करण थापर के इंटरव्यू से क्यों उठ गये थे मोदी? 

07:17 am May 05, 2022 | श्याम मीरा सिंह

पत्रकार करण थापर को आप जानते ही होंगे। थापर की पढ़ाई कैम्ब्रिज और ऑक्सफ़ोर्ड में हुई है। जबर दिमाग है। थापर ने राजीव गांधी, चन्द्रशेखर, पीवी नरसिम्हा राव जैसे पूर्व प्रधानमंत्रियों के अलावा जिया उल हक, आंग सान सू की और बेनज़ीर भुट्टो का इंटरव्यू भी लिया है। साल 2017 में बराक ओबामा का इंटरव्यू भी थापर ने लिया था। इस इंटरव्यू के ठीक दस साल पहले थापर ने नरेंद्र मोदी का भी इंटरव्यू लिया था। साल 2007 में नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। मुख्यमंत्री के रूप में यह उनका दूसरा कार्यकाल था। थापर ने नरेंद्र मोदी से इंटरव्यू सेट करवाने के लिए अरुण जेटली से मदद ली। जेटली ने ही नरेंद्र मोदी के साथ करण थापर का इंटरव्यू फिक्स करवाया था।

इंटरव्यू अक्टूबर की दोपहर में अहमदाबाद में तय किया गया था। करण सुबह की ही फ़्लाइट से अहमदाबाद पहुँच गए थे। यह वही सुबह थी, जिस दिन बेनज़ीर भुट्टो की कराची में वर्षों के निर्वासन के बाद नाटकीय रूप में वापसी हो रही थी और एक ज़ोरदार बम विस्फोट से उनका जुलूस तितर-बितर हो गया था और सैकड़ों लोग मारे गए थे। साक्षात्कार के अलावा यह बात भी करण थापर के दिमाग़ में चल रही थी। दरअसल, बेनजीर भुट्टो और करण थापर दोनों ने ही ऑक्सफोर्ड से पढ़ाई की है, दोनों यूनिवर्सिटी के दिनों से ही अच्छे दोस्त थे। करण थापर की पत्नी निशा और भुट्टो भी आपस में अच्छी दोस्त रही थीं, कुल मिलाकर भुट्टो और करण थापर का सम्बंध काफी पारिवारिक था। अचानक से एक बम धमाके में अपनी दोस्त की मौत की ख़बर ने ज़रूर ही करण थापर को प्रभावित किया रहा होगा।

साक्षात्कार दोपहर में होना था। विमान सुबह ही अहमदाबाद पहुंच चुका था, करण एयरपोर्ट पर ही थे कि तभी उनका फ़ोन बजा। फ़ोन नरेंद्र मोदी का था, नरेंद्र मोदी ने कहा  ‘करणजी पहुंच गए?’ यह पहला संकेत था कि वह किस तरह से मीडिया को संभालने के मामले में सावधानी बरतते हैं। मोदी ने कहा, ‘अपना इंटरव्यू तो चार बजे है, लेकिन थोड़ा पहले आना, गप-शप करेंगे।’ करण थोड़ा जल्दी पहुंच गए। नरेंद्र मोदी ने करण थापर का गर्मजोशी से अभिवादन किया और बातचीत की, जैसे मानो कि वह नरेंद्र मोदी के पुराने मित्र रहे हों। जबकि ऐसा नहीं था। दोनों ने चुहलबाज़ी की, हँसे और चुटकुले सुनाए। चालाक राजनेता इस तरह के तरीक़े से ही पत्रकारों को अपने पक्ष में ढीला करते हैं। आधे घंटे बाद ही दोनों इंटरव्यू के लिए कैमरे के सामने बैठे हुए थे। 

मोदी ने पीले रंग का कुरता पहना हुआ था। करण थापर ने सवालों की पहली किश्त में 2002 दंगों की बात की। करण अपनी बायोग्राफी में लिखते हैं कि ऐसा उन्होंने इसलिए किया कि यदि नरेंद्र मोदी से इस बारे में बात नहीं की जाती तो इंटरव्यू एक सांठगांठ या कायरता जैसा लगता। इसीलिए उन्होंने सबसे पहले वही प्रश्न किया।

2002 दंगों पर करण के सवाल सुनकर नरेंद्र मोदी के चेहरे पर कोई भाव नहीं दिखा, उनके भाव बदले भी नहीं। वह शांत और अप्रभावित रहे। आश्चर्य की बात है कि मोदी ने अंग्रेज़ी में जवाब देने का फ़ैसला किया। हालांकि आज उनकी अंग्रेजी भाषा पर पकड़ अच्छी है, लेकिन 2007 में उतनी नहीं थी। मेरा स्वयं का एक व्यक्तिगत ख्याल ये भी है कि हिंदी की जगह अंग्रेजी में ही उत्तर देने की चुनने के कारण मोदी के कॉन्फिडेंस में कमी ज़रूर आई होगी, शायद जितने अच्छे से वह हिंदी में हैंडल करते पाते, उतने अच्छे से अंग्रेजी भाषा में नहीं कर पाए। मैंने मोदी के कई पुराने इंटरव्यूज भी देखे हैं, उन सबमें मोदी की हाजिरजवाबी काबिलेतारीफ है। लेकिन मोदी इस इंटरव्यू में गड़बड़ा गए। खैर कारण चाहे जो भी रहा हो...

