भारत में दूध एवं दुग्ध उत्पादों का आयात एक बार फिर चर्चा में है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का स्वागत करने जा रहे भारत पर अमेरिका से डेयरी उत्पादों के आयात को लेकर दबाव है। अमेरिका ही नहीं, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड भी भारत में दुग्ध उत्पाद भेजने की कतार में हैं। वहीं आरएसएस से जुड़ा संगठन स्वदेशी जागरण मंच दुग्ध उत्पादों के आयात का विरोध करता रहा है। इस बार यह विरोध धार्मिक रूप भी ले चुका है, क्योंकि विदेशों में गायों को मांस से बने उत्पाद खिलाए जाते हैं।
भारत के दुग्ध उत्पादकों और सरकार को हमेशा यह डर रहा है कि दूध उत्पादन करने वाले विकसित देश अगर भारत में दूध की आपूर्ति करते हैं तो पशुपालकों के तबाह होने का डर है। वजह यह है कि भारत की गायें स्वस्थ नहीं हैं और यहाँ प्रति गाय दुग्ध उत्पादन विकसित देशों की तुलना में बहुत कम है। इसके अलावा भारत में दूध की 60 प्रतिशत बिक्री असंगठित क्षेत्र द्वारा की जाती है। संगठित डेयरी क्षेत्र अगर बाजार ख़राब करने के लिए सस्ता माल उतारता है तो असंगठित रूप से दूध बेचने वाले ग्वाले पर इसका सबसे ज़्यादा असर पड़ने की आशंका है। महँगा इनपुट लागत होने के कारण दूध बेचकर रोज़ी-रोटी कमाने वाले ग्रामीणों की दुर्दशा बढ़ जाएगी, जो पहले से ही बहुत बुरे हाल में हैं। भारत में इसका महत्व इस तरह से समझा जा सकता है कि कम खेतों वाले ज़्यादातर किसान पशुपालन से रोज़ी-रोटी चलाते हैं और ग्रामीण परिवारों का 1.75 प्रतिशत पशुधन पर निर्भर है।
क्या है उत्पादन की मौजूदा स्थिति
भारत दूध का सबसे बड़ा उत्पादक होने के साथ-साथ विश्व का सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है। 1950-51 से 2017-18 के दौरान भारत में दूध उत्पादन 1.7 करोड़ टन से बढ़कर 17.64 करोड़ टन हो गया है। देश में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 1950-51 में 130 ग्राम प्रति दिन थी जो वर्ष 2017-18 में बढ़कर 374 ग्राम प्रतिदिन हो गई है। इसकी तुलना में विश्व में वर्ष 2017 के दौरान अनुमानित औसतन ख़पत 294 ग्राम थी। हालाँकि इन आँकड़ों पर ग़ौर करें तो दुग्ध उत्पादन इसलिए ज़्यादा है, क्योंकि भारत में पशुओं की संख्या अधिक है। ऐसे में सबसे बड़ा उत्पादक होने के साथ यहाँ उत्पादन लागत ज़्यादा आती है।
पशुओं को मांस खिलाने का मामला
विकसित देशों में गायों को मांसाहार कराया जाता है। बूचड़खानों में बड़ी मात्रा में ख़ून निकलता है। ब्लड प्लाज्मा का इस्तेमाल खाने में इमल्सीफायर, स्टेबलाइजर, क्लीयरीफायर और रंग के रूप में होता है। इसे अहम पोषक तत्व माना जाता है। ज़्यादातर ख़ून का इस्तेमाल पशुओं की खुराक यानी ब्लड मील के रूप में होता है। यह प्रोटीन के पूरक का काम करता है, जो मिनरल्स का शानदार स्रोत माना जाता है।
यह माना जाता है कि ब्लड मील से दूध की गुणवत्ता बढ़ती है। इसके अलावा फिश मील और हड्डियों का इस्तेमाल भी पशुओं के भोजन के रूप में होता है। यह डेयरी के जानवरों के भोजन में लाइजिन का सबसे आम स्रोत माना जाता है, पशुओं को इससे एमीनो एसिड मिलता है।
भारत में दूध
भारत में जानवरों का मांस खाने को ही मांसाहार माना जाता है। दूध को शाकाहार में रखा गया है। आरएसएस से जुडे संगठनों की चिंता यह है कि मांसाहारी गायों के दूध को शाकाहारी कैसे माना जाए। इसके पहले भी अमेरिका से दुग्ध उत्पादों के आयात को लेकर इसी तरह के सवाल उठते रहे हैं। अमेरिका के सामने भारत यह माँग रखता है कि वह प्रमाणित करे कि वह उन गायों के दूध की आपूर्ति कर रहा है, जिन्होंने मांस नहीं खाया है। वहीं अमेरिका इस तरह के प्रमाणन से इनकार करता रहा है।
