राहुल गांधी की बात को सच होते हुए दुनिया देख रही है। राजीव गांधी के शहादत दिवस पर 21 मई को राहुल गांधी ने लंदन से पूरी दुनिया को बताया था कि बीजेपी और आरएसएस ने अपनी सोच से समूचे देश में मिट्टी का तेल फैला दिया है। 27 मई को ही नूपुर शर्मा और फिर 1 जून को नवीन जिन्दल ने मीडिया और सोशल मीडिया में अपने जहरीले बयानों से ऐसी आग लगायी कि विदेशी तत्वों को भी इस आग में घी डालने का मौका मिल गया।
धर्म के नाम पर बने देश जो इस्लामिक हैं, जिनकी कभी इतनी हिम्मत नहीं हुई कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और दुनिया की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी के साथ जी रहे हिन्दुस्तान पर उंगली उठा सके, वे भारतीय राजदूतों को तलब करने लगे। कतर जैसे देश जिसकी आबादी मणिपुर के बराबर भी नहीं है, तक की इतनी हिम्मत हो गयी कि उसने भारत के उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू को दिया गया डिनर तक रद्द कर दिया।
एक के बाद एक 15 इस्लामिक देशों ने बयान जारी कर भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ताओं नूपुर शर्मा और नवीन जिन्दल के पैगंबर को लेकर दिए गये बयानों की निन्दा की। इस्लामिक देशों के संगठन ओआईसी को भी भारत विरोधी बयान जारी करने का अवसर मिल गया।
क्यों इस्लामिक देशों के दबाव में आ गयी मोदी सरकार?
ऐसा नहीं है कि भारत में जो घटित होता रहा है उससे दुनिया अनजान है। किसी देश के अंदरूनी मामले में दखल नहीं देने की परंपरा का वे सम्मान करते रहे थे। मगर, इस बार पैगंबर के नाम पर इस्लामिक देशों को इकट्ठा होने और बोलने का अवसर मिल गया। यह कभी न कभी होना ही था। लेकिन, सवाल यह है कि जिस तरीके से नफरत के बीज बोने की होड़ बीजेपी नेताओँ में लगी थी उसे देखते हुए मोदी सरकार घुटनों के बल पर कैसे आ गयी? इसे कुछ सवालों में समझें-
- क्या इस्लामिक देशों की ओर से भारतीय वस्तुओं के बहिष्कार से डर गयी सरकार?
- क्या खाड़ी के देशों में भारतीय नागरिकों की नौकरी और सुरक्षा का डर सताने लगा?
- क्या खाड़ी के देशों से डॉलर में हासिल हो रही कमाई बंद होने का ख़तरा मंडराने लगा?
- क्या इस्लामिक देशों में फंसी भारतीय उद्योगपतियों की पूंजी का दबाव हावी हो गया?
- क्या होगा अगर इस्लामिक देश भारत को कच्चे तेल की आपूर्ति बंद करने का फैसला कर ले?
इनमें से हर एक कारण उस फैसले की वजह है जो मोदी सरकार ने अपनी पार्टी के दो प्रवक्ताओं के विरुद्ध लिए हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के खिलाफ इस्लामिक देशों की गोलबंदी को रोकना भारत की अपरिहार्य आवश्यकता बन गयी। यही वजह है कि नरेंद्र मोदी की सरकार ने आनन-फानन में ही सही, लेकिन इस्लामिक देशों की सामूहिक चिंता को समझते हुए विवेकपूर्ण फैसला लिया। यह जलती हुई आग में पानी डालने वाला फैसला माना जाएगा। इसके साथ ही यह बात भी साबित हुई है कि मोदी सरकार की न सिर्फ विदेश नीति, बल्कि गृहनीति भी फेल हो गयी।
देश-दुनिया में दांव पर है भारत की साख
मोदी सरकार की साख न सिर्फ दुनिया में बल्कि भारत के भीतर भी दांव पर है। दुनिया यह मानने को तैयार नहीं कि सत्ताधारी दल की राष्ट्रीय प्रवक्ता और किसी प्रदेश का मीडिया प्रभारी ‘फ्रिंज एलिमेंट’ हो सकता है! उन्हें यह दिखावे की कार्रवाई महसूस हो रही है। इसलिए कई इस्लामिक देशों ने भारत से माफी की मांग इस स्पष्टीकरण के बावजूद की है कि पैगंबर के विरुद्ध बोलने वाले भारत सरकार के ओहदेदार नहीं हैं।
