उत्तर प्रदेश की खस्ताहाल क़ानून व्यवस्था चर्चा में है। प्रदेश के तमाम ज़िलों में हत्याएँ, बलात्कार, जातीय संघर्ष की ख़बरें आ रही हैं। हिंसा के शिकार ज़्यादातर दलित-पिछड़े वर्ग के लोग बन रहे हैं। ये आरोप लग रहे हैं कि राज्य प्रशासन और पुसिल महकमा निष्पक्ष रूप से कार्रवाई नहीं कर रहा है। अपराधियों की जगह पीड़ित तबक़े के लोग ही सताए जा रहे हैं।
इस समय राज्य का सबसे चर्चित मामला प्रतापगढ़ के पट्टी गोविंदपुर का है। गाँव के एक कुर्मी जाति के व्यक्ति के खीरे के खेत में एक ब्राह्मण के जानवर चले जाने को लेकर विवाद शुरू हुआ। उसके बाद पुलिस की मौजूदगी में कुर्मी जाति के लोगों के घर, जानवर जला दिए गए। घर में घुसकर तोड़फोड़ की गई। जैसा कि ऐसे मामलों में होता है, दोनों पक्षों की तरफ़ से प्राथमिकी दर्ज होती है। स्थानीय पुलिस ने ब्राह्मण पक्ष से 10 प्राथमिकियाँ संगीन धाराओं में दर्ज कर लीं। वहीं कुर्मी पक्ष की ओर से तमाम पूर्व मंत्रियों, विधायकों और यहाँ तक कि मोदी सरकार द्वारा संवैधानिक दर्जा पाने वाले पिछड़ा वर्ग आयोग की ओर से नोटिस जारी होने के बावजूद कुर्मी पक्ष की ओर से 2 प्राथमिकी दर्ज हुई, वह भी बेहद सामान्य धाराओं में। पुलिस ने कुर्मी समुदाय से गाँव में मिलने गए 66 लोगों के ख़िलाफ़ विभिन्न धाराओं में मुक़दमा दर्ज कर लिया जिसमें पूर्व मंत्री ओमप्रकाश राजभर और बीएसपी सरकार में ताक़तवर मंत्री रहे बाबूलाल कुशवाहा का नाम भी शामिल है। इसके अलावा कुर्मी महासभा के अध्यक्ष सहित 26 लोगों के ख़िलाफ़ धारा 144 के उल्लंघन और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न करने को लेकर मुक़दमा दर्ज कर लिया गया।
गोविंदपुर गाँव की सीता वर्मा ने गाँव की महिलाओं की तरफ़ से छेड़छाड़-मारपीट, आगजनी, एक लड़की को बाथरूम का दरवाज़ा तोड़कर अभद्रता व अश्लीलता करने, कुल्हाड़ी से हमले की तहरीर दी थी और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के निर्देश पर बेहद मामूली धाराओं में पुलिस ने एफ़आईआर दर्ज की। उसके तीसरे दिन सीता वर्मा के बेटे हरिकेश पटेल को प्रतापगढ़ पुसिल ने घटना का मास्टरमाइंड बताकर जेल भेज दिया और अपनी विज्ञप्ति में बताया कि हरिकेश हत्या करने की साज़िश कर रहा था। इस मामले में पूर्व केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल भी पीड़ितों से मिलने पहुँचीं और उन्होंने ज़िला प्रशासन की तीखी आलोचना की।
अमर उजाला की ख़बर के मुताबिक़ इलाहाबाद के कोराँव तहसील के सेमरिहा गाँव में एक दबंग विकास पांडेय ने रमेश नाम के एक व्यक्ति को पुलिस के साथ सेटिंग करके जेल भिजवा दिया। बाद में रमेश के जेल से छूटकर आने पर उसके ऊपर हमला हुआ और उसकी मौत हो गई। मौत के बाद मचे बवाल में बड़े पैमाने पर पुलिसकर्मी घायल हुए। इसके पहले कोराँव के लखनपुर गाँव में एक व्यक्ति की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई, जिससे ग्रामीणों व पुसिल में टकराव की नौबत आई। कोराँव थाना क्षेत्र में ही एक ही परिवार के 3 लोगों की हत्या कर दी गई।
जौनपुर में दलित समुदाय के एक व्यक्ति की बकरी ब्राह्मण के खेत में चली गई। इसे लेकर गाँव में विवाद हो गया और ब्राह्मणों ने दलित समुदाय के लोगों को दौड़ा दौड़ाकर पीटा।
