राहुल गाँधी कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दें या न दें, यह प्रश्न मुझसे कई टीवी चैनलों ने कांग्रेस-कार्यसमिति की बैठक के पहले पूछा तो मैंने कहा कि अगर वह दें तो भी कांग्रेस उसे स्वीकार नहीं करेगी। अब यही हुआ। कांग्रेस अब एक लोकतांत्रिक पार्टी नहीं, प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बन चुकी है। यदि राहुल का इस्तीफ़ा हो ही जाता तो बताइए कि क्या यह कंपनी विधवा नहीं हो जाती? इसका बोझ कौन उठाता? किस कांग्रेसी नेता की ऐसी हैसियत है कि वह कांग्रेस को चला सके? कांग्रेस में नेता हैं ही कहाँ? सब नौकर हैं, जैसे कि किसी कंपनी में होते हैं।
इंदिराजी के वक़्त इसे अंग्रेज़ी में नेशनल कांग्रेस कहा जाता था यानी एन.सी.। मैं इसकी हिंदी किया करता था। एन. का अर्थ नौकर और सी. का अर्थ चाकर। यानी ‘नौकर-चाकर कांग्रेस’। आप प्रधानमंत्री बन जाएँ या राष्ट्रपति। यदि आप कांग्रेसी हैं तो आपकी हैसियत इंदिरा गाँधी परिवार के नौकर-चाकर की ही रहेगी। इसका अर्थ यह नहीं कि कांग्रेस में योग्य लोगों का अभाव है। कांग्रेस में अब भी दर्जन भर लोग ऐसे हैं, जो प्रधानमंत्री बनने के लायक हैं लेकिन पिछले 50 साल में कांग्रेस का स्वरूप ऐसा हो गया है कि यदि राहुल और प्रियंका उसका नेतृत्व न करें तो उसे बिखरते देर नहीं लगेगी। कांग्रेस का ज़िंदा रहना और मज़बूत होना देश के लोकतंत्र के लिए बेहद ज़रूरी है।
अब अगले पाँच साल तक एक भाई-भाई पार्टी का मुक़ाबला एक भाई-बहन पार्टी करेगी। अमित और नरेंद्र के मुक़ाबले राहुल और प्रियंका होंगे। बीजेपी भी अब कांग्रेस-जैसी बनती जा रही है।
दोनों पार्टियों के चरित्र में एकरूपता आती जा रही है। कांग्रेस कार्यसमिति ने राहुल को पूर्ण अधिकार दे दिया है कि वह पार्टी का ढाँचा बदल दें। ढाँचा बदलने का अर्थ क्या है? क्या नए लोगों को पद दे देने से ढाँचा बदल जाएगा?
कांग्रेस का ढाँचा कैसा हो?
ढाँचा बदलने का पहला क़दम यह है कि पार्टी के हर पद के लिए चुनाव होना चाहिए। अध्यक्ष पद के लिए भी। ऊपर से लोगों को नहीं थोपा जाना चाहिए। दूसरा, अपनी अकड़ छोड़कर देश की लगभग सभी प्रांतीय पार्टियों का महासंघ खड़ा करना चाहिए।
तीसरा, सबसे बड़ा काम जो कांग्रेस को करना चाहिए, वह यह कि जन-आंदोलन और जन-जागरण के अभियान चलाने चाहिए। ऐसे अभियान जो पार्टियों की क्यारियाँ भी तोड़ डालें। जैसे अभियान कभी महात्मा गाँधी और बाद में डाॅ. लोहिया ने चलाए थे। जैसे जात-तोड़ो, अंग्रेज़ी हटाओ, नर-नारी समता, भारत-पाक महासंघ, विश्व-निरस्त्रीकरण, संभव बराबरी। इस तरह के अभियानों में सर्व शिक्षा, सर्व स्वास्थ्य, सर्व सुरक्षा, पंथ-निरपेक्ष, नशाबंदी, रिश्वतमुक्ति, दहेजमुक्ति जैसे अभियान भी जोड़े जा सकते हैं। इन अभियानों में सभी पार्टियों के लोग भाग ले सकते हैं।
अभी तो कांग्रेस पार्टी की देखादेखी सभी पार्टियों के कार्यकर्ताओं ने अपने आप को ‘दलालों की फ़ौज’ बना लिया है। वे वोट और नोट कबाड़ना ही अपना पवित्र कर्तव्य समझते हैं। यदि राहुल कुछ हिम्मत करें तो कांग्रेस ही नहीं, भारत की राजनीति को भी सही दिशा मिल सकती है।
(डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग www.drvaidik.in से साभार)