क्या मोदी जी को राम मंदिर का शिलान्यास करने का अधिकार है? 

09:03 am Aug 05, 2020 | अनिल जैन - सत्य हिन्दी

गंगा की निर्मलता और अविरलता के लिए 112 दिन तक अनशन करके 11 अक्टूबर, 2018 में अपने जीवन का अंत कर लेने वाले स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद ने अपनी मृत्यु से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे पत्रों में उन्हें गंगा की अवहेलना करने, उसके हितों को हानि पहुंचाने और उसे धोखा देने के साथ ही अपनी संभावित मृत्यु का जिम्मेदार भी ठहराया था। 

स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद ने प्रधानमंत्री मोदी को भेजे पत्र में लिखा था, ''मैं अपने प्राणों का त्याग करने के बाद प्रभु राम के दरबार में पहुंच कर उनसे मां गंगा की अवहेलना करने और उनके हितों को हानि पहुंचाने वालों को समुचित दंड देने की प्रार्थना करूंगा और अपनी हत्या का आरोप भी व्यक्तिगत रूप से आप पर लगाऊंगा।’’ 

स्वामी ज्ञानस्वरूप सांनद संन्यास धारण करने से पहले भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), कानपुर में अध्यापन का कार्य करते थे और प्रोफेसर गुरुदास अग्रवाल के नाम से जाने जाते थे।

1974-75 में जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का समर्थन करने के कारण पैदा हुए विवाद के चलते उन्होंने आईआईटी की नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। 

सिंचाई के लिए नदियों पर बांधों के निर्माण की परिकल्पना में उनकी खास भूमिका थी, लेकिन भगीरथी नदी पर बनने वाले टिहरी बांध की स्वीकृति में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका होने और बाद में टिहरी बांध की दुर्दशा देखकर उनका आधुनिक विकास से मोहभंग हो गया था। 

गंगा की निर्मलता, अविरलता, उसके प्रदूषण मुक्ति के उपायों और उसके तकनीकी पहलुओं की उन्हें बहुत गहरी समझ थी। गंगा की दुर्दशा ने उन्हें अध्यात्म की ओर मोड़ दिया और उन्होंने अपना शेष जीवन इसकी निर्मलता और अविरलता बहाल कराने में अर्पित करने का संकल्प ले लिया। 

11 जून, 2011 को गंगा दशहरा के दिन ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के उत्तराधिकारी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद से ज्ञान-दीक्षा लेकर उन्होंने संन्यासी वेष धारण कर लिया। इसके बाद उनका नाम स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद हो गया और वे गंगा को बचाने के काम में जुट गए।

नगाधिराज हिमालय की बेटी मानी जाने वाली, देश के करोड़ों-करोड़ लोगों की आस्था की प्रतीक और दुनियाभर के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने वाली गंगा की अविरलता बहाल कराने में केंद्र सरकार की वादाखिलाफी, अकर्मण्यता और जुमलेबाजी के ख़िलाफ़ स्वामी ज्ञानस्वरूप ने 22 जून, 2018 से अनशन शुरू किया था। अनशन के 112वें दिन यानी 11 अक्टूबर को उनके जीवन का अंत हो गया। 

गंगा को अविरल बहता देखने का उनका सपना पूरा नहीं हो सका लेकिन गंगा की सफाई के नाम पर भ्रष्टाचार की गंगा अभी भी अविरल बह रही है। वह कब तक बहती रहेगी, कोई नहीं बता सकता।

संघ ने कर लिया किनारा

हालांकि स्वामी ज्ञानस्वरूप का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से औपचारिक तौर पर कोई जुड़ाव नहीं था, लेकिन जब तक केंद्र में बीजेपी की सरकार नहीं बनी थी, तब तक संघ उन्हें अपना ही आदमी मानता था। गंगा के निर्मलीकरण के उनके अभियान को भी संघ अपना समर्थन देता था। संघ के बड़े पदाधिकारी भी उनसे मिलने अक्सर हरिद्वार जाया करते थे। लेकिन केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने के बाद संघ के लोगों ने उनसे पूरी तरह किनारा कर लिया था।

