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अब बाहरी लोग भी कर सकेंगे जम्मू-कश्मीर के चुनाव में मतदान

अब बाहरी लोग भी कर सकेंगे जम्मू-कश्मीर के चुनाव में मतदान

बाहरी लोगों को जम्मू-कश्मीर के चुनाव में वोट डालने की इजाजत देने का क्या कोई असर विधानसभा चुनाव में होगा?

जम्मू-कश्मीर में अब बाहरी लोग भी वोट डाल सकेंगे। जम्मू-कश्मीर के मुख्य निर्वाचन अधिकारी हिरदेश कुमार कहा है कि बाहरी लोग जिनमें कर्मचारी, छात्र, मजदूर और जम्मू-कश्मीर में अस्थायी तौर पर रहने वाला कोई भी शख्स शामिल है, अपना नाम मतदाता सूची में दर्ज करा सकता है और जम्मू-कश्मीर के चुनाव में मतदान कर सकता है। पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला ने इस फैसले का विरोध किया है। 

बता दें कि जम्मू-कश्मीर में इस साल के अंत में या अगले साल की शुरुआत में विधानसभा के चुनाव हो सकते हैं।

मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने कहा है कि बाहरी लोगों को मतदाता के रूप में खुद का नाम दर्ज कराने के लिए डोमिसाइल की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि सशस्त्र बलों के ऐसे जवान जो दूसरे राज्यों से हैं और जम्मू-कश्मीर में तैनात हैं, वे भी अपना नाम मतदाता सूची में दर्ज करा सकते हैं।

5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया गया था और इसके साथ ही राज्य को दो हिस्सों में बांट दिया गया था और पूर्ण राज्य का दर्जा भी खत्म कर दिया गया था। राज्य में जून, 2018 के बाद से ही कोई सरकार अस्तित्व में नहीं है।

मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने कहा है कि जम्मू-कश्मीर में 18 वर्ष से ऊपर के 98 लाख लोगों के होने का अनुमान है। जबकि बीते साल जो मतदाता सूची आई थी उसमें 76 लाख मतदाताओं के नाम थे। उन्होंने कहा कि अंतिम मतदाता सूची में 20 से 25 लाख और मतदाता बढ़ने का अनुमान चुनाव आयोग को है। 

मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने कहा कि बाहरी लोगों के द्वारा मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने के लिए जो दस्तावेज दिए जाएंगे उनकी जांच पड़ताल सरकार के द्वारा की जाएगी और उसके बाद ही उनका नाम मतदाता सूची में शामिल किया जाएगा। 

चुनाव आयोग के मुताबिक, 15 सितंबर को नई मतदाता सूची प्रकाशित की जाएगी और इस पर तमाम दावे और आपत्तियां 15 सितंबर से 25 अक्टूबर तक दर्ज कराई जा सकेंगी। 10 नवंबर तक इन सभी आपत्तियों का निस्तारण कर दिया जाएगा। 

महबूबा, उमर ने उठाए सवाल 

पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती ने कहा है कि बाहरी लोगों को जम्मू-कश्मीर के चुनाव में वोट डालने की इजाजत देने का फैसला चुनाव नतीजों को प्रभावित करने के लिए लिया गया है। इसका असली मकसद स्थानीय लोगों की ताकत कम करना और जम्मू-कश्मीर पर जबरदस्ती शासन करना है। पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि क्या बीजेपी जम्मू-कश्मीर के मतदाताओं को लेकर इस कदर असुरक्षित महसूस कर रही है कि उसे चुनाव जीतने के लिए बाहर से मतदाताओं का आयात करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि इस तरह के फैसलों से बीजेपी को कोई फायदा नहीं होगा। 

बताना होगा कि जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की प्रक्रिया के बाद विधानसभा सीटों की संख्या बढ़ गई है। पहले जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों की संख्या 83 थी और अब यह बढ़कर 90 हो चुकी है। ऐसा पहली बार हुआ है जब जम्मू-कश्मीर में 9 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित की गई हैं।

अब तक जम्मू में 37 सीटें थीं जबकि कश्मीर में 46। लेकिन अब जम्मू में विधानसभा की 6 सीटें बढ़ेंगी जबकि कश्मीर में एक। इस तरह जम्मू में अब 43 सीटें हो जाएंगी जबकि कश्मीर में 47।

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