फ़िल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या (अपने घर में ही फांसी लगाकर) की खबर आते ही जिसने पिछले साल आई उनकी फ़िल्म ‘छिछोरे’ देखी होगी उसे इसका वो दृश्य याद आया होगा - पिता अनिरुद्ध (सुशांत सिंह राजपूत) अपने बच्चे की आत्महत्या की कोशिश के बाद अंदर से हिल जाता है। बच्चे ने इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा में असफल होने के बाद आत्महत्या का प्रयास किया था। अनिरुद्ध को समझ में नहीं आता कि उसके बेटे ने ऐसा क्यों किया वो तो हमेशा बेटे का मनोबल बढ़ाता रहता था। जीवन में पॉजिटिव बने रहने का मशविरा देता रहता था।
सुशांत ने ‘छिछोरे’ फ़िल्म में जिस किरदार को निभाया है वो आशावादी है और जिंदगी के बड़े से बड़े हादसे को सकारात्मकता के साथ हल करने की बात करता है।
और सिर्फ ‘छिछोरे’ ही नहीं, ‘केदारनाथ’ फ़िल्म में भी वे ऐसे मुसलिम नौजवान मंसूर खान की भूमिका में थे, जो हिंदू तीर्थ केदारनाथ में पीठू है। यानी बुजुर्गों को पीठ पर लादकर मंदिर के दर्शन कराने वाला। इसमें भी मंसूर (सुशांत सिंह) बाढ़ में फंसी अपनी प्रेमिका और उसके परिवार वालों के प्राण अपनी जान की कीमत पर बचाता है।
जिस अभिनेता ने ऐसे-ऐसे किरदार फ़िल्म के पर्दे पर निभाएं हों, उसने किस लम्हे में सकारात्मक जीवन दर्शन को तिलांजलि दे दी क्या जिन भूमिकाओं को कलाकार पर्दे पर निभाता है उसका फलसफा अपनी जिंदगी में अपनाता है
ऊपर लिखे कुछ ऐसे ही सवाल सुशांत सिंह राजपूत के प्रशंसकों के दिमाग में उठ रहे होंगे।
क्या इस आत्महत्या की कोशिश के सही कारण ढूंढे या बताए जा सकते हैं शायद नहीं क्योंकि अभी तक कोई स्पष्ट आधिकारिक कारण सामने नहीं आया है। बस सिर्फ अनुमान लगाए जाएंगे। समाज शास्त्री इमील दुर्खाइम ने आत्महत्या के कारणों की खोज की थी और अपनी तरफ से कुछ निष्कर्ष भी निकाले थे। वे निष्कर्ष भी राजपूत की आत्महत्या पर लागू नहीं होते।
आख़िर, सुशांत एक सफल अभिनेता थे और समाज में किसी तरह के अलगाव के शिकार नहीं थे। कम से कम सार्वजनिक तौर पर उनके बारे में जो जानकारी है उसके आधार पर इतना कहा ही जा सकता है। फिर आत्महत्या के पीछे क्या मनोवैज्ञानिक वजहें थीं
पूर्व मैनेजर ने भी की थी आत्महत्या
सुशांत की पूर्व मैनेजर (कई और कलाकारों की भी मैनेजर) दिशा सालियान ने भी पिछले हफ्ते मुंबई में एक बहुमंजिली इमारत से छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली थी, ऐसा मुंबई पुलिस का कहना था। हालांकि दोनों में कोई प्रत्यक्षत: साम्य नहीं है लेकिन ये तो लगता है कि मुंबई की फ़िल्मी दुनिया में कोरोना के कारण मानसिक उथल-पुथल है। वहां जो संघर्षशील कलाकार हैं, वे गहरे अवसाद में हैं! लेकिन सुशांत तो सफल सेलिब्रेटी थे। कोई बड़ी समस्या नहीं थी। फिर क्या वजह रही
बहरहाल, एक संभावनाशील जीवन समाप्त हो गया। 34 साल की उम्र में सुशांत ने टीवी और फ़िल्म की दुनिया में जो मुकाम हासिल किया, वो कभी बिसराया नहीं जाएगा।
बहुत कम फ़िल्मी कलाकार हैं जो टीवी सीरियलों में काम करने के बाद फ़िल्मी दुनिया में भी बड़ी हस्ती बन जाएं। शाहरूख खान इसके पहले अपवाद रहे। सुशांत दूसरे थे।
धोनी पर बनी फ़िल्म से मिली बुलंदी
‘पवित्र रिश्ता’, ‘किस देश में है मेरा दिल’ जैसे कई लोकप्रिय धारावाहिकों में वे बड़ी भूमिकाओं में थे। फिर ‘काई पो चे’, ‘शुद्ध देसी रोमांस’, ‘डिटेक्टिव व्योमकेश बक्शी’, ‘राबता’, ‘सोन चिड़िया’ ‘केदारनाथ’ और ‘छिछोरे’ जैसी फ़िल्में की। पर जिस फ़िल्म ने उनको बुलंदी पर पहुंचाया, वो थी क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी के जीवन पर बनी ‘एम.एस. धोनी – द अनटोल्ड स्टोरी’। इसमें सुशांत केंद्रीय भूमिका में थे और फ़िल्म जबरदस्त तरीके से सफल रही। ये भी एक सकारात्मक सोच वाली फ़िल्म थी।
एक साधारण पृष्ठभूमि से मुंबई की फ़िल्मी दुनिया में आया व्यक्ति इतनी बड़ी कामयाबी हासिल कर ले, ये एक बहुत बड़ी बात है। ये फ़िल्म शायद इसलिए भी सफल रही है क्योंकि खुद धोनी एक साधारण परिवार से आए हैं और उनके किरदार को निभाने वाला भी उनकी तरह की पृष्ठभूमि वाला था।
पहले से स्थापित कोई बड़ा कलाकार अगर धोनी की भूमिका निभाता तो शायद दर्शकों को ये स्वीकार्य नहीं होता। सुशांत में वो बात थी जो उनको धोनी के किरदार के लिए सहज रूप से स्वीकार्य बनाती थी। लेकिन सिर्फ यही एकमात्र कारण नहीं था।
सुशांत के भीतर अभिनय की वो प्रतिभा भी थी जिसने उनको धोनी के रोल के उपयुक्त बनाया। फ़िल्म में सुशांत धोनी जैसे ही लगे थे। क्रिकेट के मैदान वाले धोनी। रांची का बंदा धोनी जो पहले लंबे-लंबे बाल रखता था।
जिंदगी में अप्रत्याशित तत्व होते हैं। कभी भी कुछ भी हो सकता है। सुशांत की आत्महत्या के बाद ये फिर से साबित हुआ। शायद वे किसी आने वाली फ़िल्म के लिए एक कथानक या प्लॉट छोड़ गए हैं। इस संभावित फ़िल्म की कहानी का बड़ा हिस्सा तो पहले ही लिख दिया गया है लेकिन उसका उपसंहार क्या होगा, ये भविष्य ही बताएगा।
फिलहाल तो कई तरह के संकटों से जूझ रहा मुंबइया फ़िल्म उद्योग एक कुरोसावाई सवाल के आगे निरुत्तर खड़ा है- सुशांत सिंह राजपूत ने फांसी क्यों लगाई ये जापान के महान फ़िल्मकार अकीरो कुरोसावा की फ़िल्म का विषय भी होता, अगर वे यानी कुरोसावा जीवित होते।