भारत द्वारा पाकिस्तान में स्थित जैश के आतंकवादी प्रशिक्षण केंद्र पर हमले और उसकी प्रतिक्रिया में पाकिस्तान द्वारा भारत में घुस कर किए गए धमाकों के बाद दोनों देशों में जंग छिड़ने की जो संभावनाएँ बनती दिख रही थीं, वे भारतीय विंग कमांडर अभिनंदन के पाक सीमा में पकड़े जाने और जल्दी ही रिहा कर दिए जाने के बाद काफ़ी कम हो गई हैं। लेकिन राजनीतिक पटल पर और ख़ासकर सोशल मीडिया पर जो जंग छिड़ी है, वह थमने का नाम नहीं ले रही है। यह जंग इस बात पर है कि भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के जिस ‘आतंकवादी ठिकाने’ पर हमले किए थे, उनमें कितने आतंकवादी मारे गए।
भारत की ओर से हमलों की ख़बर आने के बाद से ही ‘भक्त’ मीडिया कम-से-कम 300 आतंकवादियों और 25 ट्रेनरों के मारे जाने की ख़बर चलाने लगा था।
300 आतंकवादियों की यह संख्या कहाँ से आई, किसी को नहीं मालूम। न वायुसेना ने ऐसा कोई आँकड़ा दिया, न भारत सरकार ने। सरकार के विदेश मंत्रालय की तरफ़ से जो बयान आया, उसमें ‘बड़ी संख्या में आतंकवादियों के मारे जाने’ का अनुमान था, संख्या उसमें भी नहीं थी।
क्यों, किसने फैलाई संख्या
फिर यह 300 की संख्या किसके द्वारा फैलाई गई किसके ज़रिए फैलाई गई और क्यों फैलाई गई किसके ज़रिए फैलाई गई, यह तो हम जानते हैं - मीडिया के ज़रिए। मगर किसके द्वारा फैलाई गई और क्यों फैलाई गई, इसका केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है। हो सकता है, सरकार को पूर्व में पकड़े गए आतंकवादियों से या अपने ख़ुफ़िया सूत्रों से पहले ही मालूम रहा हो कि वे इमारतें कितनी बड़ी हैं तथा वहाँ कितने लोगों को अमूमन ट्रेनिंग दी जाती है। इधर बताया जा रहा है हमले से पहले तक वहाँ से 300 मोबाइल फ़ोनों के ऐक्टिव होने के सिग्नल मिल रहे थे।
चूँकि पुख़्ता जानकारी और सबूत के अभाव में सरकार ऑफ़िशली कोई जानकारी देने की स्थिति में नहीं थी, इसीलिए अनॉफ़िशल तौर पर मीडिया के उस तबक़े के साथ यह ‘अनुमानित’ संख्या शेयर कर दी गई जो बिना कोई सवाल किए हर सरकारी सूचना को सत्य मानकर चलाना ही अपना परम कर्तव्य समझता है।
300 आतंकवादियों के मारे जाने की संख्या क्यों फैलाई गई, इसका कारण भी साफ़ है। एक के जवाब में दस सिर काटकर लाने की हुंकार भरने वाली पार्टी के लिए यह ज़रूरी था कि संख्या इतनी बड़ी हो कि देश का जनमानस जो सीआरपीएफ़ के 40 जवानों के मारे जाने से मर्माहत था, वह अच्छा महसूस करे।
40 जवानों के बदले 300 से ज़्यादा आतंकवादियों की मौत 1:10 के अनुपात में न भी हो मगर उसके बहुत क़रीब है।
वायुसेना ने कहा, सरकार बताए संख्या
मगर मुश्किल यह है कि न सरकार यह फ़िगर क्वोट कर रही है, न वायुसेना। वायुसेना प्रमुख पत्रकारों के सामने साफ़ कह चुके हैं कि हमारा काम लक्ष्य पर हमला करना है, शव गिनना नहीं। बात सही है। वायुसेना से हम उम्मीद भी नहीं करते कि वह हताहतों की संख्या बताएगी। जो विमान पाकिस्तान में बम गिराने गए थे, उसके पायलट बम गिराकर वहाँ उतर तो नहीं सकते थे कि जाने से पहले हताहतों की संख्या गिन लें। वायुसेना प्रमुख ने हताहतों की संख्या बताने का ज़िम्मा सरकार पर डाल दिया है कि वही बता सकती है कि कितने आतंकवादी मरे और कितने घायल हुए।
कुछ लोग पूछ सकते हैं कि आख़िर हताहतों की संख्या जानना क्यों ज़रूरी है। वह कम या ज़्यादा हो तो उससे क्या अंतर पड़ता है
