पंजाब चुनाव: क्यों हारे चरणजीत सिंह चन्नी? 

09:13 am Mar 21, 2022 | डॉ. उदित राज

पंजाब में चुनाव के पहले कांग्रेस के जीतने का पूरा  माहौल था। चरणजीत सिंह चन्नी की  देश में बड़ी छवि बन गई थी। पूरे देश से आवाज आ रही थी कि  कांग्रेस  पंजाब में वापसी करेगी। आम आदमी पार्टी टक्कर में तो थी जरूर लेकिन 2017 के मुकाबले में नहीं। देश में एक आवाज़ गई कि गांधी परिवार ने एक दलित को अहम सूबे का सीएम बनाया। 

जैसे चन्नी सीएम बने सिद्धू ने उनसे ऐसा व्यवहार किया जैसे कि वो कोई जूनियर हो। यह  दलितों को बर्दास्त नहीं हुआ। जब तक चन्नी संभलें तब तक क्षति हो चुकी थी। ये माना गया कि दलितों की आबादी करीब 32% है लेकिन ये बँटे हुए हैं। अगर दलितों का पूरा वोट पड़ जाता तो भी कांग्रेस जीत जाती। सवाल बनता है दूसरी जातियां तो अपने नेता के साथ फौरन चली जाती हैं तो दलित क्यों नहीं कांग्रेस के साथ गये ?  

           

       

सदियों से हुकुम मानने वाले जल्दी से दलितों को नेता नहीं मानते। बहुजन आंदोलन से दलितों में विभाजन बढ़ा है और पंजाब में भी रामदासिया बनाम मजहबी का सवाल है। दूसरी बात अब दलित पहले जैसा नहीं है कि जब चाहो भेड़ की तरह पीछे हांक दो। कैप्टन अमरिन्दर सिंह के समय में दलितों के साथ न्याय नहीं हुआ था।

सिद्धू की बयानबाजी

सबसे ज्यादा नुक़सान नवजोत सिंह सिद्धू ने किया। बाहर की आलोचना से जनता इतनी जल्दी यकीन नहीं करती लेकिन जब प्रदेश का मुखिया ही ऐसा करे तो क्यों यकीन न करें? जो भी सरकार घोषणा करती थी विपक्ष से पहले प्रदेश अध्यक्ष ही हवा निकाल देते थे। उनकी बेटी ने भी चन्नी पर प्रहार किया। इससे यह भी संदेश गया कि चन्नी दलित हैं, वे क्या करेगें? जातिवादी मानसिकता उभारने में सिद्धू के बयान सहयोगी सिद्ध हुए । सवर्ण जातियों ने सोचा कि पहले चन्नी को निपटा लो। 

सुनील जाखड़ जब अध्यक्ष थे तो कभी भी पार्टी ऑफिस आते नही थे। संगठन के स्तर पर स्थिति बड़ी खराब थी। दूसरे प्रदेश से आए कार्यकर्ता चुनाव लड़ा रहे थे। उम्मीदवार गलत चुने गए। बाहर से प्रचार करने गए लोगों का वहां के समाज से जुड़ाव नही था। पंजाब के प्रभारी मिलते ही नही थे।दिल्ली के हजारों ऑटो - ट्रांसपोर्ट पंजाब में जाकर आप के झूठों का पर्दाफाश करना चाहते थे लेकिन पंजाब प्रदेश के नेतृत्व ने सहयोग नहीं किया। 

चरणजीत सिंह चन्नी को हराने के लिए न केवल पार्टी के नेताओं ने प्रयास किया बल्कि बाह्य शक्तियों ने भी पूरा जोर लगाया। जिस दिन एक दलित को राहुल गांधी ने मुख्यमंत्री बनाया तो पूरी कांग्रेस  निशाने पर आ गई। चन्नी की सफलता से राहुल गांधी का नेतृत्व मजबूत होता जो हर हाल में बीजेपी को मंजूर नही है। कुछ कांग्रेस के बड़े नेताओं को भी ये मंजूर नही था। 

बीजेपी को परेशानी ज्यादा हुई कि कहीं दलित सीएम का मॉडल सफल हुआ तो पूरे देश में मांग बढ़ेगी कि इनको भी ऐसा करना चाहिए, हो सकता है बड़े राज्य जैसे उप्र में ऐसी मांग उठ जाए। इससे काग्रेस का विस्तार होना शुरू हो जाए।

किसानों को नीचा दिखाना और अपने निर्णय को सही साबित करने के लिए कांग्रेस को हराना और ‘आप’ को जिताने से ऐसा संदेश भेजा गया कि किसान आंदोलन से कुछ फर्क नहीं पड़ा। उप्र का चुनाव बीजेपी के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण था। 

चन्नी को हराकर यह भी संदेश देने की कोशिश की गयी है कि दलित नैया पार नहीं लगा सकते। वास्तव यह मनोवैज्ञानिक खेल है और कांग्रेस को फिर से जोड़ने का प्रयास तेज करना चाहिए। जब बीएसपी खत्म हो रही है तो इससे अच्छा अवसर क्या हो सकता है । कुल मिलाकर चन्नी हारे नही बल्कि हराया गया।