नफ़रत के इस माहौल में हिंदू-मुसलिम एकता का संदेश लोगों तक पहुँचाएँ मोदी

08:09 am Apr 22, 2020 | अमिताभ - सत्य हिन्दी

इन्सान का दिल एक ऐसी शै (चीज) है, जो भावनाओं की ख़ुराक पर पलता है। भीतर जैसी भावना को जगह दी जाए, धीरे-धीरे दिल उसी तरफ झुकने लगता है और इस झुकाव की झलक व्यक्ति के प्रत्यक्ष सामाजिक आचरण में भी मिलती रहती है। दिल के भीतर जैसे स्वाभाविक तौर पर प्रेम का झरना फूटता है, वैसे ही नफ़रत का नाला भी बह सकता है। यह उस इन्सान पर निर्भर करता है कि वह किसे प्राथमिकता देता है। 

दिल में गहराई तक नफ़रत बसी हो तो अभिव्यक्तियां नफ़ासत का पर्दा फाड़ कर भी बाहर निकल ही आती हैं क्योंकि अगर मन में मैल है तो भाषा कोई भी हो, अभिव्यक्ति सुरुचिपूर्ण हो ही नहीं सकती। इसके नुक़सान निजी स्तर पर भी होते हैं और देश-समाज के स्तर पर भी।

भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण की ख़बरों में मीडिया के एक हिस्से के रुख़ में तब्लीग़ी जमात के बहाने मुसलिम विरोध के स्वर मुखर हुए हैं और इस वजह से एक राष्ट्रीय आपदा के बीच भी सांप्रदायिक विमर्श हावी हो गया है। मुसलमान निशाने पर हैं। तब्लीग़ी जमात के लोगों की मूर्खतापूर्ण हरकतों की सबने आलोचना की है लेकिन मीडिया की ख़बरों से कुछ ऐसा प्रचार हो रहा है जिससे आम मुसलमान भी बेवजह निशाने पर आ गया है। 

तेजस्वी के ट्वीट से शर्मिंदगी

इस बीच, अपने विवादास्पद बयानों के लिए पहचाने जाने वाले बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या के एक ट्वीट की वजह से कोरोना वायरस की आपदा के दौरान पूरे देश के लिए शर्मिंदगी और परेशानी का माहौल बन गया है। इस वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर केंद्र सरकार की फ़ज़ीहत तो हो ही रही है, अरब देशों में रह रहे भारतीयों के लिए भी संकट खड़ा हो गया है। 

कर्नाटक से आने वाले तेजस्वी सूर्या के अरब देशों की महिलाओं की यौनिकता को लेकर किए गए बेहद आपत्तिजनक ट्वीट की वजह से अब समूचे अरब समाज में आक्रोश देखा जा रहा है।

दरअसल, तब्लीग़ी जमात पर हमले के बहाने बीजेपी के कुछ नेताओं ने समूचे मुसलिम समुदाय को निशाना बनाने की अपनी चिर-परिचित राजनीति का जो दाँव मीडिया की मदद से खेला, उसकी गूँज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुई और बीजेपी सरकार की आलोचना के स्वर विदेशी मीडिया में मुखर होने लगे। 

इसलामी देशों के संगठन ओआईसी (ऑर्गनाइजेशन ऑफ़ इसलामिक को-ऑपरेशन) ने भारतीय मीडिया और सत्ता समूह के रवैये पर चिंता जताते हुए बयान जारी किया। 

पीएम मोदी को आना पड़ा सामने 

भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि, अरब देशों से रिश्तों और आर्थिक साझेदारियों पर इस सबका मिला-जुला असर भाँपते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से किए गए एक ट्वीट में यह संदेश दिया गया कि कोरोना वायरस हमला करने से पहले जाति, धर्म, भाषा या देश की सीमाएँ नहीं देखता, इसलिए इससे मुक़ाबले की रणनीति में एकता और भाईचारे को प्रमुखता देनी चाहिए। 

लेकिन प्रधानमंत्री के इस सद्भावना संदेश को न तो सरकार परस्त मीडिया ने तरजीह दी और न ही नेताओं ने। विवाद बढ़ता देख तेजस्वी सूर्या अब अपना ट्वीट हटा चुके हैं लेकिन अरब देशों में जो संदेश जाना था, वह जा चुका। 

हालात ये हैं कि जिस यूएई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वहां के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया गया था, वहीं पर अब भारतीयों के सोशल मीडिया अकाउंट्स पर नज़र रखी जा रही है और उनकी पोस्ट्स की पड़ताल की जा रही है। 

अरब के शेख़ अपनी नाराज़गी खुलकर जता रहे हैं। इसके बाद से तेजस्वी सूर्या और सोनू निगम की बोलती बंद है। आर्गेज्म और अज़ान से जुड़े विवादित ट्वीट हटाए जा चुके हैं। उधर, महात्मा गांधी को संत मानने वालीं यूएई की राजकुमारी का रवैया सख़्त है।

आपदाएँ समाज की सहनशक्ति की परीक्षा लेती हैं। राजनीति की नैतिकता की भी। ऐसे समय में महात्मा गांधी को याद करना चाहिए। महात्मा गांधी ने हमेशा अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक समुदाय के बीच भाईचारे की भावना पर ज़ोर दिया था। 

गाँधी जी का संदेश 

हिंदुस्तान की आज़ादी और बँटवारे के दौरान और उसके फ़ौरन बाद के माहौल में महात्मा गांधी का मन अशांत था और उन्हें लगने लगा था कि आज़ाद भारत में उनकी आवाज़ का असर कम हो रहा है। सांप्रदायिक नफ़रत और हिंसा के बीच 22 सितंबर, 1947 को दिल्ली की एक प्रार्थना सभा में गांधी जी ने  कहा था - 

‘‘अकलियत के लिए सम्मान रखना अक्सरियत का भूषण है। उसका तिरस्कार करने से अक्सरियत पर दुनिया हंसेगी। अपने में विश्वास और जिसको दुश्मन मानें, उसका उद्धार करने में हमारी रक्षा होती है। इसलिए मैं ज़ोर से कहता हूं कि हिंदू, सिख और मुसलिम जो दिल्ली में है, वे दोस्ताना तौर से एक-दूसरे से मिलें और सारे मुल्क को वैसा करने के लिए कहें। आप दुनिया के लिए नमूना बनें।”

बेहतर होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महात्मा गांधी की सीख को ध्यान में रखते हुए मौजूदा माहौल में हिंदू-मुसलिम एकता की बात को बार-बार अपने भाषणों में, मन की बात में और अपने ट्वीट वग़ैरह में दोहरायें और लोगों से भी इस पर अमल करने को कहें। प्रधानमंत्री अगर ऐसा करते हैं तो उनकी सलाह पर ताली-थाली पीटने वाली और दिये जलाने वाली जनता और उसके नेता भी शायद अपना रास्ता बदल दें। ऐसा हो जाए तो कितना अच्छा होगा।