंभीर संक्रामक रोग के इस तरह के संकट को रोकने, उस पर नज़र रखने और क़दम उठाने के लिए तैयार नहीं था।
ग़ौरतलब है कि भारत ने विश्व स्वास्थ्य संगठन की सलाह को नज़रअंदाज करते हुए चीन से हवाई आवागमन पर रोक लगाने का कदम उठाया था। भारत के इस फ़ैसले पर चीन ने एतराज़ किया था।