क्या है आरएसएस की नई टीम का एजेंडा?

02:56 pm Mar 30, 2021 | विजय त्रिवेदी - सत्य हिन्दी

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में दत्तात्रेय होसबोले को सरकार्यवाह चुने जाने के बाद अब नई टीम ने काम करना शुरू कर दिया है। नई टीम के पास दो बड़े काम हैं- साल 2024 में होने वाले आम चुनाव और साल 2025 में संघ का शताब्दी वर्ष समारोह। 

संभवत: पहली बार होगा कि संघ के नेतृत्व को अनौपचारिक तौर पर दो हिस्सों में बाँट दिया गया है। सरसंघचालक मोहन भागवत और पूर्व सरकार्यवाह भैयाजी जोशी अब मोटे तौर पर नागपुर में संघ मुख्यालय में रहेंगें और नए सर कार्यवाह यानी महासचिव दत्तात्रेय होसबोले अपना ज़्यादातर वक़्त दिल्ली मे बिताएँगें। 

कमान होसबोले के हाथ

डॉक्टर भागवत और जोशी संघ के शताब्दी वर्ष समारोह की योजना और उसके कार्यक्रमों पर काम करेंगें जबकि दत्तात्रेय दिल्ली में खासतौर से संघ -बीजेपी रिश्तों और राजनीतिक रास्तों को आगे बढ़ाने पर फ़ोकस करेंगें।

दत्तात्रेय होसबोले संघ में पहले पदाधिकारी होगें जो मूलत विद्यार्थी परिषद से होने के बावजूद इस पद तक पहुँचे हैं। विद्यार्थी परिषद में होने की वजह से उनका लंबा रिश्ता बीजेपी और उसके कार्यक्रमों के साथ रहा है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ तो होसबोले का नज़दीकी रिश्ता रहा ही है। मोदी सरकार में केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद और धर्मेन्द्र प्रधान समेत कई मंत्री उनकी पसंद में ऊपर रहे हैं।

हर पाँचवा साँसद आरएसएस से

यदि आँकडों की बात करें तो मौजूदा मोदी सरकार में हर वो पाँचवा साँसद मंत्री है जिनका बैकग्राउंड संघ रहा है जबकि ग़ैर संघ पष्ठभूमि से आने वाले 14 सांसदों में से एक मंत्री बन पाया है। मोदी सरकार के 53 मंत्रियों में से 38 मंत्री संघ के बैकग्राउंड से आते हैं और यह प्रतिशत वाजपेयी सरकार की तुलना में काफी ज़्यादा है। 

नई टीम के बाद फिर से यह सवाल उठने लगा है कि अब संघ और बीजेपी के रिश्तों में क्या बदलाव आएगा और कौन नेतृत्व करेगा? यानी क्या होसबोले सरकार का नेतृत्व करेंगें या फिर प्रधानमंत्री मोदी संघ से ज़्यादा ताक़तवर भूमिका में रहेंगे।

‘संघ गच्छत्व’ के रास्ते पर आरएसएस

संघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी के मुताबिक़, आरएसएस ‘संघ गच्छत्व’ के पुराने रास्ते पर ही चलेगा यानी सबको साथ लेकर चलने का रास्ता यानी जुड़वा भाई की तरह। दत्तात्रेय को वैसे भी संघ में मॉडरेट और आधुनिक विचारों वाला माना जाता है। होसबोले ही थे, जिन्होंने सबसे पहले होमोसेक्सुएलिटी जैसे विषय पर साफ कहा था कि संघ इसे अपराध नहीं मानता। 

बेंगलुरु में हुई अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में बताया गया कि किस तरह कोविड काल के दौरान संघ की शाखाओं का स्वरूप बदला गया है क्योंकि कोविड के दौरान मैदान में शाखा लगना बंद हो गया तो इंटरनेट शाखाएँ शुरू की गई और सोशल मीडिया का इस्तेमाल संघ के विचारों को आगे बढ़ाने और कार्यक्रमों के प्रचार प्रसार के लिया किया गया। संघ में महिलाओं की सक्रिय भूमिका पर भी काम हो सकता है।

