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मुख्यमंत्री पद के लिए एनडीए करेगा फ़ैसला: नीतीश कुमार

मुख्यमंत्री पद के लिए एनडीए करेगा फ़ैसला: नीतीश कुमार

बिहार विधानसभा चुनाव नतीजे आने के बाद चौथी बार मुख्यमंत्री बनाए जाने की अटकलों के बीच नीतीश कुमार ने कहा है कि उन्होंने इस पद के लिए कोई दावा नहीं किया है। उन्होंने साफ़ किया है कि इस पर एनडीए फ़ैसला लेगा। 

बिहार विधानसभा चुनाव नतीजे आने के बाद चौथी बार मुख्यमंत्री बनाए जाने की अटकलों के बीच नीतीश कुमार ने कहा है कि उन्होंने इस पद के लिए कोई दावा नहीं किया है। उन्होंने साफ़ किया है कि इस पर एनडीए फ़ैसला लेगा। उन्होंने कहा है कि शुक्रवार को एनडीए के घटक दल बैठक करेंगे। नीतीश कुमार के इस बयान से अब उन अकटलों को और बल मिल सकता है जिनके बारे में कई रिपोर्टों में कहा जा रहा था कि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनने के अनिच्छुक हैं। 

बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए के नतीजे ही कुछ ऐसे आए हैं कि नीतीश कुमार के सामने असहज सी स्थिति पैदा हो गई लगती है। एनडीए ने चुनाव में बहुमत हासिल किया है और 125 सीटें जीती हैं। इसने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री के तौर पर पेश किया था लेकिन इनकी पार्टी सिर्फ़ 43 सीटें ही पा सकी है जबकि गठबंधन में सबसे बड़ा दल बीजेपी बनकर उभरी है। बीजेपी ने 74 सीटें जीती हैं। नतीजे आने के बाद भले ही बीजेपी का आलाकमान कह रहा है कि नीतीश मुख्यमंत्री होंगे, लेकिन बीजेपी के कई नेता इससे अलग बयान दे रहे हैं। नीतीश कुमार पर एक दबाव यह भी है कि मैनडेट उनके ख़िलाफ़ है तो वह कैसे मुख्यमंत्री बनेंगे। 

आरजेडी नेता तेजस्वी प्रसाद यादव ने भी उनपर यह कहकर निशाना साधा है कि यदि उनमें थोड़ी भी नैतिकता बची है तो उन्हें मुख्यमंत्री पद को छोड़ देना चाहिए। 

हालाँकि इस बीच ये भी रिपोर्टें आ रही हैं कि बीजेपी के वरिष्ठ नेता नीतीश कुमार को मनाने में जुटे हुए हैं कि वह मुख्यमंत्री का पद ग्रहण करें। रिपोर्टों में यह भी कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री बनने पर उन्हें फ़ैसले लेने में पूरी आज़ादी होगी।

माना जा रहा है कि नीतीश कुमार की सबसे ज़्यादा नाराज़गी चिराग पासवान के रूख़ को लेकर है। चुनाव में चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी ने नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के उम्मीदवारों वाली सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। चिराग पासवान के रूख़ को लेकर बीजेपी पर हमला होता रहा है कि उसने ही उन्हें उकसाया है और वह नीतीश के ख़िलाफ़ इस्तेमाल कर रही है। जेडीयू नेता भी शायद यही मानते हैं लेकिन ख़राब प्रदर्शन के बाद वे भी ज़्यादा कुछ नहीं कर सकते। 

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नीतीश कुमार के सामने एक और चुनौती है। वह जानते हैं कि इस बार राज्य में सरकार चलाना उनके लिए आसान नहीं होगा। क्योंकि बीजेपी ज़्यादा ताक़तवर है, इसलिए मलाईदार महकमों पर वह अपना हक़ जताएगी। इससे भी बड़ा कारण दोनों दलों की विचारधारा में अंतर है। लोकसभा चुनाव जीतने के बाद से ही बीजेपी उग्र हिंदुत्व के एजेंडे पर तेज़ी से क़दम बढ़ा रही है। 

राम मंदिर निर्माण की नींव रखने ख़ुद पीएम मोदी का जाना इस बात को साफ करता है कि बीजेपी हिंदू मतों की अकेली झंडाबरदार बनना चाहती है। लेकिन नीतीश के साथ उसका टकराव बना रहेगा क्योंकि धारा 370, तीन तलाक़, सीएए-एनआरसी को लेकर जेडीयू का रूख़ बीजेपी से अलग है।

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