अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप भारत और चीन के सीमा-विवाद में मध्यस्थता करने के लिए उतावले हो रहे थे और अब वे हांगकांग को लेकर चीन से भिड़ गए हैं। कोरोना को लेकर चीन और उसके चहेते विश्व स्वास्थ्य संगठन से ट्रंप पहले ही दो-दो हाथ कर चुके हैं, अब उन्होंने हांगकांग को लेकर ऐसी धमकी दे दी है कि अमेरिका और चीन के बीच शीत युद्ध की शुरुआत तो हो ही गयी है, इससे भारत को भी काफी नुक़सान होने की संभावना है।
हांगकांग के साथ भारत का व्यापार लगभग 31 अरब डॉलर का है और लगभग 40 हजार भारतीय वर्षों से वहां रहते हैं। चीन और हांगकांग के बीच तनाव का मुख्य कारण चीनी सरकार का वह नया कानून है, जिसके अंतर्गत हांगकांग के अपराधियों को चीन को सौंपना पड़ेगा।
ऐसा क्यों ऐसा इसलिए क्योंकि चीन समझता है कि हांगकांग उसका हिस्सा है जबकि हांगकांग मानता है कि उसकी बहुसंख्या चीनी ज़रूर है लेकिन वह चीन के अन्य प्रांतों की तरह चीन का प्रांत नहीं है। क्योंकि जब 1997 में वह ब्रिटेन के डेढ़ सौ साल के राज से मुक्त हुआ तो इस शर्त पर कि ‘एक देश और दो व्यवस्थाएं’ चलेंगी यानि वह चीन के साथ रहते हुए भी स्वायत्त रहेगा। यह व्यवस्था 2047 तक चलेगी लेकिन अब चीन हांगकांग को अपने प्रांतों की तरह ख़ुद के अधीन बनाने पर तुला हुआ है।
सड़कों पर उतरे लाखों लोग
चीन की इस कार्रवाई को लेकर हांगकांग में जबरदस्त जन-आंदोलन खड़ा हो गया है। लाखों लोग इन अहिंसक प्रदर्शनों में सड़क पर उतर आए हैं। यदि चीनी सरकार ने हांगकांग को अपने कब्जे में ले लिया तो अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों ने उसे जो विशेष दर्जा दे रखा है, उसे वे रद्द कर देंगे। इससे हांगकांग की अर्थव्यवस्था ही चौपट नहीं हो जाएगी बल्कि वहां रहने वाले हजारों गैर-चीनी लोग भाग खड़े होंगे।
चीन की सोची-समझी रणनीति!
भारत और अमेरिका के वीजा-इच्छुकों की लंबी कतारें लगनी अभी से शुरू हो गई हैं। जाहिर है कि इस विवाद में भारत किसी भी देश के साथ उलझना नहीं चाहेगा लेकिन यह भी शक है कि इन दिनों कोरोना की अंतरराष्ट्रीय बदनामी और अपनी अंदरुनी मुसीबतों से चीनी लोगों का ध्यान हटाने के लिए चीन ने हांगकांग और भारत-चीन सीमा-विवाद का नया राग छेड़ दिया हो।
(डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग www.drvaidik.in से साभार)