रामचंद्र गुहा देश के बड़े बुद्धिजीवी हैं। महात्मा गाँधी पर उन्होंने कई किताबें लिखी हैं। गाँधी पर उनका अध्ययन काफ़ी गहरा है। इन दिनों वह काफ़ी परेशान हैं। उनकी परेशानी का कारण है केंद्र की मोदी सरकार। उन्हें लगता है कि मोदी सरकार देश को हिंदुत्व के रास्ते पर ले जा रही है जो देश के लोकतांत्रिक ढाँचे को काफ़ी नुक़सान पहुंचायेगा।
गुहा मानते हैं कि देश के अंदर लोकतांत्रिक आवाज़ों को धीरे-धीरे सत्ता की मदद से कमजोर किया जा रहा है। नागरिकता संशोधन क़ानून और एनआरसी के ख़िलाफ़ जो आंदोलन देश भर में चल रहा है, उसमें भी गुहा ने हिस्सा लिया था और बेंगलुरू में ऐसे ही एक आंदोलन में जब वह अपना विरोध दर्ज कराने निकले थे तो पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया था।
गुहा मोदी सरकार के साथ देश के दूसरे राजनीतिक दल कांग्रेस पर भी रह-रह कर खीज उठते हैं। ख़ासतौर पर राहुल गाँधी और नेहरू परिवार पर उनका ग़ुस्सा फूट पड़ता है। उनका ऐसा ही आक्रोश शुक्रवार को केरल के कोझिकोड में खुलकर सामने आया जब वह राहुल गाँधी पर फट पड़े। साहित्य सम्मेलन में उन्होंने बिना लाग-लपेट के कहा कि पाँचवीं पीढ़ी के वंशवादी राहुल के लिये भारतीय राजनीति में कोई जगह नहीं है। गुहा का मानना है कि नेहरू-गाँधी परिवार मुगल सल्तनत की याद दिलाता है। जो अपनी ही जनता से बुरी तरह से कट गया है। उनका कहना है कि भारत अब ज्यादा लोकतांत्रिक देश हो गया है और सामंतवाद ख़त्म होता जा रहा है। लेकिन नेहरू-गाँधी परिवार को इसका एहसास ही नहीं है।
सोनिया गाँधी का नाम लिये बग़ैर गुहा ने कहा कि आपकी रियासत सिकुड़ती जा रही है लेकिन आपके चमचे आपको बता रहे हैं कि आप अभी भी बादशाह हैं।
वरिष्ठ इतिहासकार गुहा का कहना है कि चूंकि राहुल के नाम के साथ गाँधी लगा है, इसलिये बीजेपी या मोदी बार-बार देश को नेहरू की याद दिलाते रहते हैं और कहते हैं कि देखो नेहरू ने कश्मीर में क्या किया, देखो नेहरू ने चीन में क्या किया, देखो नेहरू ने तीन तलाक़ पर क्या किया। उनका तर्क है कि अगर राहुल के नाम के साथ गाँधी नहीं लगा होता तो मोदी को अपनी नीतियों पर बात करनी पड़ती, उन्हें बताना पड़ता कि वह क्यों फ़ेल हो रहे हैं। यहाँ यह बताना ज़रूरी है कि गुहा नेहरू के बड़े मुरीद रहे हैं।
गुहा अपनी किताबों में नेहरू की आलोचना करने के साथ-साथ आधुनिक भारत के निर्माण में उनकी भूमिका की तारीफ़ भी करते हैं। गुहा मानते हैं कि भारत अगर आज एक आधुनिक सेक्युलर देश है तो इसमें नेहरू का बड़ा योगदान है।
गुहा मानते हैं कि आज़ादी के समय भारत की स्थिति बेहद कमजोर थी और देश चारों ओर से झंझावातों से घिरा था। यह वह वक़्त था जब देश के अंदर और बाहर आशंका जताई जा रही थी कि भारत एक देश होने के नाते एकजुट रह पायेगा या नहीं। जाने-माने इतिहासकार गुहा अपनी किताबों में लिखते हैं कि भारत अगर आज एक लोकतांत्रिक देश के तौर खड़ा हुआ है तो इसमें देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की भूमिका को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। लेकिन नेहरू के बाद उनकी तीसरी पीढ़ी के लिये उनके मन में कटुता है।
