14 मई को बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह जब मध्य कोलकाता के धर्मतल्ला से उत्तरी कोलकाता में विवेकानंद के निवास तक ‘जय श्री राम’ के उद्घोष के साथ रवाना हुए, उसी समय यह साफ़ नज़र आ रहा था कि यह चुनावी रोड शो नहीं बल्कि बंगाल के ख़िलाफ़ बीजेपी का एक रण-घोष है। बंगाल की संस्कृति को पैरों तले रौंद डालने की धृष्टता का ऐलान भी है।
जेएनयू, हैदराबाद विश्वविद्यालय सहित देश के सभी शिक्षा प्रतिष्ठानों में पिछले पाँच साल से जिन अनपढ़ गुंडों ने उपद्रव मचा रखा है, वे संगठित होकर देश की सांस्कृतिक राजधानी कोलकाता के मान-सम्मान को कुचलने के लिये उतर पड़े हैं।
ऐसा लगता है कि अमित शाह ने जान-बूझ कर कोलकाता के प्राण-स्थल कॉलेज स्ट्रीट के क्षेत्र को पदाघात के लिये चुना ताकि एक ही वार में बंगाल की अस्मिता को कुचल कर ख़त्म कर दिया जाए।
अमित शाह के रोड शो में भगवा गुंडों का तांडव कोलकाता विश्वविद्यालय से शुरू हुआ और इसने ख़ास निशाना बनाया प्राचीन विद्यासागर कॉलेज को। वहाँ पथराव, आगज़नी के साथ ही उनका प्रमुख निशाना था, बीजेपी कार्यकर्ताओं की आँख की किरकरी बनी ईश्वरचन्द्र विद्यासागर की मूर्ति। उस मूर्ति को कुछ उसी प्रकार के रोष के साथ तोड़ा गया जिसका परिचय उन्होंने कभी अयोध्या में बाबरी मसजिद को ढहाते वक़्त दिया था। बाबरी मजसिद को वे अपनी ग़ुलामी का प्रतीक मानते थे और शिक्षा और संस्कृति को अपनी सनातन आदिमता का दुश्मन।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार आधुनिक शिक्षा के प्रति अपनी घृणा को नाना प्रकार से व्यक्त किया है। उनके 'भक्तों' ने बंगाल और कोलकाता में शिक्षा के प्रांगण में अपनी उसी नफ़रत का नग्न नृत्य किया।
कहना ग़लत नहीं होगा कि कोलकाता में अमित शाह और उनकी पार्टी के समर्थकों ने भारत की राजनीति के एक और शर्मनाक अध्याय की रचना की है।
बाहर से लाए गए लोग
राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आरोप लगाया है कि अमित शाह के साथ लगभग पंद्रह हज़ार लोगों की जो भीड़ थी, उनमें बड़ी संख्या में बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश के अलावा राजस्थान से बटोर कर लाये गये लोग शामिल थे। यदि मुख्यमंत्री के इस आरोप में जरा भी सच्चाई है तो कहना होगा कि पहला तो यह बंगाल पर किये गये एक बाहरी आक्रमण का प्रतीक है और यह मोदी की राजनीति के ख़ास गुजराती मॉडल की पुनरावृत्ति भी है जिसमें ऐन चुनाव के वक़्त वह वाराणसी को गुजरात से लाये गये लोगों से पाट देते रहे हैं। दूसरा यह कि, मुख्यमंत्री के इस कथन में बंगाल में आगे तीव्र प्रादेशिक उत्तेजना के एक ऐसे नये दौर के सूत्रपात के संकेत भी छिपे हैं जो सालों से इस प्रदेश में बने हुए मज़बूत प्रादेशिक भाईचारे की जड़ों को हिला सकती है।
मोदी-अमित शाह ने भारत के कोने-कोने में जिस तरह सभी प्रकार के विभाजनकारियों से हाथ मिला कर अलगाववाद की आग सुलगा रखी है, उससे लगता है कि उन्होंने बंगाल को भी उसी की चपेट में लेने की योजना बनाई हुई है।
बहरहाल, 19 मई को बंगाल में चुनाव का आख़िरी चरण है जिसमें कोलकाता और निकटवर्ती उत्तर और दक्षिण 24 परगना ज़िलों की 9 सीटों पर मतदान होना है। इसके पहले ही बीजेपी की इस गुंडागर्दी ने इस पूरे क्षेत्र में उसके ख़िलाफ़ जिस ग़ुस्से और आक्रोश को जन्म दिया है, उसकी साफ़ छाप मतदान में देखने को मिलेगी।
ममता बनर्जी ने कोलकाता और पूरे बंगाल में इस गुंडागर्दी के प्रतिवाद में भारी प्रदर्शन का ऐलान किया है। इसी प्रकार वामपंथियों और कांग्रेस ने भी कोलकाता सहित पूरे प्रदेश में बंगाल के शिक्षा क्षेत्र और बंगाल की सांस्कृतिक अस्मिता पर मोदी ब्रिगेड के इस जघन्य हमले के विरोध में व्यापक प्रदर्शनों का कार्यक्रम बनाया है। बाहरी तत्वों को इकट्ठा करके अमित शाह के इस युद्ध के तेवर ने बंगाल में बीजेपी की कब्र खोदने का ही काम किया है, इसमें कोई शक नहीं है।
डिस्क्लेमर - लेखक अरुण माहेश्वरी सीपीएम की पूर्व राज्यसभा सांसद सरला माहेश्वरी के पति हैं।