मोदी यूक्रेन क्यों गए थे? इतनी विदेश यात्राएँ क्यों करते हैं?
हमने अपने प्रधानमंत्री को पिछले दस-ग्यारह सालों के दौरान या उसके भी पहले के बारह-तेरह सालों में जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे किसी रेलवे स्टेशन पर, ट्रेन की किसी बोगी के पास या उसकी किसी सीट पर बैठे हुए कब देखा होगा? याददाश्त पर ज़ोर डालकर देखिए शायद ऐसा कोई चित्र ध्यान में आ जाए! प्रधानमंत्री स्वयं (और उनके जीवनीकार) कहते नहीं अघाते कि मोदी उत्तरी गुजरात के वडनगर स्टेशन पर चाय बेचने के काम में पिता की मदद करते थे।
मोदी के पहली बार शपथ लेते ही दुनिया भर में मशहूर हो गया था कि एक चाय बेचने वाले का बेटा 130 करोड़ लोगों के देश का प्रधानमंत्री बन गया है! मोदीजी और ट्रेन के जो दृश्य याद आते हैं उनमें एक शायद यह है कि वे दिल्ली में किसी मेट्रो में कुछ यात्रियों के साथ बैठे संक्षिप्त यात्रा कर रहे हैं। कुछ महत्वपूर्ण रेलगाड़ियों के शुभारंभ पर हरी झंडी दिखाने की घटनाओं को भी शामिल किया जा सकता है।
उक्त परिदृश्य के विपरीत कल्पना कीजिये कि एक ऐसा प्रधानमंत्री जो चौबीसों घंटे देशवासियों की सेवा में जुटा रहता है, कभी आराम नहीं करता, कोई छुट्टी नहीं लेता वह किसी तीसरे देश की धरती से किसी चौथे मुल्क की राजधानी पहुँचने के लिए ट्रेन से यात्रा कर रहा हो! यात्रा भी कोई छोटी-मोटी नहीं! पूरे दस घंटे की!
जीवनियाँ लिखने वालों के लिए मनोवैज्ञानिक विश्लेषण का विषय हो सकता है कि एक ऐसा शासनाध्यक्ष जो हवाई जहाज़ पर ही यात्राएँ करता हुआ नज़र आता है, हवाई पट्टियों पर भी ज़्यादा पैदल चलते हुए नहीं दिखाया जाता, उसने एक युद्धरत देश से गुजरती हुई ट्रेन के डिब्बे में दस घंटे कैसे बिताए होंगे? मोदी पूरे समय क्या सोचते रहे होंगे? साथ में सफ़र कर रहे उच्च-स्तरीय दल के साथ भी कितनी देर, क्या बातें की होंगी? ट्रेन ‘रेल फ़ोर्स-वन’ चाहे जितनी भी सुविधाजनक रही हो, पोलैंड की राजधानी वारसा से यूक्रेन की राजधानी कीव के बीच 800 किलोमीटर की दूरी मोदी के क़द वाले अतिविशिष्ट व्यक्ति के मान से कम नहीं मानी जा सकती!
पोलैंड की सीमा पार करते ही ट्रेन साढ़े तीन करोड़ की आबादी वाले एक ऐसे छोटे से देश से गुज़री होगी जो पिछले ढाई सालों से महाशक्ति रूस के तानाशाह शासक पुतिन के साथ अपनी आज़ादी बचाने की लड़ाई लड़ रहा है। जिसका मानना है भारत रुस से तेल ख़रीदकर यूक्रेन के ख़िलाफ़ युद्ध में पुतिन की आर्थिक रूप से मदद ही कर रहा है। यूक्रेन के राष्ट्रपति ने मोदी को ऐसा जता भी दिया!
पीएम की ट्रेन कहीं-कहीं पर रेल की पटरियों के समानांतर बिछी उन दुर्भाग्यशाली सड़कों की आत्माओं को चीरती हुई भी गुजरी होगी जिन पर पैदल चलकर अनगिनत छोटे-छोटे बच्चों को अकेले ही सीमावर्ती देश पोलैंड और रोमानिया आदि में शरण के लिए पहुँचना पड़ा होगा। उन्हें अपने अभिभावकों को रूस से लड़ने के लिए यूक्रेन में ही छोड़ना पड़ा था।
फ़रवरी 2022 में यूक्रेन पर रूसी हमले के तुरंत बाद जारी हुए कुछ चित्रों में दिखाया गया था कि बच्चों के नाम-पते उनकी पीठों पर स्याही से उकेरकर अभिभावकों ने उन्हें अकेले ही सीमाओं की ओर रवाना कर दिया था। बच्चे अभी स्वदेश नहीं लौट पाए होंगे क्योंकि युद्ध जारी है। एक अनुमान के अनुसार 35,160 यूक्रेनी नागरिक अब तक रूस के साथ लड़ाई में मारे जा चुके हैं।
प्रधानमंत्री के सात घंटे के यूक्रेन प्रवास की प्रमुख घटनाओं में उनका कीव के ‘ओएसिस पीस पार्क’ स्थित महात्मा गांधी की प्रतिमा पर श्रद्धांजलि अर्पित करने और राष्ट्रपति जेलेंस्की के साथ उस स्मारक स्थल की यात्रा को शामिल किया जा सकता है जिसका निर्माण रूसी हमलों में मारे गए बच्चों की स्मृति में किया गया है। आठ जुलाई को अपनी मॉस्को यात्रा के दौरान मोदी जब राष्ट्रपति पुतिन से मुलाक़ात कर रहे थे यूक्रेन के एक बच्चों के अस्पताल पर हुए रूसी हमले में कई मासूमों की जानें चली गई थीं।
मीडिया में चलने वाली चर्चाओं की चिंताएँ बताती हैं कि पीएम की यूक्रेन यात्रा विफल रही। वे अगर युद्ध समाप्त करवाने वहाँ गए थे तो यूक्रेन की ओर से कटुतापूर्ण जवाब लेकर ही स्वदेश लौटना पड़ा। इसका सुबूत यह कहा जा सकता है कि कीव से नई दिल्ली वापसी के सिर्फ़ तीन दिन बाद ही रूस ने यूक्रेन पर अपना अब तक का सबसे बड़ा हमला कर दिया। देश को जानकारी मिलना बाक़ी है कि मोदी यूक्रेन क्यों गए थे? वे इतनी विदेश यात्राएँ क्यों करते हैं?