भारत के भीतर भी किसी को यकीन नहीं है कि जिन्हें ‘फ्रिंज एलिमेंट’ कहा गया है उन्हें बीजेपी में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं मिलेगी। राजनीतिक विश्लेषकों का दावा है कि नूपुर शर्मा और नवीन जिन्दल जल्द ही किसी न किसी सदन में पहुंचे नज़र आएंगे।
इन दावों का आधार पूर्व में घटी कई घटनाएं हैं जिनमें साध्वी प्रज्ञा शामिल हैं जिनके बारे में खुद प्रधानमंत्री ने कहा था कि वे जीवन में शायद ही कभी उन्हें माफ कर पाएं। अवसर था जब साध्वी प्रज्ञा ने गोडसे की तारीफ करते-करते महात्मा गांधी की बेअदबी कर बैठी थीं।
बीजेपी की नीति-रणनीति में है मुस्लिम विरोध
बीजेपी पर यकीन नहीं होने की वजह यह भी माना जा रहा है कि मुस्लिम विरोध पार्टी की पॉलिसी बन चुकी है। राज्यसभा और लोकसभा में आज बीजेपी का कोई मुस्लिम सांसद नहीं रह गया है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कभी कब्रिस्तान-श्मशान का नारा दिया, तो कभी पहनावे से दंगाइयों को पहचानने की बात कही।
योगी आदित्यनाथ तो अक्सर मुसलमानों को निशाना बनाकर ‘गर्मी में शिमला बना देंगे’ और 80-20 का नारा देते रहे हैं। ‘ना अली, ना बाहुबली सिर्फ बजरंगबली’ जैसे नारे बीजेपी नेताओं ने खुलकर लगाए।
दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान अमित शाह का बयान भी काफी चर्चित रहा था- ‘वोट दिल्ली में दोगे करंट शाहीन बाग में लगेगा’। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का वह बयान कौन भूल सकता है- “देश के गद्दारों को...गोली मारो...को।” बीजेपी नेता कपिल मिश्रा का पुलिस अफसर की मौजूदगी में दिया गया बयान कौन भूल सकता है कि डोनाल्ड ट्रंप के जाने के बाद अगर पुलिस ने कार्रवाई नहीं की तो वे खुद धरना देने वालों को हटाएंगे। उस बयान के बाद दंगे भड़के थे। मध्यप्रदेश में एक बीजेपी नेता ने भंवरलाल को यह कहते हुए पीट-पीट कर मार डाला कि तुम मोहम्मद हो।
शासन-प्रशासन की शक्ति का भी दुरुपयोग
सिर्फ बीजेपी के नेताओं के ही नहीं, पुलिस प्रशासन की ओर से कानून का डंडा भी समुदाय विशेष पर ही बरसा है। एक पैटर्न विकसित हो गया है। दंगे को होने देना। फिर दंगे की जांच करना। शुरुआती जांच में सिर्फ और सिर्फ एक समुदाय विशेष के लोगों को पकड़ना ताकि संदेश दिया जा सके कि दंगे की असली वजह यही लोग हैं। बाद में कुछेक दूसरे समुदाय के लोगों पर भी कार्रवाई की खानापूर्ति कर देना। यह पैटर्न लगातार दोहराया जा रहा है खासकर उन प्रदेशों में जहां बीजेपी की सरकार है या फिर केंद्रीय गृहमंत्रालय के पास पुलिस है।
बुल्डोजर को प्रतीक बना दिया गया है। जो जुबान खोलेगा, उसके घर ढाह दिए जाएंगे। दंगाइयों पर बुल्डोजर चलाने का जोश मध्यप्रदेश के खरगौन में देखने को मिला जब एक अपंग, जिनके दोनों हाथ नहीं थे, पर भी पत्थर चलाने का आरोप चस्पां कर दिया गया और उसकी गुमटी ढाह दी गयी। मुसलमान होना ही तो उसका गुनाह था!
आगे और भी हैं ख़तरे
इन घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में राहुल गांधी के बयान को देखें। ख़तरा अभी बना हुआ है। ताज़ा ख़बर यह है कि ज्ञानवापी सर्वे का आदेश देने वाले जज को रजिस्टर्ड डाक से चिट्ठी भेजकर जान से मारने की धमकी दी गयी है। अलकायदा ने भी धमकी दी है कि दिल्ली से गुजरात तक आत्मघाती हमले किए जाएंगे। नूपुर शर्मा और नवीन जिन्दल को जान से मारने की लगातार धमकी दी जा रही है।
ख़तरा सिर्फ ये धमकियां नहीं हैं। ख़तरा है इनमें से एक भी धमकी अगर सफल हो गयी तो जो प्रतिक्रिया होगी उसकी आग की लपट कितनी दूर जाएगी, यह कोई नहीं जानता। अब दुनिया समझ रही है कि राहुल गांधी ने किस केरोसिन और किस आग की चपेट में भारत के घिरे होने की बात कही थी।