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साहेब जी, आपकी प्याज नीति क्या है? 

साहेब जी, आपकी प्याज नीति क्या है? 

शुक्रवार को सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम के आपातकालिक प्रावधानों का इस्तेमाल करते हुए प्याज के भंडारण की सीमा तय कर दी। प्याज की कीमतें जिस तरह से और जिस तेजी से बढ़नी शुरू हुई हैं, उसे देखते हुए सरकार के पास कोई चारा भी नहीं था। 

नवमी बीत गई और इसके साथ ही लोग भी अपनी खाने-पीने की पुरानी आदतों की ओर लौट गए हैं। लेकिन सरकार ने इसके लिए नवमी के बीतने का इंतजार भी नहीं किया, वह सप्तमी के दिन ही अपनी पुरानी आदत पर लौट गई। शुक्रवार को सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम के आपातकालिक प्रावधानों का इस्तेमाल करते हुए प्याज के भंडारण की सीमा तय कर दी। प्याज की कीमतें जिस तरह से और जिस तेजी से बढ़नी शुरू हुई हैं, उसे देखते हुए सरकार के पास इसके अलावा कोई चारा भी नहीं था। 

अभी महीना भर भी नहीं बीता जब केंद्र सरकार ने विपक्ष के तमाम विरोधों के बीच आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन करते हुए प्याज को इसके दायरे से बाहर कर दिया था। यानी इसके बाद से किसी के पास कितने भी प्याज का भंडारण हो वह जमाखोरी में नहीं गिना जाएगा। इसलिए अब इसे रोकने के लिए सिर्फ आपातकालिक प्रावधानों का ही इस्तेमाल किया जा सकता था।

सरकारी फ़ैसले

नवमी की वजह से जब उत्तर भारत में प्याज की कीमतें थोड़ी ठहरी हुई थीं, तो दक्षिण भारत में वह 100 रुपये किलो से भी ज़्यादा दाम पर बिकने लगा था। 

जिस समय प्रधानमंत्री बिहार की चुनावी सभाओं में कृषि क़ानूनों में संशोधन को लेकर विपक्षी दलों को कोस रहे थे, दिल्ली में सरकार के अफ़सर प्याज की कीमतों पर लगाम लगाने के लिए उस भावना को दरकिनार करने के रास्ते तलाश रहे थे जो संसद में कृषि विधेयकों को पेश करते समय ज़ाहिर की गई थी।

किसानों के हितों की अनदेखी

वैसे जिस प्याज को पिछले महीने आवश्यक वस्तु अधिनियम के दायरे से बेआबरू करके बाहर किया गया था, उसे साल 2014 में इन्हीं नरेंद्र मोदी की सरकार ने बाइज्जत इस अधिनियम के दायरे में जगह दी थी। तब यह आवाज़ उठी थी कि सरकार प्याज किसानों के आर्थिक हितों की अनदेखी कर रही है। 

लेकिन तब महज दो महीने पहले ही मध्य वर्ग के सपनों पर सवार होकर बनी सरकार भला यह कैसे स्वीकार कर सकती थी कि उसके प्रिय खाद्य का बाज़ार भाव बढ़ जाए। वह शायद उस सरकार का कृषि संबंधी पहला बड़ा फ़ैसला भी था। लेकिन वहीं दाम, वही दबाव और वही सरकार, इसके बावजूद इस बार प्याज को इस अधिनियम के दायरे में जाने के लिए आपातकालिक रास्ते का इस्तेमाल करना पड़ा है।

कीमतों पर रोक की नीति

वैसे पिछले महीने प्याज को अधिनियम से बाहर करने के तुरंत बाद ही सरकार को प्याज के निर्यात पर रोक का फैसला करना पड़ा था। लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हुआ। 2014 से 2020 तक केंद्र सरकार प्याज के निर्यात पर 18 बार रोक लगा चुकी है। और बाज़ार में कीमतें न बढ़ें इस बार तो उसके लिए प्याज के आयात पर भी ढील दे दी गई है। कृषि विशेषज्ञ कह रहे हैं कि इसका कोई बड़ा फायदा नहीं होने वाला।

भारत न सिर्फ प्याज का सबसे बड़ा उत्पादक बल्कि उसका सबसे बड़ा निर्यातक भी है। यह सबसे बड़ा निर्यातक जब एक बार दुनिया के बाजार में खुद खरीदार बन कर पहुँच जाता है तो वहाँ दाम बिना किसी बड़े सौदे के ही तेज़ी से बढ़ जाते हैं। यानी प्याज की जो महंगाई इन दिनों हमारे बाज़ारों में दिख रही है उसे हम जल्द ही पूरी दुनिया में बाँट देंगे। 

किसी भी बाज़ार की सारी नीतियाँ जब उसके खरीदारों की सुविधा से तय होनी लगती हैं तो उसका सबसे सीधा और सबसे बड़ा नुक़सान उसके उत्पादकों को पहुँचता है। यही प्याज के मामले में भी हो रहा है और प्याज किसानों की हालत लगातार बिगड़ती जा रही है।

किसान बेहाल

मौसम की मार का जिन फसलों की उपज पर बहुत ज्यादा असर पड़ता है उसमें प्याज सबसे आगे है। उनकी दिक्क़त यह है कि जिस साल प्याज की उपज कम होती है, निर्यात वगैरह पर पाबंदी की वजह से उन्हें बहुत ज्यादा दाम नहीं मिल पाते। यह बात अलग है कि इसके बावजूद बाजार में प्याज की कीमत बढ़ती है और पूरा मीडिया प्याज की कीमतों और किसानों को लेकर चुटकुलों से भर जाता है।

जब प्याज की उपज बहुत ज़्यादा होती है तो वे अपनी आधी लागत भी नहीं वसूल पाते। कहीं कहीं तो फसल खेतों में ही पड़ी-पड़ी सड़ जाती है। चुटकुले बनाने वाले मीडिया में तब उनके लिए कहीं शोक गीत नहीं लिखे जाते। वैसे यह कहानी सिर्फ प्याज किसानों की नहीं उन सभी किसानों की है जो ऐसी नगदी फसलों की खेती करते हैं, जिसके लिए सरकार नियमित रूप से न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं देती। 

प्याज सरकारें गिराने के लिए बदनाम ज़रूर रहा है, पर सच यही है कि कभी किसी भी सरकार ने कोई ज़मीनी हकीक़तों के हिसाब से कोई स्पष्ट प्याज नीति नहीं बनाई। 

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