प्याज आम आदमी को ही नहीं, सरकार को भी रुलाएगा!
प्याज आम आदमी को ही नहीं, सरकारों को भी रुलाता रहा है। अब फिर से प्याज की क़ीमतें कई राज्यों में 80 रुपये प्रति किलो तक पहुँच गई हैं। आम लोगों के ‘आँसू’ निकल रहे हैं। लेकिन सत्ताधारी पार्टी का क्या हाल है क़रीब-क़रीब हर भोजन में पड़ने वाला प्याज हर आदमी को प्रभावित करता है, इसलिए इसके दाम बढ़ने से सरकारें भी ख़ौफ़ खाती हैं। चुनावों के समय जब-जब प्याज के दाम बढ़े हैं, सरकारें मुश्किल में आ गई हैं और कई बार तो गिर भी गई हैं। अब फिर महाराष्ट्र और हरियाणा में चुनाव हैं। इसके बाद कई और राज्यों में भी चुनाव होंगे। अभी जिस तरह की रिपोर्टें हैं उनसे क़रीब एक महीने तक तो प्याज के दाम कम होने के आसार नहीं हैं। यानी चुनाव तक शायद क़ीमतें कम न हों।
मेट्रो शहरों में प्याज की क़ीमतें फ़िलहाल 30 से 40 रुपये प्रति किलो तक बढ़ गई हैं। दिल्ली और मुंबई में इसके दाम 75 से 80 रुपये प्रति किलो तक हो गए हैं तो चेन्नई, कोलकाता, बेंगलुरु जैसे शहरों में 60 रुपये प्रति किलो से ज़्यादा तक। हालाँकि, हैदराबाद में प्याज 45 से 50 रुपये प्रति किलो के बेचे जाने की ख़बरें हैं। शहरों ही नहीं, अब राज्यों में छोटे कस्बों में भी इसकी क़ीमतें 60 रुपये तक पहुँच चुकी हैं। कई राज्यों में भारी बारिश होने के कारण प्याज की फ़सलें प्रभावित हुई हैं। अब प्याज की नई फ़सल नवंबर तक आ सकती है। यानी इस हिसाब से तो महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव तक प्याज के दाम कम होने के आसार नहीं हैं। तो क्या यह सत्ताधारी पार्टी के लिए बड़ी चुनौती होगी
पहली बार बड़े स्तर पर जनता पार्टी की सरकार को 1980 में इसका अहसास हुआ था। जनता पार्टी की सरकार के गिरने के पीछे प्याज की क़ीमतों का बढ़ना बड़े कारणों में से एक रहा था। और जब चुनाव हुए तो इंदिरा गाँधी ने प्याज के दाम बढ़ने को मुद्दा बनाया था और चुनाव में बड़ी जीत हासिल की थी।
राज्य सरकारों के ख़िलाफ़ भी प्याज के दाम मुद्दा रहे हैं। 1998 में दिल्ली में सुषमा स्वराज के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार और राजस्थान में भैरों सिंह शेखावत के नेतृत्व वाली सरकार को प्याज के बढ़े दाम की क़ीमत चुकानी पड़ी थी। चुनाव में यह मुद्दा ज़ोर-शोर से उठा था। विपक्ष ने प्याज की बढ़ी क़ीमतों को चुनावी मुद्दा बनाया। इसके बाद चुनाव परिणाम विपक्ष के पक्ष में आए।
प्याज की बढ़ी क़ीमतों के ये नतीजे राजनेताओं के लिए चिंता पैदा करती हैं। यही कारण है कि मोदी सरकार भी डैमेज कंट्रोल में जुट गई है। कम से कम खाद्य प्रसंस्करण मंत्री रामविलास पासवान के बयान से तो ऐसा ही लगता है। उन्होंने कहा है कि सरकार के पास प्याज की कमी नहीं है और बाढ़ के कारण क़ीमतें बढ़ी हैं।
बारिश का कितना ज़्यादा असर
प्याज से जुड़े व्यापारियों का कहना है कि भारी बरसात के कारण प्याज की फ़सलों को काफ़ी नुक़सान हुआ है। प्याज की बड़ी सप्लाई महाराष्ट्र, विशेषकर नासिक से होती है और वहाँ बारिश के कारण हालात ज़्यादा ख़राब हैं। बता दें कि पिछले साल ऐसी ख़बरें आई थीं कि प्याज की क़ीमतें कम मिलने के कारण किसानों ने प्याज सड़कों पर फेंक दिए थे। ऐसी रिपोर्टें हैं कि इस बार एक तो प्याज की फ़सल ही कम लगाई गई थी और ऊपर से भारी बारिश के कारण फ़सलें तबाह हो गईं। इस लिहाज़ से देखा जाए तो प्याज के दाम किसानों को पिछले साल ठीक मिलते तो इस बार किसान प्याज की फ़सल बोना कम नहीं करते।
क़ीमतें इसलिए भी बढ़ी हैं क्योंकि बाज़ार में इस बार प्याज की आवक कम है। पिछली बार से इस बार क़रीब 40 फ़ीसदी कम प्याज आया है। एनएचआरडीएफ़ की रिपोर्ट के अनुसार, 2018 में जहाँ 6,048,971 क्विंटल प्याज बाज़ार में आया था वहीं 2019 में 31,52,852 क्विंटल ही आया।
‘इंडिया टुडे’ की रिपोर्ट के अनुसार क़ीमतों को नियंत्रित करने के लिए केंद्र सरकार ने कुछ क़दम उठाए हैं। सरकार दिल्ली और देश के दूसरे हिस्सों में केंद्रीय एजेंसियों के माध्यम से प्याज के अपने स्टॉक में से 22 रुपये प्रति किलो और मदर डेयरी पर 23.90 रुपये प्रति किलो के दाम पर प्याज बेच रही है।
हाल के दिनों में ऐसी रिपोर्टें भी आई हैं कि भारत सरकार पड़ोसी देशों से प्याज का आयात करने जा रही है। यह आयात पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान जैसे प्याज उत्पादक देशों से किया जाएगा। सरकार का यह क़दम प्याज की कमी को पूरा करने और बढ़ती क़ीमतों के बीच घरेलू आपूर्ति को संतुलित करने के लिए उठाया गया है। 6 सितंबर, 2019 को देश की सार्वजनिक क्षेत्र की ट्रेडिंग बॉडी एमएमटीसी यानी मेटल्स एंड मिनरल्स ट्रेडिंग कॉरपोरेशन ऑफ़ इंडिया की ओर से जारी टेंडर के मुताबिक़ सरकार 2000 मीट्रिन टन प्याज का आयात करेगी। एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में हर महीने 15 लाख मीट्रिक टन प्याज की ज़रूरत होती है।
अब सरकार के ये क़दम क़ीमतों को कितना और कब तक नियंत्रित कर पाते हैं, यह कहना मुश्किल है लेकिन मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, प्याज से जुड़े व्यापारी और नाफ़ेड जैसी सरकारी एजेंसियों के लोगों का ही मानना है कि कम से कम एक महीना तो इसमें लग ही जाएगा। चुनाव को देखते हुए तो यह सरकार के लिए चिंता का कारण है, लेकिन शायद चुनाव को ही देखते हुए आम लोगों को जल्द राहत मिल जाए!