लोग पूछ सकते हैं कि क्या यह काफ़ी नहीं है कि भारतीय विमानों ने पाकिस्तान के आतंकवादी ट्रेनिंग सेंटरों पर हमला किया और बिना एक खरोंच लगे सारे विमान वापस आ गए क्या ऐसा करके हम पाकिस्तान की सरकार, उसकी सेना और आतंकवादी जमातों को यह संदेश देने में कामयाब नहीं हुए हैं कि यदि भारत में फिर कभी पुलवामा जैसे हमले हुए तो हम फिर से वैसा ही मुँहतोड़ जवाब देंगे जैसा कि इस बार दिया है
क्या वाक़ई ध्वस्त हुआ ट़्रेनिंग सेंटर
हम बिलकुल पाकिस्तान को मुँहतोड़ जवाब देने में कामयाब हुए हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारतीय विमानों ने पाकिस्तानी सीमा में घुसकर और अपने ‘लक्ष्यों’ को ध्वस्त करके बहुत बड़ा संदेश दिया है। लेकिन…और यह बहुत बड़ा लेकिन है और इसी से हताहतों की संख्या का मामला भी जुड़ा है। वह लेकिन यह है कि क्या हमारे विमान वाक़ई आतंकवादी ट्रेनिंग सेंटरों को ध्वस्त करने में कामयाब हुए हैं।
कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारे विमान टारगेट को पहचानने में चूक कर गए हों दूसरा सवाल यह कि अगर वाक़ई हमने आतंकवादी ट्रेनिंग सेंटर को तबाह कर दिया है तो क्या वहाँ उस समय आतंकवादी थे (अगर थे तो कितने) या हमलों की आशंका में उन्हें वहाँ से हटा दिया गया था जैसा कि कुछ विदेशी डिफ़ेंस एक्सपर्ट दावा कर रहे हैं।
रिपोर्ट कार्ड माँगना ग़लत कैसे
आप कहेंगे, मैं अपनी वायुसेना के दावों और क्षमता पर सवाल कर रहा हूँ। लेकिन इसमें अचरज की क्या बात है यदि मेरा बेटा स्कूल से आकर कहे कि मैं आज इंग्लिश के टेस्ट में फ़र्स्ट आया तो क्या मुझे उसकी बात आँख मूँदकर मान लेनी चाहिए क्या मुझे अपना मुँह मीठा करने से पहले उससे रिपोर्ट कार्ड नहीं माँगना चाहिए जिसपर उसकी क्लास टीचर के हस्ताक्षर हों
अब आप कहेंगे कि क्या मैं पाकिस्तान की तरफ़ से यह रिपोर्ट कार्ड चाहता हूँ कि उसके आतंकवादी ठिकानों को भारतीय विमानों ने ध्वस्त कर दिया और उसमें इतने आतंकवादी मारे गए। बिल्कुल नहीं। मैं जानता हूँ कि पाकिस्तान कभी नहीं मानेगा कि वह आतंकवादियों को पनाह या प्रशिक्षण दे रहा है या भारतीय विमानों ने उसकी ज़मीन पर चल रहे ऐेसे किसी भी ठिकाने को नष्ट कर दिया है।
सरकार दे दे रिपोर्ट कार्ड
यह रिपोर्ट कार्ड ख़ुद भारत सरकार हमें और पाकिस्तान समेत सारी दुनिया को दे सकती है। आज किसी भी इलाक़े की सैटलाइट तस्वीर उतारना मुश्किल नहीं है। हमलों से पहले भी भारत सरकार ने उन इलाक़ों की सैटलाइट तसवीरें अवश्य ली होंगी, कई-कई बार ली होंगी और उन्हीं के आधार पर वायुसेना के विमानों ने उन इमारतों पर हमले किए होंगे। अब बस, हमलों के बाद भारत सरकार फिर से उन्हीं इलाक़ों की तसवीरें ले ले और दिखा दे कि पहले क्या था और अब क्या है तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा!
पहले ख़बरें आई थीं कि हमलों के दो-तीन दिनों तक बादलों की वजह से वहाँ की तस्वीरें नहीं ली जा सकीं। लेकिन अब तक तो बादल छँट गए होंगे। अब तो उन इलाक़ों की तसवीरें लेकर उन्हें मीडिया के साथ शेयर कर संदेह के सारे बादलों को दूर किया जा सकता है। इससे राजनीतिक पटल पर और सोशल व मेनस्ट्रीम मीडिया में उठाए जा रहे सवाल और इसी कारण मची जंग दोनों ख़त्म हो जाएँगे।
हालाँकि यह सवाल तब भी बना रहेगा कि इन ‘सफल’ हमलों में कितने आतंकवादी मारे गए। यदि हमने ख़ाली पड़े आतंकवादी ठिकानों को ध्वस्त किया है तो हमारी सफलता आंशिक ही कही जाएगी। इससे हमारे ख़ुफ़िया तंत्र की मुस्तैदी पर भी प्रश्न उठेंगे जो उतनी अपडेटेड जानकारी नहीं रखता। लेकिन वे सब बाद की बातें हैं। पहला सवाल तो यही है कि क्या हमारे विमानों ने जैश के आतंकवादी ट्रेनिंग सेंटर को नष्ट करने में कामयाबी पाई है। हम फ़िलहाल बस यही जानना चाहते हैं ताकि हम अपना मुँह मीठा कर सकें।