गुहा राहुल गाँधी पर तीख़ा हमला करते हैं और कहते हैं, “राहुल गाँधी के प्रति मेरी कोई निजी खुंदक नहीं है। वह एक सज्जन व्यक्ति हैं। सुसंस्कृत हैं। लेकिन युवा भारत को पाँचवीं पीढ़ी का वंशवादी नहीं चाहिये।” फिर वह प्रधानमंत्री मोदी से राहुल गाँधी की तुलना करते हैं और उनके परखच्चे उड़ाते हैं।
गुहा केरल के लोगों को डाँटते हैं। वह कहते हैं, “आप मलयाली अगर 2024 में राहुल को फिर चुनते हैं तो आप मोदी को फ़ायदा पहुंचायेंगे। केरल ने देश को काफ़ी अच्छी चीज़ें दी हैं लेकिन आप लोगों ने राहुल को संसद भेजकर ग़लत किया है।” राहुल गाँधी 2019 के चुनाव में केरल की वायनाड सीट से चुनाव लड़ कर संसद पहुंचे हैं।
फिर गुहा मोदी के बरक्स राहुल को रखते हैं और कहते हैं, “नरेंद्र मोदी की सबसे बड़ी ख़ासियत है कि वह राहुल गाँधी नहीं है। वह खुद अपने बल पर खड़े हैं। उन्होंने पंद्रह साल तक एक राज्य की सरकार चलाई है। उनके पास प्रशासनिक अनुभव है और वह बेहद मेहनती हैं और कभी भी छुट्टी मनाने यूरोप नहीं जाते। विश्वास करें यह बात मैं पूरी गंभीरता से कह रहा हूँ।”
गुहा अपनी बात को आगे बढ़ाते हैं और कहते हैं, “अगर राहुल गाँधी और बुद्धिमान होते और मेहनती होते, कभी छुट्टी नहीं लेते फिर भी पाँचवीं पीढ़ी के वंशवादी होने के कारण वह अपनी मेहनत से बने शख़्स के सामने कमजोर ही पड़ते।”
पूर्णकालिक राजनेता नहीं हैं राहुल
रामचंद्र गुहा की बातों में काफ़ी हद तक सचाई है। राहुल गाँधी की अपनी कमज़ोरियाँ हैं। वह पूर्णकालिक राजनेता नहीं हैं। गुजरात विधानसभा चुनाव के समय उन्होंने जो हमलावर तेवर दिखाये थे। उसका फ़ायदा पार्टी को हुआ। 2019, दिसंबर में कांग्रेस बेहद बुरी हालत में होने के बाद भी राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव जीत कर आयी। इन तीनों राज्यों में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा। लेकिन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को फिर शर्मनाक हार झेलनी पड़ी। उसके बाद राहुल गाँधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे दिया और कोपभवन में यह कहते हुए जा बैठे कि पार्टी के वरिष्ठ नेता उनका साथ नहीं दे रहे हैं।
गुहा की यह बात पूरी तरह से सही है कि राहुल बीच-बीच में बिना किसी को बताये विदेश यात्रा पर निकल जाते हैं और बीजेपी उनका मज़ाक़ बनाती है। ऐसे समय में जबकि देश में नागरिकता क़ानून और एनआरसी के मसले पर हंगामा मचा हुआ है। लोग सड़कों पर हैं। शाहीन बाग का आंदोलन मोदी सरकार के ख़िलाफ़ सत्याग्रह का प्रतीक बन गया है। राहुल गाँधी कहीं दिखाई नहीं पड़ते।
अब जब सुगबुगाहट है कि राहुल गाँधी को फिर से कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जा सकता है तब गुहा की बातों को गंभीरता के साथ लिया जाना चाहिये। मोदी पूर्णकालिक राजनेता हैं। एक चुनाव के बाद वह दूसरे की तैयारियों में जुट जाते हैं। देश राहुल की कमज़ोरियों को भुगतने के लिये तैयार नहीं है। अगर वह पार्टी को नहीं चला सकते तो फिर उन्हें ख़ुद पद स्वीकार नहीं करना चाहिए और पार्टी की कमान किसी युवा नेता को सौंप देनी चाहिये। लेकिन क्या ऐसा होगा