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बिहार में क्यों निकली हैं बीजेपी और जदयू में तलवारें?

बिहार में क्यों निकली हैं बीजेपी और जदयू में तलवारें?

जाति जनगणना को लेकर बिहार में सियासी कोहराम मचा है। नीतीश कुमार की जदयू जाति जनगणना कराना चाहती है, लेकिन बीजेपी यह नहीं चाहती।

जाति जनगणना बीजेपी के गले की फांस बन गई है। बिहार में उसके सबसे पुराने सहयोगी जदयू के रुख से बीजेपी और उसके नेताओं की जान सांसत में है। बीजेपी के कुछ नेता इस मुद्दे पर विरोध ज़रूर कर रहे हैं लेकिन न तो केंद्र का और न ही बिहार का कोई बड़ा नेता जदयू के खिलाफ़ मुखर होकर कुछ बोल रहे हैं। बीजेपी के छुटभैटे नेता ज़रूर बनडमरू की तरह बज रहे हैं लेकिन पार्टी ही उनके साथ खड़ी दिखाई नहीं देती है।

जाति जनगणना के मुद्दे पर जदयू का नज़रिया साफ़ है और वह अपने रुख में किसी तरह का लचीलापन लाने को तैयार नहीं है। जदयू नेताओं का मानना है कि अगर इस बार भी चूक गए तो एक दशक बाद ही अगली जनगणना होगी और तब क्या कुछ होगा यह कहना मुश्किल है। बीजेपी इससे असमंजस में है। बिहार में साथ मिल कर सरकार चला रही है और उसकी दिक्कत यह है कि उसके पास भी अगर कोई चेहरा बिहार में है तो वह नीतीश कुमार का ही चेहरा है। इसलिए बीजेपी नीतीश कुमार को नाराज़ करना नहीं चाहती। जदयू भी इस सच से वाकिफ है कि बीजेपी अगर नीतीश को दरकिनार करेगी तो फिर उसे न तो माया मिलेगी और न ही राम। बीजेपी का पसोपेश जदयू को जाति जनगणना के लिए ताक़त दे रहा है।

जाति जनगणना पर सियासत हो रही है और दिन ब दिन इसकी आँच तेज़ होती जा रही है। बिहार में आए दिन सभा-सेमिनार हो रहे हैं और जदयू नेता इन सभा-सेमिनारों में हिस्सा लेकर लोगों को गोलबंद कर रहे हैं। बात टकराव तक जा पहुँची है। जदयू संसदीय दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा का मानना है कि सृजन के लिए तकलीफ उठानी पड़ती है। उपेन्द्र कुशवाहा साफ़ कहते हैं कि उनकी पार्टी भले ही एनडीए का हिस्सा है, लेकिन उनकी मांग नहीं मानी जाती है तो टकराव निश्चित तौर पर होगा। कुशवाहा का मानना है कि जाति जनगणना की अनुमति नहीं देना ‘बेईमानी’ होगी। खासकर तब जबकि 2010 में मनमोहन सिंह सरकार के दौरान संसद ने इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित किया था और एनडीए सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान भी केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने इस बारे में भरोसा दिलाया था।

वह प्रधानमंत्री से भी सवाल करते हैं और कहते हैं कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद को पिछड़े समुदाय का बताया था तब हम बहुत गौरवान्वित हुए थे। हम उम्मीद करते हैं कि वह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जाति जनगणना की मांग पर विचार करेंगे। उन्होंने तंज भी कसा। नरेंद्र मोदी ऐसा नहीं करते हैं तो फिर सभा-सम्मेलनों में अपने को पिछड़ा कहने से उन्हें बचना होगा और हम भविष्य में इसका विरोध करेंगे। पिछड़े हैं तो पिछड़ों के हक-हकूक पर उन्हें गंभीर होना होगा।

यूँ बिहार में जदयू और बीजेपी में लुकाछुपी का खेल चल रहा है। तलवारें म्यान से बाहर आती हैं। तलवारें भांजी जाती हैं और फिर म्यान में वापस रख दी जाती हैं। लंबे समय से ऐसा हो रहा है।

कई लोगों को लगता है कि गठबंधन बस टूटा ही टूटा, लेकिन ऐसा होता नहीं है। मणिपुर में जदयू विधायकों ने पाला बदल कर बीजेपी की सदस्यता ली थी, तब से इसी तरह का खेल चल रहा है। दोनों दलों के प्यार और तकरार को देख कर वह शेर याद आता है-

कैसा परदा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं, 

साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं।

 