स्वामी ज्ञानस्वरूप बड़े वोट बैंक वाली किसी जाति से नहीं आते थे। दूसरे बाबाओं और स्वामियों की तरह वे लोगों को 'जीने की कला’ सिखाने या 'कुंडलिनी जाग्रत’ करने का कारोबार भी नहीं करते थे। उनके पास कोई धार्मिक-आध्यात्मिक साम्राज्य यानी पांच सितारा मठ या आश्रम, 'विशेष साधना’ के लिए कोई आधुनिक गुफा और चमचमाती आयातित कारों का बेड़ा भी नहीं था। 

बाजार-राजनीति से कोई वास्ता नहीं 

वे राजनीति में रमे हुए दूसरे साधुओं और स्वामियों की तरह किसी राजनीतिक दल की मार्केटिंग भी नहीं करते थे और न ही उन्हें बड़े नेताओं या मंत्रियों की सोहबत में रहने का शौक था। उनके पास धनाढ्य शिष्यों-अनुयायियों का विशाल समुदाय भी नहीं था। कुल मिलाकर वे बाजार और राजनीति के संत नहीं थे। शायद यही वजह रही कि गाय, गंगा, मंदिर आदि की राजनीति करने वाले राजनीतिक कुनबे ने उनकी सुध नहीं ली और वे गंगा की मुक्ति के लिए संघर्ष करते हुए खुद ही इस जीवन से मुक्त हो गए।

स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद।

स्वामी निगमानंद ने भी दी जान

गंगा को बचाने के लिए जान देने वाले स्वामी ज्ञानस्वरूप इस दशक में दूसरे पर्यावरण प्रेमी संन्यासी थे। इससे पहले 2011 में स्वामी निगमानंद ने भी इसी तरह हरिद्वार में अनशन करते हुए 13 जून को अपनी जान दे दी थी। जिस दिन निगमानंद का निधन हुआ था वह उनके अनशन का 115वां दिन था। 

स्वामी ज्ञानस्वरूप ने मनमोहन सिंह की सरकार के समय 2010 और 2012 में भी अनशन किए थे। 2012 में उनके अनशन के परिणामस्वरूप गंगा की मुख्य सहयोगी नदी भगीरथी पर बन रहे लोहारी नागपाल, भैरव घाटी और पाला मनेरी बांधों की परियोजना रोक दी गई थी, जिसे मोदी सरकार के आने के बाद फिर शुरू कर दिया गया था। सरकार से इन बांधों की परियोजना पर आगे का काम रोकने और गंगा एक्ट लागू करने की मांग को लेकर ही स्वामी ज्ञानस्वरूप ने 2018 में अनशन शुरू किया था।

2014 में ‘मां गंगा के बुलावे’ पर चुनाव लड़ने बनारस पहुंचे नरेंद्र मोदी भी प्रधानमंत्री बनने के बाद कई विदेशी मेहमानों को बनारस ले जाकर गंगा की आरती कर आए, लेकिन गंगा की हालत में सुधार उनकी प्राथमिकता में नहीं रहा।

मोदी का यू-टर्न

2012 में जब स्वामी ज्ञानस्वरूप ने अनशन किया था, तब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और उन्होंने ट्वीट करके चिंता जताते हुए केंद्र सरकार से आग्रह किया था कि वह स्वामी ज्ञानस्वरूप की मांगों को गंभीरता से ले। लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में मोदी ने न तो स्वामी ज्ञानस्वरूप के अनशन पर कोई प्रतिक्रिया जताई और न ही उनके किसी पत्र का उत्तर दिया। 

स्वामी ज्ञानस्वरूप ने प्रधानमंत्री मोदी को कुल चार पत्र लिखे थे। दो पत्र उन्होंने अनशन शुरू करने से पहले और दो पत्र अनशन के दौरान। पहले के दो पत्रों में उन्होंने मोदी को अपने छोटे भाई का संबोधन देते हुए गंगा की दुर्दशा की ओर उनका ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की थी। 