विदेश का काम देखेंगे राम माधव

प्रतिनिधि सभा में ही संघ के ताकतवर प्रचारक और फिर बीजेपी के संगठन महासचिव रहे राम माधव की वापसी हो गई और उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारिणी  में जगह दी गई, जबकि इससे पहले गोविन्दाचार्य और संजय जोशी जैसे ताक़तवर नेताओं को फिर से संघ में जगह नहीं मिल पाई थी। 

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राम माधव को राजनीतिक और बौद्धिक तौर पर संघ में ज़्यादा इस्तेमाल करने के लिए उनकी वापसी हुई है। माधव मूलत आंध्रप्रदेश से हैं। अब उनके पास जम्मू-कश्मीर, उत्तर पूर्व के अलावा दक्षिण भारत की ज़िममेदारी तो होगी ही, साथ ही संघ के विदेशों में कार्यक्रमों को भी माधव ही देखेंगें। इससे पहले भी माधव विदेश में संघ का काम देखते रहे हैं। प्रधानमत्री मोदी का 2014 का सबसे पहला अमेरिका में मैडिसन स्क्वैयर का सफल कार्यक्रम माधव की देखरेख में ही हुआ था। 

उत्तर पूर्व में बीजेपी की सरकारें और फिर जम्मू- कश्मीर में पीडीपी के साथ सरकार बनाने में राम माधव का राजनीतिक कौशल ही काम आया था।

संघ की कोर टीम में अब राजनीतिक कौशल को ज़्यादा ताक़त मिली है। धारा 370 ख़त्म कराने में अहम भूमिका निभाने वाले जम्मू के प्रभारी रहे अरुण कुमार अब सह सरकार्यवाह हो गए हैं और उनका कार्यक्षेत्र में मुख्यत: दिल्ली ही रहेगा।

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को तरजीह?

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में ही रहे युवा सुनील आम्बेकर को अब प्रचार प्रमुख की ज़िम्मेदारी सौंपी गई हैं। आम्बेकर भी विद्यार्थी परिषद से जुड़े होने के कारण बीजेपी के बहुत से नेताओं के साथ उनके क़रीबी रिश्ते रहे हैं। आम्बेकर ने पिछले साल एक किताब संघ के 21 वीं सदी की भविष्य योजना पर लिखी थी। एक और वापसी औपचारिक तौर पर हुई है वह भी काफी मह्तवपूर्ण है। 

बीजेपी के  संगठन महासचिव रहे मृदुभाषी रामलाल अब अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख की ज़िम्मेदारी संभालेंगें। संगठन महासचिव पद छोड़ने के बाद से रामलाल विदेशी राजनयिकों और संघ के बीच सेतु का काम कर रहे थे।

अयोध्या में प्रस्तावित राम मंदिर की भूमि पूजा करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

संघ इस वक्त राम जन्मभूमि में मंदिर निर्माण कार्य को तेज़ी से आगे बढ़ाना चाहता है, उसके लिए फंड की कमी नहीं है, समर्पण निधि कार्यक्रम में उम्मीद और आवश्यकता से ज़्यादा 3,400 करोड़ रुपया इकट्ठा हुआ है। फिर संघ अपने शताब्दी वर्ष कार्यक्रम को बड़े स्तर पर करने की तैयारी में जुट गया है। 

संघ के पदाधिकारी ने कहा कि नई टीम में यूं तो नया कुछ नहीं है लेकिन यह संघ की नीति ‘पुनर्नवा’ जैसा है यानी पुराने से फिर नया बनाने की प्रक्रिया । दिल्ली में संघ के झंडेवालान दफ्तर के पुनर्निर्माण के काम को भी अब रफ्तार दी जाएगी, अभी ज़्यादातर काम उदासीन आश्रम से हो रहा है।