प्रधानमंत्री मोदी की हाल की तसवीर।

करण ने आगे एक और सवाल पूछा

“मैं आपको यह याद दिलाना चाहूंगा कि 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गुजरात से उसका विश्वास उठ चुका है। अप्रैल 2004 में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने खुली अदालत में कहा था कि आप आधुनिक नीरो हैं। असहाय बच्चे और मासूम महिलाएं जलती रहीं और आप मुंह फेर कर खड़े रहे। सुप्रीम कोर्ट को आपसे कोई समस्या है?"

करण ने आगे एक सवाल के जबाव में काउंटर करते हुए कहा,

“यह केवल मुख्य न्यायाधीश की सार्वजनिक तौर पर की गई टिप्पणी की ही बात नहीं है। अगस्त 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी 4600 में से 2100 मामले पुनः खोले और उन्होंने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि उनका मानना था कि मोदी के गुजरात में न्याय नहीं मिलेगा।”

आपको बता दूं कि ज़ाहिरा हबीबुल्ला एच.शेख विरुद्ध गुजरात राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने लिखा था, “जब बेस्ट बेकरी में मासूम बच्चे और असहाय महिलाएं जल रही थीं, तब आधुनिक दौर के ‘नीरो’ संभवतः यह सोच रहे थे कि अपराध करने वालों को कैसे बचाया जाए।”

साक्षात्कार को जारी रखते हुए करण ने आगे कहा-

“मैं बताता हूं कि समस्या क्या है। 2002 में गोधरा के हत्याकांड के पांच वर्ष बाद भी गोधरा का भूत आपको परेशान करता है। इसे शांत करने के लिए आपने काम क्यों नहीं किया?”

मोदी ने जबाव दिया - “यह काम मैंने मीडिया के करण थापर जैसे लोगों को दे रखा है। उन्हें आनंद करने दो।”

करण थापर ने कहा, “क्या मैं आपको कोई सलाह दे सकता हूं।”

मोदी- “मुझे कोई समस्या नहीं है।”

करण- “आप ऐसा क्यों नहीं कह सकते कि जो भी लोग मारे गए हैं या जो हुआ है, उसका मुझे क्षोभ है? आप ऐसा क्यों नहीं कह सकते कि सरकार मुसलिमों को बचाने के लिए और भी कुछ कर सकती थी?”

मोदी- “मुझे जो कहना था मैंने वह उस वक़्त कह दिया, आप मेरे बयान देख सकते हैं।”

करण-  “लेकिन इसे दोबारा नहीं कहकर और लोगों को फिर से यह संदेश न देकर आप ऐसी छवि गढ़ रहे हैं, जो गुजरात के हितों के ख़िलाफ़ है। इसे बदलना आपके हाथों में है।”

इस पूरी वार्तालाप को अब तक दो से तीन मिनट ही  हुए होंगे, नरेंद्र मोदी का चेहरा भावशून्य हो गया, लेकिन यह स्पष्ट दिख रहा था कि वह ख़ुश नहीं थे, अब उनका धैर्य टूट रहा था। नरेंद्र मोदी ने थापर से कहा- “...मुझे आराम करना है। मुझे पानी पीना है।…” इसके बाद उन्होंने माइक्रोफ़ोन निकाल दिया। पहले करण को भी लगा कि वाक़ई में उन्हें प्यास लगी होगी और उन्होंने टेबल की ओर इशारा भी किया कि पानी तो आपके पास की टेबल पर रखा है। लेकिन इतना वक़्त कहाँ था? मोदी कुर्सी छोड़ चुके थे, इस तरह पूरा साक्षात्कार वहीं ख़त्म हो गया। इसी तीन मिनट के टेप को सीएनएन-आईबीएन अगले दिन बार-बार दिखाता रहा जिसमें मोदी कह रहे थे, “आपसे दोस्ती बनी रहे बस, मैं ख़ुश हूं। आप यहां आए। आपको धन्यवाद। मैं यह साक्षात्कार नहीं कर सकता… आपके विचार हैं, आप बोलते रहिए, आप करते रहिए… देखिए मैं दोस्ताना संबंध बनाना चाहता हूं।”

यहां पर आपको लगता होगा कि दोनों के सम्बंध एकदम से बिगड़ गए होंगे। आप सही हैं। एकदम सही हैं। नरेंद्र मोदी सरकार के आने के बाद से खासकर 2016 से बीजेपी का कोई भी नेता या प्रवक्ता करण थापर के किसी भी शो में नहीं आता।

लेकिन मोदी ने तब एक राजनेता के तौर पर चतुराई दिखाई। उन्होंने इंटरव्यू के बाद भी करण थापर को साथ में कोई एक घन्टा बिठाए रखा। करण को चाय, मिठाई और गुजराती ढोकला खिलाए। उस कठिन हालात में भी मोदी की आवभगत बहुत ज़ोरदार थी। ये पूरा क़िस्सा करण थापर की जीवनी ‘Devil's Advocate: The Untold Story’ में लिखा हुआ है। 

मैं नहीं कहता कि पत्रकार को राजनेताओं या जनप्रतिनिधियों से बदतमीजी से बात करनी चाहिए, बिल्कुल नहीं। ऊंची आवाज में बात करने का हक बिल्कुल भी किसी को नहीं है। लेकिन आज जब नरेंद्र मोदी के आगे पत्रकारों को नतमस्तक देखते हैं तो करण थापर जैसे पत्रकारों के लिए सम्मान बढ़ जाता है। 

(श्याम मीरा सिंह की फ़ेसबुक वाल से) 

(मूल पाठ को छेड़े बग़ैर लेख को थोड़ा छोटा किया गया है)