ओडिशा राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (ओएससीबीसी) ने सभी जिला कलेक्टरों और नगर आयुक्तों से अप्रैल तक राज्य में जातिगत जनगणना शुरू करने के लिए कहा है। जिससे कि अगले साल होन वाले विधानसभा और लोकसभा चुनावों से पहले जुलाई तक पूरा किया हो जा सके।
ओडिशा सरकार के इस सर्वेक्षण का उद्देश्य पिछड़ा वर्ग में सामाजिक और शैक्षिक स्थितियों का पता लगाया जा सके। इसमें उनके व्यवसाय सहित कई और अन्य मापदंड शामिल किये गये थे। पहले यह सर्वेक्षण मई 2021 में होना था, लेकिन कोविड-19 की महामारी के कारण इसमें देरी हुई। इस सर्वे ओबीसी समुदाय के लोगों को बाहर रखा जाएगा जिनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति बेहतर हुई है।
सभी जिला कलेक्टरों और नगर निगम आयुक्तों को लिखे एक पत्र में, ओएससीबीसी के सदस्य वीवी यादव ने जोर देकर कहा कि उन्हें व्यक्तिगत रूप से यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जनगणना समय सीमा में पूरी हो सके। उन्होंने कहा जिला सर्वेक्षण प्रबंधन प्लान तैयार कर मार्च के अंत तक आयोग को भेजे।
ओडिशा सरकार ने अगस्त 2021 में शहरी निकायों के साथ-साथ पंचायती राज संस्थानों में ओबीसी के लिए 27% आरक्षण की घोषणा की थी। लेकिन बीते साल हुए पंचायत और निकाय चुनावों में इसको लागू नहीं किया गया। इसका कारण ओडिशा हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की अधिसूचना को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि ओबीसी समुदाय पर आधारित डाटा के अभाव में यह संभव नहीं है। हाईकोर्ट ने इस आदेश में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बनाया था। प्रदेश की सत्ता पर काबिज बीजू जनता दल ने पंचायत चुनावों में पार्टी के टिकट बंटवारे में 40% टिकट ओबीसी समुदाय को दिये थे।
देशभर में जातिगत जनगणना की मांग बढ़ती जा रही है। बिहार सरकार पहले ही राज्य में जातिगत जनगणना शुरु कर चुकी है। बीते दिनों छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने घोषणा की थी कि राज्य में जातिगत जनगणना पूरी हो चुकी है, जल्द ही इसके संबध में नीतियां तैयार की जाएंगी।
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी लगातार इस मांग को उठा रहे हैं। उनकी समाजवादी पार्टी इस मांग को लेकर ओबीसी समुदाय को जागरुक करने के लिए प्रदेश भर में रैलियों का आयोजन कर रही है। बीते दिनों उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भी इस संबंध में सकारात्मक बयान दिया था।
जनगणना मुख्य रूप से केंद्र सरकार के अधीन आने वाला विषय है, किसी भी प्रकार की जनगणना के लिए केंद्र सरकार ही जिम्मेदार है। केंद्र सरकार जातिगत जनगणना के लिए तैयार नहीं है। ऐसे में ये राज्य सरकारें उस पर दवाब बना सकती हैं। भारत मेँ आखिरी जातिगत जनगणना 1931 में की गई थी। उसके बाद से लगातार इसकी मांग उठती रही लेकिन किसी भी सरकार ने इसको नहीं माना।
ज्ञात हो कि हर दस साल में होने वाली देश की जनगणना भी अभी तक नहीं हुई है। जबकि इसे 2021 में ही कराया जाना था। पहले कोविड के चलते हुई देरी के बाद से इस संपन्न नहीं कराया जा सका। अब यह कब होगी फिलहाल कोई जानकारी नहीं है।