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एनआरसी से मौत? राजनीति जो भी हो, बंगाल में दहशत तो कम नहीं है

एनआरसी से मौत? राजनीति जो भी हो, बंगाल में दहशत तो कम नहीं है

पश्चिम बंगाल में असम की तरह एनआरसी लागू नहीं है, लेकिन इसकी दहशत उससे कम भी नहीं है। ऐसी अफ़रातफ़री है कि कई लोगों की मौत के दावे किए गए हैं। तो क्यों है इतनी दहशत कि स्थिति मौत तक पहुँच जा रही है?

पश्चिम बंगाल में असम की तरह एनआरसी लागू नहीं है, लेकिन इसकी दहशत उससे कम भी नहीं है। ऐसी अफ़रातफ़री है कि कई लोगों की मौत के दावे किए गए हैं। ख़ुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दावा किया है कि पश्चिम बंगाल में एनआरसी की अफ़वाह से उपजी दहशत के कारण 11 लोगों की मौत हो गई है। तो क्यों है इतनी दहशत कि स्थिति मौत तक पहुँच जा रही है

दरअसल, नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिज़न्स यानी एनआरसी को लेकर तरह-तरह की अफ़वाहें हैं। कागजात बनवाने के लिए होड़ मची है। लोग ज़मीन के कागजात के साथ ही जन्म-मृत्यु व आवासीय प्रमाण पत्र, आधार कार्ड जैसे डॉक्यूमेंट बनवाने में जुटे हैं। पंचायत से लेकर दूसरे सरकारी कार्यालयों पर लंबी-लंबी लाइनें हैं। पंचायत के पास ही फ़ोटोकॉपियर और इंटरनेट कैफ़े जैसी छोटी-छोटी दुकानों में फ़ॉर्म भरवाने के लिए काफ़ी ज़्यादा भीड़ है। दूसरे राज्यों में काम करने वाले लोग भी काम छोड़कर दस्तावेज़ बनवाने अपने घर पश्चिम बंगाल पहुँचे हैं। लोग उस कागजात ढूँढने में लगे हैं जो उन्हें यह साबित कर सके कि वे या उनके वंशज 1971 के पहले यहाँ रह रहे थे। बता दें कि असम में एनआरसी का कट-ऑफ़ वर्ष 1971 ही है।

जब से बीजेपी ने एनआरसी को लेकर बयान दिया है तब से स्थिति ऐसी ही है। अगस्त के अंत में मुसलिम संगठनों ने पर्चे बाँटे, सेमिनार आयोजित किए और बंगाल में लोगों से अपने कागजात तैयार रखने के लिए कहा। उन्होंने यह आशंका जताई थी कि एनआरसी को लाया जा सकता है। इसी बीच बीजेपी ने दावा किया था कि असम के बाद बंगाल में एनआरसी को लागू किया जाएगा।

बीजेपी ख़ुदकुशी की बात भले न माने, पर वह अफरातफरी के माहौल से इनकार नहीं कर सकती। राज्य में एनआरसी की बात उसी ने उठाई। राज्य बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष ने एक नहीं, कई बार कहा है कि पश्चिम बंगाल में हर हाल में एनआरसी लागू हो कर रहेगा। बीजेपी ने यह भी कहा है कि एनआरसी लागू होने के बावजूद किसी हिन्दू को राज्य के बाहर नहीं जाने दिया जाएगा। यही बात केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी असम में कह चुके हैं। इतने ऊँचे स्तर पर इस तरह की बात चली तो अफवाहें भी फैलती गईं। यह अफ़रातफ़री बेमतलब नहीं है। कई लोगों की जानें जाना (जैसा कि दावा किया जा रहा है) बेमतलब हो भी नहीं सकता। 

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने ऐसे तीन परिवारों से बातचीत के आधार पर एक रिपोर्ट छापी है, जिनकी हाल ही में मौत हुई है। बांग्लादेश की सीमा से सटे दक्षिण और उत्तर 24 परगना के हिंगलगंज, बसीरहाट, हसनाबाद और भांगर बेल्ट में ग्रामीणों के बीच डर का माहौल है। दूसरे राज्यों में काम करने वाले लोग वापस आ गए हैं ताकि दस्तावेज़ बनवा सकें। 

‘अवसाद में थे, फंदे पर लटक गए’

अख़बार के अनुसार, बशीरहाट के शोलादाना गाँव की खैरुन नाहर बीबी का कहना है कि उनके 32 वर्षीय पति कमल हुसैन मंडल एक ईंट-भट्ठा मज़दूर थे और वह दो हफ़्ते से ज़मीन के रिकॉर्ड के लिए पंचायत कार्यालयों के चक्कर लगा रहे थे। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के अनुसार, वह कहती हैं, ‘वह अपने पिता के नाम पर ज़मीन के कागजात खोजना चाहते थे, जिनकी 30 साल पहले मृत्यु हो गई थी। लेकिन वह उन्हें नहीं मिला। वह अवसाद में थे और वह खाना भी बहुत कम खा रहे थे। दिन-रात वह कहते रहते थे कि हमें बाहर निकाल दिया जाएगा क्योंकि एनआरसी आ रहा है। शनिवार की रात (21 सितंबर) को भी वह उन बातों को कहते रहे थे।’