ट्रंप की यात्रा और डेयरी
अमेरिका ने मई 2018 में भारत सहित अन्य देशों से स्टील के आयात पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क और एल्युमीनियम उत्पादों पर 10 प्रतिशत शुल्क लगा दिया था। भारत ने जवाबी कार्रवाई करते हुए अमेरिका से आने वाले महँगे सेब, बादाम, अखरोट और वाइन पर 50 प्रतिशत तक कर लगा रखा है। भारत का कहना है कि इस कर से उसे 24 करोड़ डॉलर अतिरिक्त मिलेंगे, जिससे अमेरिका द्वारा कर लगाने से होने वाले घाटे की भरपाई हो जाएगी।
ख़बरों के मुताबिक भारत और अमेरिका के बीच कोई व्यापक व्यापारिक समझौता होने की संभावना नहीं है। हालाँकि यह उम्मीद की जा रही है कि भारत कृषि व डेयरी उत्पादों के आयात के मामले में अमेरिका को राहत दे देगा। अमेरिका में किसानों की समस्या एक अहम मुद्दा है और वहां राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं। इस लिहाज़ से अमेरिका के लिए यह बड़ी राहत होगी। वहीं आरएसएस से जुड़े संगठनों ने डेयरी उत्पादों के आयात को धार्मिक मसला बना दिया है। स्वदेशी जागरण मंच के सह संयोजक अश्विनी महाजन का कहना है,
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दूध भारत में शाकाहारी भोजन है। अमेरिकी प्रशासन की माँग है कि भारत यह शर्त हटाए कि सिर्फ़ शाकाहारी गायों के दूध का आयात किया जाएगा। अमेरिकी गायें ख़ून और माँस खाती हैं और इस तरह की गायों का दूध भारत में प्रतिबंधित है।
अश्विनी महाजन, स्वदेशी जागरण मंच के सह संयोजक
ऑस्ट्रेलिया भी बोलने वाला है धावा
भारत में अगले हफ़्ते ऑस्ट्रेलिया से 150 सदस्यों का प्रतिनिधिमंडल आने वाला है। प्रतिनिधिमंडल के साथ वहाँ के उद्योग मंत्री भी होंगे। यह दल दोनों देशों के क़ारोबारी संबंध बढ़ाने की संभावनाओं की तलाश में आ रहा है। भारत के क्षेत्रीय समग्र क़ारोबारी समझौते (आरसीईपी) में शामिल न होने के बाद ऑस्ट्रेलिया द्विपक्षीय बातचीत पर ज़ोर दे रहा है। भारत चाहता है कि ऑस्ट्रेलिया अपना सेवा क्षेत्र खोल दे, जिससे भारत के इंजीनियरिंग, प्रबंधन व अन्य तकनीकी पढ़ाई करने वाले विद्यार्थी वहाँ रोज़गार पा सकें। वहीं ऑस्ट्रेलिया का ज़ोर इस बात पर है कि भारत कृषि और डेयरी उत्पादों के लिए अपने दरवाज़े खोले। ऑस्ट्रेलिया इस क्षेत्र में भारत में मोटा निवेश करने को इच्छुक है। ऑस्ट्रेलिया से डेयरी उत्पादों के आयात में भी गायों को ब्लड मील खिलाने का मसला उठ सकता है।
भारत गायों को मांस खिलाने से होने वाली समस्याओं के वैज्ञानिक तर्क भी दे रहा है। अध्ययनों से यह साबित हुआ है कि इससे मैड काऊ नाम की बीमारी होती है, जो अत्यंत घातक है और यह मनुष्यों को भी प्रभावित कर सकता है। अमेरिका में 2018 में कुल डेयरी उत्पादन में से 19 प्रतिशत निर्यात हुआ था जो दिसंबर 2019 में घटकर 15.2 प्रतिशत पर पहुँच गया है। स्वाभाविक है कि अमेरिका में चुनाव के पहले यह एक बड़ा मसला है और ट्रंप की यात्रा के दौरान यह कवायद होगी कि दूध और कृषि उत्पादों को लेकर भारत के साथ कोई समझौता हो जाए। वहीं आरएसएस से जुड़े संगठन ने बड़े ज़ोर-शोर के साथ भारत में अमेरिकी दूध के आयात को धर्म से जोड़ दिया है।