क़रीब दो वर्ष पहले अमेरिका में एक पुस्तक प्रकाशित की गयी थी, ‘फ़ीयर: ट्रंप इन द व्हाइट हाउस’। इस पुस्तक के लेखक हैं, बॉब वुडवर्ड। बॉब वुडवर्ड दुनिया में सबसे प्रमुख खोजी पत्रकारों में से एक हैं और पिछले 4 दशकों से अधिक समय से पत्रकारिता से जुड़े हैं। वह अब तक कुल 9 अमेरिकी राष्ट्रपतियों का ज़माना देख चुके हैं, और रिचर्ड निक्सन के समय के मशहूर वाटरगेट स्कैंडल को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। ध्यान रहे कि इस स्कैंडल के उजागर होने के बाद, सर्वशक्तिमान माने जाने वाले निक्सन को भी अपनी कुर्सी गँवानी पड़ी थी। बॉब वुडवर्ड ने अनेक चर्चित किताबें लिखी हैं – ‘ऑल द प्रेसिडेंट्स मेन’, ‘बुश एट वार’, ‘द लास्ट ऑफ़ द प्रेसिडेंट्स मेन’, ‘द प्राइस ऑफ़ पॉलिटिक्स’ और ‘स्टेट ऑफ़ डिनायल’ इनमें प्रमुख हैं। कुछ पुस्तकों पर तो फ़िल्में भी बनायी गयीं।
इस पुस्तक में उन्होंने बताया है कि उन्होंने ट्रम्प के समय व्हाइट हाउस जैसा है, वैसा पहले कभी नहीं रहा। ट्रम्प के बारे में उन्होंने जितना लिखा है, उसकी ख़ासियत यह है कि हमारे देश के प्रधानमंत्री से बहुत समानता है। बहुत सारे वाक्य तो ऐसे हैं कि यदि नाम और देश हटा दिया जाए तो पूरा भारत का वर्णन है। वुडवर्ड ने लिखा है, ‘अपने चुनाव प्रचार के दौरान बोले गए झूठों के कारण अब तक ट्रंप में जनता विश्वास नहीं करती, हमारे देश में प्रधानमंत्री को जुमलेबाज़ कहा जाता है। ट्रंप तथ्यों पर भरोसा नहीं करते, या तभी भरोसा करते हैं जब तथ्य उनके या उनकी पार्टी के पक्ष में हों।’ ट्रम्प का मानना है कि आँकड़े कुछ नहीं होते और इन्हें अपनी सुविधानुसार कभी भी गढ़ा जा सकता है। आँकड़ों की बाज़ीगरी तो मोदी जी के भाषणों का भी अभिन्न अंग है।
वुडवर्ड आगे लिखते हैं कि उन्होंने इसके पहले कभी किसी राष्ट्रपति को देश या दुनिया की वास्तविकता से इतना उदासीन नहीं देखा है। दूसरी तरफ़ वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति अपनी हरेक योजना के गुण ख़ुद ही गाते हैं और हरेक योजना को पूरी दुनिया में सबसे अच्छा और सबसे बड़ा बताते हैं।
हमारे प्रधानमंत्री भी यही सब करते हैं, सबसे बड़ी मूर्ति, जन-धन योजना, मोदीकेयर योजना, उज्ज्वला योजना, सब दुनिया में सबसे बड़ा और सबसे अच्छा है, भले ही इसका लाभ किसी को मिल रहा हो या नहीं मिल रहा हो।
ट्रम्प को लगता है कि दुनिया भर का सारा ज्ञान उनके पास ही है, चुटकियों में हरेक समस्या हल कर सकते हैं। अपने देश में प्रधानमंत्री जी का यही हाल है। चलो मान लिया कि तथाकथित एंटायर पॉलिटिकल साइंस से राजनीति का पूरा ज्ञान होगा पर प्रधानमंत्री जी तो इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र और विज्ञान पर भी अपने एकाधिकार समझते हैं। प्रधानमंत्री जी तो यह भी जानते हैं कि बादलों के बीच वायुसेना को विमान उड़ाने के क्या फ़ायदे हैं। वुडवर्ड के अनुसार ट्रम्प अपने भाषणों में हमेशा अपनी ज़िन्दगी का उदाहरण देते हैं, भले ही उसका कोई सबूत हो या नहीं हो। ज़रा याद कीजिए, चाय बेचने से लेकर हिमालय पर तपस्या के आज तक कोई सबूत नहीं है। सबूत तो ख़ैर शिक्षा के भी नहीं है!
