उत्तर भारत में पिछले दो-तीन दिनों से भारी बारिश ने तबाही मचाई है। पर्यावरण संरक्षण से जुड़े लोग इस बात पर सवाल उठाते हैं कि क्या सच में बारिश ने तबाही मचाई है, या फिर यह इंसानों द्वारा उत्पन्न की गई है? दरअसल, वे सवाल उठाते हैं कि बारिश तो कभी कम या ज़्यादा हो सकती है, लेकिन जो तबाही आती है उससे इंसान सबक कैसे सिखते हैं। तो सवाल है कि आख़िर इस तथ्य में कितना दम है कि ऐसी आपदाओं के लिए इंसान ही ज़िम्मेदार है?
वैसे, इस सवाल का सपाट जवाब तो यह हो सकता है कि इतनी तरक्की के बावजूद पहले की ऐसी घटनाओं से सबक़ नहीं लेना क्या इंसानी भूल नहीं है! लेकिन इसका बड़े पैमाने पर आकलन किया जाए तो कहा जाता है कि जिस तरह से प्रकृति को धता बताते हुए निर्माण कार्य किया गया है और पर्यावरणीय चिंताओं की अनदेखी की गई है, उसे क्या इंसानी ग़लती नहीं कहा जाएगा?
2013 में उत्तराखंड में आई आपदा के बाद बड़े पैमाने पर इस पर चर्चा हुई थी कि आख़िर ऐसी आपदा की वजह क्या है। अनियमित निर्माण और गैर-योजनाबद्ध बुनियादी ढांचे को कारण बताया गया था। जाँच रिपोर्टों में भी यही बताया गया था। उत्तराखंड में आई तबाही के बाद भी कहीं न कहीं हर साल ऐसी घटनाएँ सामने आती रही हैं। प्रत्येक घटना ने सीख दी है। लेकिन क्या इसका फायदा हुआ? लगता है कि बहुत कम सबक लिया गया।
2013 की उत्तराखंड आपदा के बाद एक भी वर्ष ऐसा नहीं बीता जब भारत में ज़्यादा बारिश से तबाही नहीं आई हो। ऐसे मामलों में बड़े पैमाने पर बाढ़ आई, विनाश हुआ और ज़्यादातर मामलों में लोगों की जानें भी गईं। ऐसी घटनाएँ कश्मीर, तमिलनाडु, बेंगलुरु, महाराष्ट्र, हरियाणा, केरल, असम, बिहार और कई अन्य स्थानों पर हुई हैं।
ऐसी घटनाओं के बारे में वैज्ञानिक कई वर्षों से चेतावनी देते रहे हैं। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार वैज्ञानिक कहते रहे हैं कि मौसम में बदलाव की वजह से तेज वर्षा या सूखे जैसे हालात हो सकते हैं। दुनिया भर में ऐसी घटनाएँ घट रही हैं। कहा जा रहा है कि उत्तर भारत में भारी वर्षा का मौजूदा दौर इसी प्रवृत्ति का एक हिस्सा है।
तो सवाल है कि ऐसी स्थिति में तबाही का ख़तरा इतना क्यों बढ़ जाता है? और जब ऐसी घटनाओं की आशंका रहती है तो फिर पहले की घटनाओं से सबक क्यों नहीं लिया जाता है?
बेंगलुरु में हर साल बाढ़ आती है। ऐसा इसलिए नहीं है कि यहां असामान्य मात्रा में बारिश होती है। ऐसा इसलिए है कि पानी के बहाव के रास्ते को अवैध निर्माण कर अवरुध कर दिया गया है। जब पानी के जाने के रास्ते बंद होंगे तो पानी तो खुद ब खुद रास्ता बनाएगा ही। ऐसा ही हाल मुंबई का रहता है। हर साल मुंबई में बारिश के पानी से सड़कों पर पानी भरता है। इसकी वजह यह है कि वहाँ पर पानी निकासी की समूचित व्यवस्था नहीं है।
लेकिन इससे अलग जब बड़े पैमाने पर बाढ़ जैसे हालात की स्थिति के बारे में आकलन किया जाए को 2014 में श्रीनगर में हालात बेहद ख़राब हुए थे। कहा जाता है कि नदी के बहाव के रास्ते में पर्यटक होटलों के निर्माण में नियमों की अनदेखी की गई। तब बाढ़ से बड़े पैमाने पर नुक़सान हुआ था। केरल में 2018 में बड़े पैमाने पर विनाश हुआ था। इसका मुख्य कारण नदियों के बहाव के मुहाने पर बड़ी संख्या में बस्तियां और पर्यटन से जुड़े बुनियादी ढांचे का बनना था। ऐसा ही 2013 में उत्तराखंड की तबाही के बारे में कहा जाता है। तो सवाल वही है कि क्या कभी इससे सबक लिया जाएगा?