न्याय तभी संभव जब पर्याप्त अदालतें हों: सीजेआई रमना
अदालतों में खाली पड़े पदों को भरने के लिए सरकार की खिंचाई करते रहे भारत के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा है कि अदालतों पर अत्यधिक बोझ को देखते हुए कोर्ट की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए। उन्होंने कहा है कि न्याय तभी संभव है जब मामलों को निपटाने के लिए पर्याप्त संख्या में अदालतें हों। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अधीनस्थ न्यायपालिका को मज़बूत करना समय की मांग है और भारतीय न्यायपालिका को प्रभावित करने वाला सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा लंबित मामलों का है।
वह तेलंगाना राज्य न्यायिक अधिकारी सम्मेलन-2022 के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने कहा कि न्याय देने वाली प्रणाली का लक्ष्य समय पर न्याय करना है, जैसा कि संविधान में कहा गया है।
इसी दौरान सीजेआई रमना ने ट्रिब्यूनलों में खाली पड़े पदों और बुनियादी ढाँचा को लेकर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि रिक्तियों को भरना शीर्ष चिंता का विषय है। बुनियादी ढाँचे की ज़रूरत को बताते हुए रमना ने कहा कि न्याय तक पहुँच तभी संभव है जब हमारे पास पर्याप्त संख्या में अदालतें हों...हमारी न्यायपालिका पर पहले से ही बहुत अधिक बोझ है।
एएनआई की रिपोर्ट के अनुसार सीजेआई ने कहा, 'मैं समझता हूं कि बुनियादी ढांचे की कमी और बड़ी संख्या में न्यायिक रिक्तियों के कारण आपके कामकाज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। हालाँकि, मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि मैं इन मुद्दों को प्राथमिकता से हल करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रहा हूं। यह मेरा पक्का विश्वास है कि बेहतर न्यायिक बुनियादी ढांचा और न्याय तक पहुंच में सुधार के लिए न्यायिक रिक्तियों को भरना ज़रूरी है।'
बता दें कि सीजेआई बुनियादी ढाँचे की कमी के बारे में मुखर रहे हैं। उन्होंने इस साल ही केंद्र से विभिन्न न्यायाधिकरणों में रिक्तियों को लेकर सवाल उठाए थे। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को उन पदों को जल्द भरने के लिए कहा था और सख़्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि नौकरशाही इसे बहुत हल्के में ले रही है।
उस मामले की सुनवाई करने वाली बेंच में शामिल सीजेआई रमना ने कहा था, 'हम जानना चाहते हैं कि आपका स्टैंड क्या है। पिछली बार आपने कहा था कि कुछ नियुक्तियाँ हुई थीं। उसके बाद कुछ नहीं हो रहा है.... नौकरशाही इसे बहुत हल्के में ले रही है। बेहतर होगा कि हम सुनें और आदेश दें।'
सुप्रीम कोर्ट ट्रिब्यूनल में रिक्तियों के मुद्दे को उजागर करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कई बार अपनी नाराजगी व्यक्त कर चुकी है।
अदालत की फटकार के बाद जब ट्रिब्यूनलों में नियुक्ति की गई तो उस पर भी सवाल उठे थे। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल सितंबर में कहा था कि एक चयन कमेटी द्वारा चुनी और सिफ़ारिश की गई सूची में से चुनिंदा नियुक्ति क्यों की जा रही है? चयन कमेटी में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश भी शामिल थे।
अदालत ने देश भर के विभिन्न न्यायाधिकरणों में की गई नियुक्तियों को लेकर केंद्र को अवमानना कार्रवाई की चेतावनी दी थी। उससे एक हफ़्ते पहले सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को चेताया था कि वह अदालत के धैर्य की परीक्षा न ले।