ओछी राजनीति की ज़रूरत
दूसरी तरफ़ अमेरिका में वॉक्स न्यूज़ ने पिछले वर्ष पहले डेविड फ़ारिस के इंटरव्यू को प्रकाशित किया है, जिसका शीर्षक है, ‘व्हाई दिस पोलिटिकल साइंटिस्ट थिंक्स द डेमोक्रेट्स हैव टू फ़ाइट डर्टी’। डेविड फ़ारिस रूज़वेल्ट यूनिवर्सिटी में राजनैतिक वैज्ञानिक हैं, और एक पुस्तक प्रकाशित की है, ‘इट इज़ टाइम टू फ़ाइट डर्टी’। अमेरिका में इस पुस्तक की बहुत चर्चा है और इसमें कहा गया है कि ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी को परम्परागत राजनीति से नहीं हटाया जा सकता है, इसे हटाने के लिए ओछी राजनीति की ज़रूरत है। इस पुस्तक में भी यदि आप इसके आलेख से रिपब्लिकन के बदले अपने देश की सत्ताधारी पार्टी का नाम शामिल कर लें तो यह पुस्तक कम से कम 70 प्रतिशत तक हमारे देश पर सटीक बैठती है।
सीन लिल्लिंग द्वारा पूछे गए प्रश्नों के जवाब में डेविड फ़ारिस ने अनेक वाक्य ऐसे कहे जिसमें पार्टी का नाम हटा कर पढ़ने पर पूरी स्थिति अपने देश की नज़र आती है। डेविड फ़ारिस बताते हैं, ‘ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी ऐसा व्यवहार करती है जैसे उसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं हो और न ही भविष्य में उनकी ज़िम्मेदारी कोई तय करेगा। डेमोक्रेटिक पार्टी को यह समझाना ज़रूरी है कि रिपब्लिकन पार्टी नीतियों पर चुनाव नहीं लड़ती बल्कि इनके लिए चुनाव तो एक प्रक्रियात्मक युद्ध है। रिपब्लिकन पार्टी ने पिछले दो दशकों से संविधान में कमियाँ खोज कर पूरी की पूरी सरकारी संरचना और संवैधानिक संस्थाओं को अपने पक्ष में कर लिया है। यह पार्टी यदि संविधान के अनुसार काम करती भी है तब भी संविधान की सोच और विचारधारा की हत्या करती है।
सबसे ख़तरनाक मोड़
डेविड फ़ारिस बताते हैं, ‘हम इस समय अमेरिका के पूरे इतिहास के सबसे ख़तरनाक मोड़ पर हैं। इस समय संवैधानिक संस्थाओं पर लोगों का भरोसा उठ चुका है और लोग चुनाव प्रक्रिया पर भी सवाल उठाने लगे हैं। ट्रम्प प्रशासन देश को राजनैतिक संस्कृति और परंपरा को ख़तरनाक तरीक़े से बदलने में कामयाब रहा है। ऐसे में डेमोक्रेटिक पार्टी केवल नीतियों की लड़ाई नहीं लड़ सकती। अनेक सामाजिक और राजनैतिक अध्ययनों के अनुसार आज के दौर में नीतियाँ चुनाव में कोई मायने नहीं रखतीं और अधिकतर लोग नीतियों के प्रभाव से अनजान बने रहते हैं। बराक ओबामा ने स्वास्थ्य सेवाओं में ओबामाकेयर के नाम से योजना शुरू की जिससे करोड़ों लोग लाभान्वित हुए लेकिन अधिकतर लोगों को यह नहीं पता कि इस योजना को ओबामा ने या डेमोक्रेटिक पार्टी ने शुरू किया था।
इस पुस्तक से इतना तो साफ़ है कि सत्ता दल को अब सामान्य तरीक़े से हटाना असंभव है, ऐसे में हरेक विरोधी पार्टी को आकलन कर आगे का रास्ता तय करना होगा। हमारे देश में यह काम अधिक कठिन है क्योंकि सही मायनों में विपक्ष परम्परागत राजनीति से अधिक कुछ नहीं कर रहा है। ऐसे में विपक्ष को परम्परागत लीक से हट कर रणनीति बनाने की ज़रूरत है।
डर्टी पॉलिटिक्स के लिए वैसी सोच ज़रूरी
डर्टी पॉलिटिक्स के लिए वैसी सोच बनाना बहुत ज़रूरी है, पर ऐसा कर पाना हमारे देश में कठिन है। यदि सत्ता पक्ष के नेताओं के भाषण का विश्लेषण करें तो पायेंगे कि 75 प्रतिशत से अधिक भाषण विपक्ष को कोसने में, 15 प्रतिशत गाँधी-नेहरू में और वह क्या कर रहे हैं इसपर 10 प्रतिशत से भी कम हिस्सा केन्द्रित होता है। ऐसे में विपक्ष को सत्ता पक्ष की आलोचना पूरी तरह से कुछ महीनों के लिए बंद कर देनी चाहिए क्योंकि इसी आलोचना के कुछ वाक्य सत्ता पक्ष के बड़े नेताओं के भाषण का 75 प्रतिशत हिस्सा होते हैं। ऐसे में संभवतः सत्ता पक्ष के नेताओं के भाषण का समीकरण भी बदल जाएगा। पूरे विपक्ष को दीर्घकालीन रणनीति बनाकर वापस कुछ वर्षों के लिए जनता के बीच जाकर समर्पित कार्यकर्ताओं को तैयार करना होगा।
फ़ारिस का आकलन सही है, केवल नीतियों से चुनाव नहीं जीते जाते और अमेरिका अपने इतिहास के सबसे ख़तरनाक दौर में है, और शायद हम भी।