महिला पहलवानों पर क्यों चुप हैं मोदी की महिला मंत्री
देश की महिलाओं को सुषमा स्वराज की कमी खल रही है। निश्चित रूप से इनमें महिला पहलवान भी हैं जो बीजेपी सांसद और रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण सिंह की गिरफ्तारी की मांग को लेकर धरना प्रदर्शन कर रही हैं। मेडल लौटाने और यहां तक कि आमरण अनशन तक को वे तैयार हैं। बृजभूषण शरण सिंह पर महिला पहलवान यौन शोषण/उत्पीड़न का आरोप लगा रही हैं। मोदी सरकार में 11 महिला मंत्री हैं। लेकिन, एक भी जुबान खोलने को तैयार नहीं। क्या सुषमा स्वराज होतीं तो चुप रह सकती थीं?
सुषमा स्वराज की याद अनायास नहीं आयी है। केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी की उस तस्वीर को देखकर सुषमा की याद आयी है जिसमें वह पत्रकारों के सवालों से बचने के लिए भाग रही हैं। आगे-आगे मीनाक्षी, बाएं-दाएं पत्रकार। सवाल महिला पहलवानों से जुडे हैं, उन पर ज्यादतियों से जुड़े हैं, बीजेपी सांसद को सरकार की ओर से मिल रहे संरक्षण से जुड़े हैं।
पहलवानों से जुड़े सवाल से बचने के लिए मीनाक्षी लेखी भागने लगीं.
— Ranvijay Singh (@ranvijaylive) May 30, 2023
मीनाक्षी जी मोदी सरकार की मंत्री हैं. pic.twitter.com/YWyUXjx2on
मोदी सरकार की महिला मंत्री क्यों चुप हैं?
मोदी सरकार की महिला मंत्रियों के लिए महिला पहलवानों के साथ यौन शोषण के मुद्दे पर कुछ बोल पाना मुश्किल हो रहा है। सवाल है कि मोदी सरकार की मंत्री बेबस क्यों हैं? क्या वह उन महिला पहलवानों से भी अधिक मजबूर और लाचार हैं जिन्हें यौन शोषण/उत्पीड़न बर्दाश्त करना पड़ा और जिनकी आवाज़ को दबाने के हर संभव प्रयास न सिर्फ हुए, बल्कि जारी हैं?28 मई को नये संसद भवन का उद्घाटन हो रहा था और दूसरी तरफ महिला पहलवानों को सड़क पर पुलिस घसीट रही थी। सुषमा स्वराज को जानने वाले विश्वास के साथ कहते हैं कि वह खामोश नहीं रह सकती थीं। सऊदी अरब में घरेलू सेविका का काम कर रही भारतीय महिला हसीना बेगम पर होते जुल्मो सितम से आहत सुषमा स्वराज ने उन्हें वापस भारत लाने के लिए जी-जान एक कर दिया था। हसीना को सकुशल हैदराबाद पहुंचा देने का बाद ही उन्हें राहत मिली थी। यह 2017 की बात है।
जंतर-मंतर से खदेड़ दिए गये आंदोलनकारीः 28 मई को महिला पहलवानों के धरनास्थल को उजाड़ दिया गया था। उनके खिलाफ विभिन्न धाराओं में एफआईआर दर्ज कर लिए गये। लिहाज़ा हिरासत से बाहर आने के बाद 29 मई का वक्त अपमान पर सोचने-विचारने और आगे की कार्रवाई पर रणनीति बनाने में बीता। इस दौरान पूरे देश में झूठी खबर फैला दी गयी कि महिला पहलवानों ने अपना धरना-प्रदर्शन खत्म कर दिया है।
30 मई की सुबह से खबर जंगल में लगी आग की तरह फैली कि अंतरराष्ट्रीय महिला पहलवान साक्षी मलिक, विनेश फोगट और बजरंग पूनिया अपने-अपने मेडल को गंगा में विसर्जित करेंगे। हरिद्वार में शाम 6 बजे का वक्त मुकर्रर दिया गया। वे पहुंचे भी। भावुक दिखे। आंखों में आंसू थे। चारों ओर भीड़ थी। मगर, गंगा समिति उन्हें ऐसा करने से रोक रही थी। तर्क था कि यहां पूजा-पाठ होता है राजनीति नहीं।
मेडल विसर्जन से नरेश टिकैत ने रोका
मेडल विसर्जित करने के बाद पहलवानों की योजना इंडिया गेट पर आमरण अनशन शुरू करने की थी। दिल्ली पुलिस ने कहा कि वो उन्हें ऐसा करने नहीं देगी। यानी तकरार तय था। भला हो किसान नेता नरेश टिकैत का जिन्होंने समझा बुझाकर उन्हें ऐसा करने से रोका। आंदोलनकारी पहलवानों ने 5 दिन का समय दिया है कि बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी को सुनिश्चित किया जाए। नरेश टिकैत पर अब यह बात आ गयी है कि वे महिला पहलवानो को न्याय दिलाए।