22 सितंबर को मंडल आम के पेड़ पर फंदे से लटकते हुए पाये गये थे। अब उनके परिवार में उनकी पत्नी खैरुन और दो बेटे हैं। मंडल के बड़े भाई हसन का कहना है कि उनकी मौत के बाद वह तबाह हो गए हैं। ‘वह हम सब में सबसे तेज़ थे और पूरा परिवार कागजात प्राप्त करने के लिए उन पर निर्भर था... मुझे लगता है कि वह दुखी थे कि वह परिवार को नहीं बचा सकते।’

पुलिस ने एक अप्राकृतिक मौत का मामला दर्ज किया। बशीरहाट के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि आंतरिक जाँच जारी है और हम इसको एनआरसी के एंगल से देख रहे हैं।

‘रिकॉर्ड तलाश में थीं, दिल का दौरा पड़ गया’

गाजीपारा में 59 साल की मोमेना बेवा, 20 सितंबर को पड़ोस के बाँकरा में अपने भाई के घर गई जो परिवार के 1971 के पहले के भूमि रिकॉर्ड की तलाश में थी। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के अनुसार, उनके तीन बेटों में से एक 32 साल के मोइदुल कहते हैं, ‘सभी ने कहा कि हमें इस तरह के रिकॉर्ड की ज़रूरत है। जब वह उन्हें नहीं पा सकीं तो उनके और उनके भाई के बीच एक विवाद हो गया था और वह बीमार पड़ गईं।’

अख़बार के अनुसार, 35 वर्षीय मुशर्रफ का कहना है कि उन्होंने मोमेना को बशीरहाट के एक अस्पताल में भर्ती कराया, जहाँ उनकी मौत हो गई। डॉक्टरों ने मौत का कारण दिल का दौरा बताया। मोइदुल का कहना है कि डर वास्तविक है। उन्होंने कहा, ‘हमें नहीं पता कि क्या होगा… परिवार के कुछ सदस्यों के पास आधार कार्ड भी नहीं है। माँ के नहीं होने पर, हम ज़मीन के कागजात का पता कैसे लगाएँगे’

इसके तुरंत बाद, स्थानीय तृणमूल कांग्रेस के विधायक देवेश मंडल ने परिवार का दौरा किया और मदद का आश्वासन दिया। पुलिस ने परिवार के सदस्यों का बयान दर्ज किया है।

कटकली में हिंगलगंज में 47 वर्षीय तस्लीमा बीबी अपने पीछे तीन बेटे और एक बेटी छोड़ गई हैं। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के अनुसार, तोहमीना का कहना है कि उनकी माँ तस्लीमा और उनके पिता सईब अली गाजी अगस्त के आख़िरी हफ़्ते से दहशत में थे। उन्होंने कहा, ‘उन दोनों और मेरे छोटे भाई के पास आधार कार्ड नहीं हैं। इसलिए बीड़ी मज़दूर के रूप में काम करने वाले पिता चेन्नई से घर आए और बीडीओ व पंचायत कार्यालय के लगातार चक्कर लगाते रहे। मेरी माँ भी उनके साथ गई थीं।’

रिपोर्ट के अनुसार, 22 साल की तोहमीना ने बताया कि तनाव के कारण बीड़ी मजदूर के रूप में कमाए हुए पैसे भी तस्लीमा के ख़त्म हो गए। उन्होंने कहा, ‘इस पर अक्सर झगड़े होते थे। 25 सितंबर की दोपहर को इस तरह की लड़ाई के बाद माँ बीमार पड़ गईं। हम उन्हें बशीरहाट अस्पताल ले गए जहाँ उनकी मौत हो गई।’ डॉक्टरों ने मौत का कारण कार्डियो-रेस्पिरेटरी फ़ेल्योर बताया। पुलिस ने परिवार को बताया है कि वे जाँच कर रहे हैं कि मौत एनआरसी से कैसे जुड़ा है।

बीजेपी पर लोगों में डर फैलाने का आरोप लगाते हुए हिंगलगंज के विधायक देवेश मंडल कहते हैं, ‘ये लोग यहाँ पैदा हुए थे, उनके पूर्वज निवासी थे। दहशत उन्हें मौत के घाट उतार रही है। मैंने कुछ परिवारों का दौरा किया है, जिन्होंने अपने प्रियजनों को खो दिया है। हम उनके साथ हैं। हमारी मुख्यमंत्री उनके साथ खड़ी हैं।’ 

बहरहाल, अभी यह कहना तो मुश्किल है कि एनआरसी की दहशत में मौतें हुईं या नहीं, लेकिन ख़ौफ़ तो काफ़ी ज़्यादा है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है।

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