गलवान घाटी में हुई मुठभेड़ के बाद भारत में कितना कोहराम मचा हुआ है। हमारे विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री और प्रधानमंत्री को सफाई पर सफाई देनी पड़ रही हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय को प्रधानमंत्री की सफाई को और भी साफ-सूफ करना पड़ रहा है, विरोधी दल ऊटपटांग और भोले-भाले सवाल किए जा रहे हैं और भारत की जनता है कि उसका पारा चढ़ा जा रहा है। वह जगह-जगह प्रदर्शन कर रही है, चीनी राष्ट्रपति के पुतले जला रही है, चीनी माल के बहिष्कार की आवाज़ें लगा रही है।
हमारे कई टीवी एंकर गुस्से में अपना आपा खो बैठते हैं। हमारे 20 जवानों की अंतिम-यात्राओं के दृश्य देखकर करोड़ों लोगों की आंखें आंसुओं से भर जाती हैं। लेकिन हम जरा देखें कि चीन में क्या हो रहा है
चीन के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री ने गलवान के हत्याकांड पर अपना मुंह तक नहीं खोला है। उसके विदेश मंत्री ने हमारे विदेश मंत्री के आरोपों के जवाब में वैसा ही आरोप लगाकर छोड़ दिया है कि भारतीय सैनिकों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा का उल्लंघन किया है और वे वैसा न करें। दोनों विदेश मंत्रियों ने अपनी संप्रभुता की रक्षा की बात कही और सीमा पर शांति बनाए रखने की सलाह एक-दूसरे को दे दी
चीन में न तो भारत-विरोधी प्रदर्शन हो रहे हैं, न ही वहां के टीवी चैनल और अख़बारों ने इसे अपनी सबसे बड़ी खबर बनाया है और न ही भारतीय माल के बहिष्कार की बात कोई चीनी संस्था कर रही है। चीनी सरकार तो बिल्कुल चुप ही है। आपने जरा भी सोचा कि ऐसा क्यों हैं इसका जवाब ढूंढिए, हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान में, जो उन्होंने बहुदलीय बैठक में दिया था। उन्होंने कहा था कि हमारी सीमा में कोई नहीं घुसा है और हमारी जमीन के किसी भी हिस्से पर किसी का कब्जा नहीं है।
मोदी ने चीन के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोला। यानी चीन ने कुछ किया ही नहीं है। यह बयान नरेंद्र मोदी का नहीं, चीनी राष्ट्रपति शी चिन पिंग का-सा लगता है। उन्होंने नहीं लेकिन उनके प्रवक्ता ने यही कहा है कि चीन ने किसी रेखा का उल्लंघन नहीं किया है। यानी अभी तक देश को यह ठीक-ठाक पता ही नहीं है कि गलवान घाटी में हुआ क्या है
यह सवाल मैंने पहले दिन ही उठाया था। जब मोदी अपनी सफाई पेश कर रहे थे, तब नेता लोग क्या खर्राटे खींच रहे थे मोदी को चाहिए था कि प्रमुख नेताओं के साथ बैठकर वे सब बातें सच-सच बताते और ज़रूरी होता तो उन्हें गोपनीय रखने का प्रावधान भी कर देते। अब भी स्थिति संभाली जा सकती है।
मोदी चीनी राष्ट्रपति शी से सीधी बात करें। इस स्थानीय और अचानक झड़प पर दोनों नेता दुख और पश्चाताप व्यक्त करें। यदि वे यह नहीं करते तो माना जाएगा कि दोनों के व्यक्गित संबंध शुद्ध नौटंकी मात्र थे। यह स्थिति शी के लिए नहीं, मोदी के लिए बहुत भारी पड़ जाएगी। नेहरू पर उठी बीजेपी की उंगली सदा के लिए कट जाएगी।
(डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग www.drvaidik.in से साभार)