बेटियों के अधिकारों, उनकी रक्षा, मान सम्मान व उनकी तरक़्क़ी को लेकर जितना ढिंढोरा हमारे देश में पीटा जाता है या यूँ कहें कि जितना दिखावा किया जाता है उतना किसी अन्य देश में नहीं किया जाता। यदि हमारा समाज वास्तव में पैतृक संस्कारों, उपदेशों, भाषणों व कन्या हितैषी सरकारी योजनाओं के अनुसार देश की बेटियों का पालन पोषण कर रहा होता, उसे पूरा मान सम्मान दे रहा होता, बेटी को धर्म-जाति, ग़रीब-अमीर, ऊंच-नीच के चश्मे से न देखा जाता तो आज घर घर में रानी लक्ष्मी बाई, ज्योति बाई फूले, फ़ातिमा शेख़, बेगम हज़रत महल, रज़िया सुल्तान, इंदिरा गाँधी, सरोजनी नायडू, लक्ष्मी सहगल से लेकर कल्पना चावला तक जैसी महिलायें पैदा होकर देश का नाम पूरी दुनिया में रौशन कर रही होतीं।
कन्या हितों की बात करने का ढोंग करने वाले हमारे ही देश में औरतों को भूतनी और चुड़ैल बताकर उसे प्रताड़ित किया जाता है। यहां तक कि जान से भी मार दिया जाता है।
बलात्कार, वीभत्स बलात्कार, सामूहिक बलात्कार, नाबालिग़ और किशोरियों के साथ बलात्कार और बलात्कार के बाद हत्या के जितने मामले हमारे देश में होते हैं, पूरे विश्व में कहीं नहीं होते। और इसी कन्या असुरक्षा के भय से तमाम अभिभावक अपनी बेटियों को स्कूल-कॉलेज भेजने से भी कतराते हैं।
कई बार मुख्यमंत्री व मंत्री स्तर के लोग बढ़ते कन्या अपहरण व बलात्कार की ख़बरों के बीच यह 'प्रवचन ' देते भी सुने गये हैं कि लड़कियां देर रात घरों से बाहर न निकलें।
कुछ'नीति निर्धारक 'तो यह भी कह चुके हैं कि कन्याओं को घरों से अकेले नहीं निकलना चाहिये। क्या जो समाज कन्या हितों की बात करता व कन्या पूजन करता है क्या कन्याओं की रक्षा करना उसकी ज़िम्मेदारी नहीं?
सवाल यह है कि लोगों में कन्याओं के प्रति इतनी घृणा व इतनी ज़हरीली मानसिकता आती कहां से है। यदि पूरी पारदर्शिता व ईमानदारी से इस विषय का अवलोकन किया जाये तो हम यही पायेंगे कि इस तरह के दोहरेपन वाले हालात पैदा करने के लिये भी दरअसल वही वर्ग ज़िम्मेदार है जो कन्या व महिला हितों की बड़ी बड़ी बातें करता है, तरह तरह के वादे करता है, योजनायें बनाने का दिखावा करता तथा महिला हितैषी उपदेश दिया करता है। यही वर्ग महिलाओं को अधीन व भोग्या भी समझता है।
कश्मीरी महिलाओं पर टिप्पणी
याद कीजिये जब दो वर्ष पूर्व कश्मीर में धारा 370 समाप्ति की घोषणा हुई थी उस समय केंद्रीय मंत्री विजय गोयल के निवास पर एक बड़ा होर्डिंग लगाया गया था जिसमें एक ओर श्यामा प्रसाद मुखर्जी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व गृह मंत्री अमित शाह के चित्र छपे थे तो दूसरी तरफ़ सबसे बड़ा एक कश्मीरी लिबास पहने महिला का मुस्कुराता चित्र।
इस होर्डिंग पर कश्मीरी महिला के चित्र तले लिखा वाक्य था -'धारा 370 का जाना-तेरा मुस्कुराना '-विजय गोयल। क्या यह विवादित होर्डिंग यह ज़ाहिर नहीं करतीं कि महिलाओं के प्रति इनकी सोच व संस्कार क्या हैं?