इस मामले में भी बाद में जमकर तोड़फोड़, मारपीट व आगजनी हुई। जौनपुर के बदलापुर इलाक़े में ब्राह्मणों व यादवों में ख़ूनी संघर्ष हुआ। ब्राह्मणों ने राधेश्याम यादव, रामचंद्र यादव, राहुल, विजय आदि को बुरी तरह पीटा। इसमें राधेश्याम यादव की मौत हो गई, उसके बाद ग्रामीणों ने थाने का घेराव किया और पुलिस पर अपराधियों को संरक्षण देने का आरोप लगाया।
ये घटनाएँ कुछ ज़िलों की हैं। नजीर के रूप में इन्हें देखा जा सकता है। तमाम ऐसी घटनाएँ हो रही हैं जिनकी कोई रिपोर्टिंग नहीं है। इसके बावजूद कोरोना काल में उत्तर प्रदेश के विभिन्न ज़िलों में अपराधों की बाढ़ आई हुई है। इन घटनाओं में एक बात कॉमन है। एक दबंग जाति होती है जो सामान्यतया कथित सवर्ण होते हैं। एक पीड़ित जाति होती है जो कथित रूप से दलित या पिछड़े होते हैं। दोनों जातियों में संघर्ष दिखाया जाता है। लेकिन घायल होने और मरने वालों में सामान्यतया दलित और पिछड़े ही होते हैं। संभव है कि कुछ घटनाएँ अपवाद भी हों।
इन मामलों में पुलिस की कार्रवाई
हालाँकि ऐसा नहीं है कि पुलिस हर मामले में निष्क्रिय हो। जौनपुर में दलितों और मुसलिमों के बीच जानवर चराने को लेकर विवाद हो गया। विवाद के बाद कथित रूप से मुसलिमों ने भीड़ जुटाकर दलितों पर हमला बोल दिया और कई मकान फूँक डाले। इस मामले में पुलिस ने ताबड़तोड़ छापेमारी कर गिरफ्तारियाँ कीं। साथ ही इसमें मुख्यमंत्री ने भी सक्रियता दिखाई और आरोपियों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत कार्रवाई करने के आदेश दिए। स्थानीय लोग बता रहे हैं कि इस मामले में ऐसे व्यक्तियों के ऊपर भी रासुका लगा दिया गया है जो लंबे समय से खाड़ी देश में काम कर रहे हैं। स्थानीय लोग कई गिरफ्तारियों को राजनीतिक साज़िश क़रार दे रहे हैं जिनमें समाजवादी पार्टी से जुड़े लोगों की गिरफ्तारी हुई है।
इसी तरह से आजमगढ़ ज़िले के महाराजगंज क्षेत्र में छेड़खानी को लेकर विवाद हुआ। दलितों ने छेड़खानी का विरोध किया तो उनके ऊपर मुसलिम समुदाय के लोगों ने हमला कर दिया। इस मामले में भी मुख्यमंत्री तत्काल सक्रिय हुए। उन्होंने ज़िले के एसपी को फटकार लगाई। थाना प्रभारी को सस्पेंड कर दिया गया।
फरार आरोपियों पर 25-25 हज़ार रुपये का ईनाम घोषित किया गया और पकड़े गए लोगों पर गैंगस्टर एक्ट और राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून यानी एनएसए के तहत मुक़दमे दर्ज कर लिए गए।
इन घटनाओं की मीडिया में आ रही रिपोर्टों से प्रतीत होता है कि राज्य में अगर किसी सवर्ण ने हमला किया है तो आरोपी ही प्रशासन से प्रताड़ित महसूस कर रहे हैं। वहीं अगर आरोपी मुसलिम समुदाय के हैं तो सरकार की सक्रियता बढ़ रही है। नेशनल मीडिया व समाचार चैनलों में भी ऐसी ही ख़बरें प्रमुखता पा रही हैं जहाँ विवाद हिंदू और मुसलमान का है। इतना ही नहीं, सोशल मीडिया पर सरकार समर्थकों द्वारा चुनौती भी दी जा रही है कि विपक्ष, सरकार विरोधी या उनके शब्दों में कहें तो ‘टुकड़े टुकड़े गैंग’, उन मामलों में विरोध नहीं कर रहा है जहाँ अपराधी मुसलिम समुदाय के हैं। ऐसा प्रचारित किया जा रहा है कि जैसे राज्य की क़ानून व्यवस्था संभालना सरकार की नहीं, बल्कि विपक्ष या सरकार के आलोचकों की ज़िम्मेदारी है। वहीं इस तरह से चुनिंदा मामलों में कार्रवाई होने से आम लोगों का प्रशासन से भरोसा उठ रहा है।