कोरोना की जाँच के लिए ज़रूरी सीरोलॉजिकल टेस्ट किट अब तक नहीं मिला है। इस किट से ही रैपिड टेस्ट हो सकता है। यह टेस्ट किट बहुत पहले मिल जाना चाहिए था। कम से कम 5 बार इस किट के पहुँचने की तारीख तय हुई, लेकिन वह नहीं पहुँचा।
न्यूज़ 18 ने इंडियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के सूत्रों के हवाले से कहा है कि यह किट न होने की वजह से ही रैपिड टेस्ट नहीं हो रहा है, उसके बदले आरटी पीसीआर टेस्ट किया जा रहा है।
मौजूदा किट से जाँच करने से उसका नतीजा आने में समय लगता है, जिससे जाँच की रफ़्तार धीमी है।
इसका नतीजा यह है कि गुरुवार तक पूरे देश में सिर्फ एक लाख जाँच हुए थे। इसी जाँच के आधार पर सरकार यह कहती रही है कि संक्रमण की रफ़्तार धीमी है।
सवाल यह उठता है कि यदि 130 करोड़ जनसंख्या वाले देश में सिर्फ एक लाख लोगों की जाँच होगी तो इस आधार पर यह कैसे निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि संक्रमण की स्थिति क्या है। इसलिए अधिक जाँच की ज़रूरत है और अधिक जाँच के लिए अधिक किट की ज़रूरत है।
आईसीएमआर ने सामुदायिक संक्रमण की स्थिति जानने के लिए रैंडम तरीक़े से यानी जहाँ-तहाँ से एक मार्च से लेकर 15 मार्च तक 1020 सैंपल लिए थे। ये वे लोग थे जिनमें गंभीर साँस की बीमारियों, न्यूमोनिया और इन्फ्लूएंज़ा जैसे लक्षण थे। तब इसने कहा था कि सामुदायिक संक्रमण नहीं हुआ है।
लेकिन जब 14 मार्च के बाद इस नीति में बदलाव लाया गया कि रैंडम तरीक़े से ही नहीं, बल्कि गंभीर साँस की बीमारियों वाले सभी मरीजों का कोरोना टेस्ट होगा तो रिपोर्ट अलग आने लगी।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि तीसरे चरण यानी सामुदायिक संक्रमण की स्थिति में रैंडम जाँच से काम नहीं चलेगा, बड़े पैमाने पर जाँच करना होगा और तेज़ जाँच करना होगा। उस स्थिति में रैंडम टेस्ट किट की ज़रूरत बहुत अधिक पड़ेगी। पर अब तक वह टेस्ट किट भारत के पास नहीं है।