कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने सर्वोच्च न्यायालय से माफ़ी नहीं माँगी है, सिर्फ़ ख़ेद प्रकट किया है। ख़ेद काहे के लिए? इसलिए नहीं कि उन्होंने चौकीदार को चोर कहा है बल्कि इसलिए कि उन्होंने यह कह दिया था कि सर्वोच्च न्यायालय भी यही मानता है। सर्वोच्च न्यायालय ने सिर्फ़ रफ़ाल सौदे पर बहस को मंजूरी दी थी। राहुल ने अपने पक्ष में यह सफ़ाई दी कि वह चुनावी जल्दबाज़ी और जोश में वैसा बोल गए। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय अभी तक तो बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी की याचिका पर विचार कर रहा था लेकिन अब उसने राहुल को अदालत की अवमानना का औपचारिक नोटिस जारी कर दिया है।
अदालत राहुल के वकील अभिषेक मनु सिंघवी के तर्कों से प्रभावित नहीं हुई और उसने मामले में 30 अप्रैल को दुबारा सुनवाई की तारीख़ तय कर दी है। अदालत का डर न तो नरेंद्र मोदी को है और न राहुल गाँधी को! दोनों दो बड़ी पार्टियों के नेता हैं। दोनों के बौद्धिक स्तर में ज़्यादा फर्क नहीं है। यह बात दूसरी है कि मोदी के बोलने में दम-ख़म दिखाई पड़ता है जबकि राहुल का बोलना ऐसा लगता है, जैसे कोई विदेशी लड़का बड़ी मुश्किल से हिंदी या अंग्रेजी में अपनी गाड़ी धका रहा है।
इतना ही नहीं, राहुल ने ऐसी हठधर्मी भी दिखाई कि अदालत के सामने लिखित में ख़ेद प्रकट करने के बाद घंटे भर में ही ‘चौकीदार चोर है’, का नारा अमेठी की सभा में लगवा दिया। फिर यही नारा रायबरेली में भी लगवाया।
ज़ाहिर है कि अदालत या चुनाव आयोग इस नारे के आधार पर राहुल के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं लेकिन राहुल और सोनियाजी क्या भारत के लोगों के मिजाज को जरा भी नहीं समझते हैं?
इस तरह का नारा लगवाते समय आप न मोदी की उम्र का ख़्याल करते हैं, न उनके पद का, जिस पर आपके पिता, दादी और उनके पिता भी रह चुके हैं। यह बचकाना हरकत, पता नहीं किसके इशारे पर की जा रही है?
इसका अर्थ यह नहीं है कि रफ़ाल का मामला न उठाया जाए या सत्तारुढ़ दल पर जमकर प्रहार न किया जाए। ज़रूर किया जाए लेकिन ऐसा तीर मत चलाइए, जो लौटकर आपके सीने को ही चीर डाले। और यदि सर्वोच्च न्यायालय ने राहुल के ख़िलाफ़ 30 अप्रैल को कोई उल्टा फैसला दे दिया तो मोदी जाएँ या न जाएँ, राहुल वहीं पहुँचे मिलेंगे, जहाँ वह मोदी को भेजने की घोषणा करते रहे हैं।