24 फरवरी, 2018 को लिखे अपने पहले पत्र में स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद ने लिखा था, “तुम्हारा अग्रज होने, तुमसे विद्या-बुद्धि में भी बड़ा होने और सबसे ऊपर मां गंगा जी के स्वास्थ्य-सुख-प्रसन्नता के लिए सब कुछ दांव पर लगा देने के लिए तैयार होने में तुम से आगे होने के कारण गंगा जी से संबंधित विषयों में तुम्हें समझाने का, तुम्हें निर्देश तक देने का जो मेरा हक बनता है, वह मां की ढेर सारी मनौतियों और कुछ अपने भाग्य और साथ में लोक-लुभावनी चालाकियों के बल पर तुम्हारे सिंहासनारूढ़ हो जाने से कम नहीं हो जाता।”

फिर गंगा को लेकर अपनी तीन अपेक्षायें स्पष्ट रूप से रखने के बाद स्वामी ज्ञानस्वरूप ने लिखा था, “पिछले साढ़े तीन से अधिक वर्ष तक तुम्हारी और तुम्हारी सरकार की प्राथमिकताएं और कार्यपद्धति देखते हुए मेरी अपेक्षाएं मेरे जीवन में पूरा होने की सम्भावना नगण्य ही हैं और मां गंगाजी के हितों की इस प्रकार उपेक्षा से होने वाली असह्य यातना से मेरा जीवन ही यातना बनकर रह गया है। अत: मैंने निर्णय किया है कि गंगा दशहरा (22 जून, 2018) तक उपरोक्त तीनों अपेक्षाएं पूरी न होने की स्थिति में मैं आमरण उपवास करता हुआ और मां गंगा जी को पृथ्वी पर लाने वाले महाराजा भगीरथ के वंशज शक्तिमान प्रभु राम से मां गंगा के प्रति अहित करने और अपने एक गंगा भक्त बड़े भाई की हत्या करने का अपराध का तुम्हें समुचित दंड देने की प्रार्थना करता हुआ प्राण त्याग दूं।”

13 जून, 2018 को स्वामी ज्ञानस्वरूप ने दूसरे पत्र में भी प्रधानमंत्री को छोटा भाई ही संबोधित करते लिखा, “जैसा मुझे पहले ही जानना चाहिए था, साढ़े तीन महीने के 106 दिनों में, न कोई प्राप्ति सूचना न कोई जवाब या प्रतिक्रिया या मां गंगाजी या पर्यावरण के हित में (जिससे गंगाजी या नि:सर्ग का कोई वास्तविक हित हुआ हो) कोई छोटा सा भी कार्य। तुम्हें क्या फुरसत है मां गंगा की दुर्दशा या मुझ जैसे बूढ़े की व्यथा की ओर देखने की ठीक है भाई मैं भी क्यों व्यथा झेलता रहूं” 

दोनों पत्रों का जवाब नहीं मिलने पर स्वामी ज्ञानस्वरूप ने तीसरा पत्र लिखा, लेकिन तीसरा पत्र लिखने तक उन्हें यह जानकारी हो गई कि उनके दो पत्रों का जवाब क्यों नहीं आया।

उन्होंने अपने कुछ करीबी लोगों को बताया भी था कि उनके पहले पत्र से प्रधानमंत्री के अहम को चोट पहुंची है, जिसमें उन्होंने मोदी को उम्र के साथ ही विद्या-बुद्धि में भी अपने से छोटा बताया था। यानी स्वामी ज्ञानस्वरूप को समझ में आ गया था कि उनकी भाषा से प्रधानमंत्री को ठेस पहुंची है। 

‘कॉरपोरेट घरानों को ही लाभ’ 

अत: 5 अगस्त, 2018 को लिखे तीसरे पत्र में उन्होंने मोदी को आदरणीय प्रधानमंत्री कह कर संबोधित किया और 'तुम’ की जगह 'आप’ का इस्तेमाल किया। उन्होंने लिखा, ''मेरी अपेक्षा यह थी कि आप गंगाजी के लिए और विशेष प्रयास करेंगे, क्योंकि आपने तो गंगा का मंत्रालय ही बना दिया था, लेकिन इन चार सालों में आपकी सरकार ने जो कुछ भी किया उससे गंगाजी को कोई लाभ नहीं हुआ, बल्कि गंगा के नाम पर कॉरपोरेट घरानों को ही लाभ मिलता दिख रहा है।”