इसी तरह हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने भी 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान' को लेकर 'उपदेश ' देते हुए उन्हीं दिनों यह कहा था कि -'अनुच्छेद 370 के हटने के बाद अब लड़कियों को शादी के लिए कश्मीर से लाया जा सकता है'।
उसी समय कश्मीरी बॉलीवुड एक्ट्रेस बिदिता बाग ने अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीरी लड़कियों से शादी करने के सपने देखने वालों को उन्हीं की भाषा में जवाब दिया था कि “कश्मीरी सेब ख़रीदने की औक़ात नहीं है… चले हैं कश्मीरी लड़की से शादी करने।”
खट्टर का बयान
इससे पहले भी खट्टर ने नवंबर 2018 में रेप की बढ़ती घटनाओं को लेकर विवादित बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि -“रेप और छेड़छाड़ की 80 से 90 प्रतिशत घटनाएं जानकारों के बीच होती हैं। कपल काफ़ी वक़्त के लिए इकट्ठे घूमते हैं, एक दिन अनबन हो जाती है तो उस दिन एफ़ आई आर करवा देते हैं कि इसने मेरा रेप किया।”
कन्याओं व महिलाओं के प्रति घृणा का ही परिणाम है कि कभी देश में निर्भया जैसा कांड होता है तो कभी निर्भया-2,3 और निर्भया-4 होता है। कभी हाथरस जैसी रेप, हत्या व रेप पीड़िता को मां-बाप की अनुपस्थिति में देर रात खेतों में जलाने जैसी क्रूरतम घटना घटती है।
कभी कश्मीर में किशोरी आसिफ़ा की सामूहिक बलात्कार के बाद हत्या होती है तो बलात्कारियों व हत्यारों के समर्थन में वही वर्ग खड़ा होता है जो न केवल 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' का झंडा उठाये हुये है बल्कि धर्म-संस्कार व संस्कृति की बात भी करता है।
इसी विचारधारा के लोग सार्वजनिक रूप से मंच पर यह उद्घोष भी कर चुके हैं 'धर्म विशेष' की महिलाओं का क़ब्र से निकाल कर बलात्कार किया जाना चाहिये।
पिछले दिनों मध्य प्रदेश के इंदौर में एक स्पा सेंटर पर छापेमारी की गयी जिसमें आपत्तिजनक स्थिति में पकड़े गए 18 लोगों में तीन सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के युवा मोर्चा नेता हैं। गिरफ्तार आरोपियों में थाईलैंड की सात युवतियां भी शामिल हैं। यानी यह लोग 'महिला सम्मान' की ध्वजा अब विदेशों तक लहराने लगे हैं।
जब ऐसे ही विद्वेष व वैमनस्य पूर्ण पारिवारिक, सामाजिक, राजनैतिक वातावरण में बच्चे सांस लेंगे तो चाहे वे इंजीनियर बनें या मेडिकल की पढ़ाई पढ़ें, कंप्यूटर इंजीनियर बनें अथवा वैज्ञानिक, नेता बनें या स्वयंभू धर्मगुरु। धार्मिक व जातीय उन्माद उनके मस्तिष्क में कूट कूट कर भरा जा चुका है।
नफ़रत के माहौल में पले ऐसे बच्चे बड़े होकर बुल्ली बाई और सुल्ली डील्स की एप्लीकेशंस नहीं बनायेंगे तो क्या करेंगे?
कितना आश्चर्यजनक है कि इंजीनियर व विज्ञान की पढ़ाई करने के बाद इन बच्चों ने समाज व देश के विकास के लिये काम करने वाली तथा स्वयं अपना कैरियर बनाने वाली कोई ऐप बनाने के बजाये धर्म विशेष की महिलाओं की नीलामी करने वाली ऐप बनाना ज़्यादा ज़रूरी समझा?
इस मामले में सरकार व प्रशासन हालांकि कार्रवाई कर रहा है, कुछ लोगों की गिरफ़्तारियां भी हुई हैं परन्तु सबसे गंभीर सवाल यह है कि ऐसी घटिया सोच व मानसिकता की जड़ें कहाँ हैं?
महिलाओं के प्रति एक ओर तो मान सम्मान, आदर-सत्कार व कन्यापूजन जैसा दिखावा करना तो दूसरी ओर उन्हें धर्म जाति की नज़रों से देखना, ग़रीब अमीर की श्रेणी में बांटना, अपनी रंजिश निकालने या जायदाद हड़पने के लिये उसे भूतनी या चुड़ैल बताना और इंतेहा तो यह कि अब आधुनिक विज्ञान का इस्तेमाल करते हुये मोबाईल एप पर धर्म विशेष की महिलाओं की इज़्ज़त नीलाम करने की कोशिश करना, क्या इसी संस्कार व मानसिकता के लोग 'बेटी बचायेंगे' या फिर लोग ख़ुद इनसे ही अपनी 'बेटी बचायें'?