बयान दिए जाते हैं, बयानों का जवाब दिया जाता है। फिर सब कुछ सामान्य हो जाता है और जो विपक्ष ‘सरकार गई-सरकार गई’ का राग अलापते रहता है वह फिर से किसी नए बयान के इंतज़ार में जुट जाता है। बीच-बीच में एनडीए के सहयोगी दल हम और वीआईपी भी आँखें तरेरती हैं। लेकिन जीतनराम मांझी को भी पता है और मुकेश सहनी को भी कि कुल जमा चार-चार विधायक उनके पास हैं। दोनों नेताओं ने अगर एनडीए से नाता तोड़ने की कोशिश की तो उनके विधायक कभी भी पाला बदल सकते हैं। वैसे भी मुकेश सहनी के तीन विधायक तो आयातित हैं। वे बीजेपी के सिपाही रहे हैं और वीआईपी के चुनाव-चिन्ह पर चुनाव लड़ कर विधायक बने हैं। इसलिए दोनों छोटे दलों पर ख़तरा ज़्यादा है क्योंकि सत्ता के साथ बने रहना विधायक ज़्यादा पसंद करेंगे, पार्टी की बजाय।

 - Satya Hindi

लेकिन जदयू ज़रूर बीजेपी की परेशानी बढ़ा रहा है। नीतीश कुमार ने तीन मुद्दों पर बीजेपी से अलग लाइन ले रखी है। बीजेपी का अपना एजेंडा है लेकिन नीतीश कुमार के रहते बीजेपी अपने एजेंडे को बिहार में तो लागू नहीं ही करा सकती है। बीजेपी की मजबूरी बिहार में यह है कि तमाम दावों के बावजूद उसके पास भी जो चेहरा है वह नीतीश कुमार का ही चेहरा है इसलिए नीतीश कुमार जनसंख्या नियंत्रण क़ानून हो या फिर धर्मांतरण या फिर जाति जनगणना या पेगासस, बीजेपी को घेरते हैं। जनसंख्या नियंत्रण क़ानून पर नीतीश कुमार ने साफ़-साफ़ बीजेपी को संदेश दिया, यह क़दम सही नहीं है। जनसंख्या क़ानून से नहीं रोकी जा सकती, लोगों को जागरूक करना होगा और महिलाओं को शिक्षित करना होगा, तभी इस मसले को सुलझाया जा सकता है। उन्होंने इसके लिए चीन की मिसाल भी दी थी। लेकिन जदयू अब बीजेपी और केंद्र सरकार को जाति जनगणना के मुद्दे पर लगातार घेर रहा है।

जाति जनगणना को लेकर बिहार में सियासी कोहराम मचा है। केंद्र सरकार ने जनगणना शुरू करने का एलान किया है। कायदे से तो जनगणना पूरी हो जानी चाहिए थी लेकिन कोरोना की वजह से इसमें देर हुई। केंद्र सरकार ने कहा है कि जनगणना के दौरान एससी-एसटी के लोगों की भी गणना की जाएगी। लेकिन जदयू जातीय आधार पर जनगणना की मांग कर रहा है। यानी जनगणना के दौरान सरकार इसका भी रिकॉर्ड रखे कि किस जाति के कितने लोग हैं। फिर जातिवार लोगों का डेटा सार्वजनिक किया जाए। नीतीश कुमार ने केंद्र सरकार से मांग की फिर वे बिहार के सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के साथ प्रधानमंत्री से मिले और उनसे कहा कि वे जाति के आधार पर जनगणना कराएं। नीतीश के मुताबिक़ हमारा मानना है कि जाति आधारित जनगणना होनी चाहिए। बिहार विधानमंडल ने 18 फ़रवरी, 2019 और फिर बिहार विधानसभा ने 27 फ़रवरी, 2020 को सर्वसम्मति से इस आशय का प्रस्ताव पास कर इसे केंद्र सरकार को भेजा था। केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर विचार करना चाहिए।

नीतीश का मानना है कि जाति जनगणना होने से जो पिछड़े तबक़े और गरीब गुरबा लोग हैं उन्हें भी कई सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सकेगा। बीजेपी का रुख इससे अलग है।

कुशवाहा ने कहा कि बीजेपी अलग पार्टी है और जदयू अलग पार्टी। गठबंधन में भले ही हम एक साथ हैं लेकिन हमारी राय अलग-अलग हो सकती है।

जाति जनगणना के मुद्दे पर फ़िलहाल बीजेपी और जदयू में तलवारें तनी हुई हैं। बीजेपी नेताओं का कहना है कि किसी भी क़ीमत पर जाति जनगणना नहीं होगी। बीजेपी विधायक हरि भूषण ठाकुर ‘बचौल’ ने साफ़ किया कि बिहार में जाति जनगणना नहीं होने दी जाएगी। बीजेपी विधायक ने कहा कि जाति जनगणना अब तक देश में नहीं हुई है और अगर शुरू से कोई व्यवस्था बनी हुई है तो इसमें बदलाव का सवाल ही नहीं है। हरी भूषण ठाकुर ने कहा कि जनसंख्या को लेकर नीति निर्धारण करने वाले लोग बेवकूफ नहीं थे। उन्होंने बहुत सोच समझकर जाति जनगणना की इजाज़त नहीं दी। जाति जनगणना से समाज में दूरी बढ़ेगी और इससे देश के टुकड़े हो जाएँगे।

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