इस तीसरे पत्र में स्वामी ज्ञानस्वरूप ने मोदी को राम दरबार में दंड दिलाने की बात नहीं की, लेकिन गंगा से संबंधित अपनी मांगों को दोहराते हुए लिखा, ''अगर ये मांगें स्वीकार नहीं होती हैं तो मैं गंगाजी के लिए उपवास करते हुए अपने प्राण त्याग दूंगा, क्योंकि गंगाजी का काम मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण है।’’

चौथा और अंतिम पत्र 

चौथे और अंतिम पत्र में भी उन्होंने मोदी को आदरणीय प्रधानमंत्री के रूप में संबोधित किया और अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए लिखा, ''आपने 2014 के चुनाव में वाराणसी से पर्चा दाखिल करते हुए अपने भाषण में कहा था- “मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है। अब गंगा से लेना कुछ नहीं, अब तो बस देना ही है। मैंने समझा था आप भी हृदय से गंगा जी को मां मानते हैं (जैसे कि मैं स्वयं मानता हूं) और मां गंगाजी के नाते आप मुझसे 18 वर्ष छोटे होने से मेरे छोटे भाई हुए। इसी नाते आपको पहले दो पत्र छोटा भाई मानते हुए लिख डाले। जुलाई के अंत में ध्यान आया कि भले ही मां गंगा जी ने आपको बड़े प्यार से बुलाया, जिताया और प्रधानमंत्री पद दिलाया पर सत्ता की जद्दोजहद (और शायद मद भी) में मां किसे याद रहेगी, और जब मां की ही याद नहीं तो भाई कौन और कैसा।” 

फिर उन्होंने अपना अंतिम निर्णय सुनाते हुए लिखा, ''आज मात्र नींबू पानी लेकर उपवास करते हुए मेरा 101वां दिन है- यदि सरकार को गंगाजी के विषय में कोई पहल करनी थी तो इतना समय पर्याप्त से भी अधिक था। अत: मैंने निर्णय लिया है कि मैं आश्विन शुक्ल प्रतिपदा (तदनुसार 9 अक्टूबर, 2018) को मध्यान्ह अंतिम गंगा स्नान, जीवन में अंतिम बार जल और यज्ञशेष लेकर जल भी पूर्णतया लेना छोड़ दूंगा और प्राणांत की प्रतीक्षा करूंगा (9 अक्टूबर को मध्याह्न 12 बजे के बाद यदि कोई मुझे मां गंगाजी के बारे में मेरी सभी मांगें पूरी करने का प्रमाण भी देगा तो मैं उसकी तरफ ध्यान भी नहीं दूंगा)।’’ 

उन्होंने आगे लिखा, ‘‘प्रभु राम जी मेरा संकल्प शीघ्र पूरा करें, जिससे मैं शीघ्र उनके दरबार में पहुंच, गंगाजी की (जो प्रभु रामजी की भी पूज्या हैं) अवहेलना करने और उनके हितों को हानि पहुंचाने वालों को समुचित दंड दिला सकूं। उनकी अदालत में तो मैं अपनी हत्या का आरोप भी व्यक्तिगत रूप से आप पर लगाऊंगा- अदालत माने न माने।’’

11 अक्टूबर, 2018 को स्वामी ज्ञानस्वरूप की मौत के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट किया, ''श्री जीडी अग्रवाल के निधन की खबर से दुख हुआ। सीखने, सिखाने, पर्यावरण संरक्षण, खासकर गंगा सफाई के लिए उनके अंदर की ललक हमेशा याद की जाएगी। मेरी श्रद्धांजलि।’’

गंगा और राम के अनन्य आराधक स्वामी ज्ञानस्वरूप द्वारा लिखे गए चार पत्रों और उनके 112 दिन के अनशन पर प्रधानमंत्री की यह पहली और अंतिम प्रतिक्रिया थी। सवाल है कि प्रधानमंत्री मोदी स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद से मिलने या उनके पत्रों का जवाब देने से क्यों कतराते रहे इससे भी बड़ा सवाल ज्ञानस्वरूप खुद परोक्ष रूप से खड़ा कर गए हैं कि क्या मोदी को राम मंदिर का शिलान्यास करने का नैतिक अधिकार है