चुप क्यों है बीजेपी-आरएसएसः आश्चर्य है कि महिला पहलवानों के साथ हजारों की भीड़ चली लेकिन मोदी सरकार की ओर से कोई नुमाइंदा इन्हें ढांढस बंधाने या कोई भरोसा देने नहीं पहुंचा। फिर सवाल उठता है कि मोदी सरकार की 11 मंत्रियों की आंखों का पानी क्यों सूख गया? क्या सुषमा स्वराज के रहते ऐसा हो सकता था? वर्तमान सरकार की महिला मंत्री अपने उन पुराने ट्वीट को हटा रही हैं जो कभी मेडल लाने पर इन महिला पहलवानों को देश की शान बताते हुए किए गये थे। इतना डर? ये डर मंत्री को है या मोदी सरकार को? क्या मोदी सरकार महिला पहलवानों के आंदोलन से डर गयी है? अगर ऐसा नहीं होता तो मीनाक्षी लेखी के दौड़ते हुए भागने वाले दृश्य नहीं बनते।
राष्ट्रवाद और भारत को विश्वगुरु बनाने की सीख देने वाले मोहन भागवत क्यों ऐसे मौकों पर चुप दिखते हैं? निर्भया आंदोलन के वक्त आरएसएस मुखर था। महिला खिलाड़ियों की ओर से जिस सांसद पर इतने घृणित आरोप लग रहे हैं उसे नये संसद भवन के उद्घाटन के मौके पर श्वेत वस्त्र में चमकते-धमकते क्या संघ नेताओं ने नहीं देखा? क्या उन्हें नहीं लगता कि बीजेपी को अपने सांसद पर कार्रवाई करनी चाहिए? नैतिकता का प्रश्न केवल संघ और बीजेपी विरोधियों के लिए है?
वर्ल्ड रेसलिंग भारत को कर सकता है सस्पेंड
भारत में भले ही महिला पहलवानों को संघर्ष में सत्ताधारी दल और ढोंगी राष्ट्रवादियों का समर्थन नहीं मिल रहा हो लेकिन दुनिया भर से इन्हें व्यापक समर्थन मिलने लगा है। वास्तव में विश्वगुरु की इमेज बनाने में जुटी मोदी सरकार ने भारत की नाक कटा दी है। ताजा खबर यह है कि 30 मई को युनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग (UWW) ने भारत को सख्त चेतावनी दी है। एक बयान जारी कर UWW ने कहा है कि 45 दिन के भीतर अगर महिला पहलवानों के बारे में समुचित अपडेट नहीं मिला तो रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया को सस्पेंड किया जा सकता है।अगर WFI सस्पेंड हुआ तो अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में भारतीय पहलवान तिरंगे के साथ खेल नहीं पाएंगे। उन्हें किसी अन्य झंडे के साथ वैश्विक प्रतियोगिता में हिस्सा लेना होगा। UWW ने कहा है कि जिस तरीके से महिला पहलवानों के साथ व्यवहार हुआ है उससे वे चिंतित हैं। पुलिस की ओर से धरनास्थल से टेंट आदि हटा लेने और प्रदर्शन की इजाजत नहीं देने पर भी चिंता व्यक्त की गयी है। प्रदर्शनकारी पहलवानों से बातचीत कर मामले को समझने की कोशिश भी करेगा युनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग।
यूडब्ल्यूडब्ल्यू का अल्टीमेटम महिला पहलवानों के उस अल्टीमेटम से कहीं बड़ा और चिंताजनक है जिसमें पांच दिन का वक्त बृजभूषण शरण सिंहकी गिरफ्तारी के लिए दिया गया है। अगर यह गिरफ्तारी नहीं होती है और दुनिया को यह लगेगा कि आरोपी को सत्ता का संरक्षण मिल रहा है तो यह विश्व के सामने भारत की छवि के लिए कतई अच्छा नहीं होगा। महिला पहलवानों की शिकायत के जांच नतीजों पर दुनिया भर में सवाल उठ रहे हैं और महिला पहलवानों को न्याय नहीं मिलने की घटना को आश्चर्य के साथ देखा जा रहा है।
प्रधानमंत्री के पैर छूने, उन्हें बॉस कहे जाने और अमेरिकी राष्ट्रपति की ओर से ऑटोग्राफ मांगे जाने के उदाहरणों से विश्वगुरु बनने की ओर अग्रसर होने के दावे बेमानी हो जाते हैं जब अपने ही देश में महिलाएं न्याय मांगती हुई बेबस नज़र आने लगें।