नीतीश कुमार को एनडीए में वापस लेने की बीजेपी की मजबूरी क्या?
नीतीश कुमार ने बीजेपी के समर्थन से फिर से सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया है। इसके साथ ही नीतीश ने इंडिया गठबंधन को छोड़कर एनडीए में शामिल होने की घोषणा भी कर दी है। प्रधानमंत्री मोदी ने एनडीए में शामिल होने पर नीतीश को बधाई दी है। लेकिन इसी बीजेपी ने क़रीब डेढ़ साल पहले नीतीश के पाला बदलकर महागठबंधन में जाने पर कहा था कि नीतीश कुमार के लिए बीजेपी के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो गये हैं। खुद नीतीश कुमार ने कहा था कि वह मर जाएँगे लेकिन बीजेपी के साथ नहीं जाएँगे। तो सवाल है कि आख़िर अब क्या ऐसी मजबूरी है कि दोनों दल एक साथ आ गए?
बिहार में यह घटनाक्रम तब चल रहा है जब कुछ महीने में ही लोकसभा चुनाव होने हैं। कुछ मीडिया रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि बिहार में बीजेपी के आंतरिक सर्वे में लोकसभा चुनाव को लेकर अच्छा फीडबैक नहीं मिल रहा था। बिहार में जेडीयू-आरजेडी और कांग्रेस का इंडिया गठबंधन मज़बूत नज़र आ रहा था। तो क्या यही वह वजह है जिससे बीजेपी नीतीश को एनडीए में शामिल करने के लिए तत्पर रही?
नीतीश कुमार विपक्षी इंडिया गठबंधन के प्रमुख चेहरों में से एक रहे। उनके प्रयास से ही विपक्षी दल एकजुट हुए और बीजेपी के ख़िलाफ़ सभी दलों का गठबंधन बनाया। नीतीश ने अलग-अलग राज्यों में जाकर नेताओं से मुलाक़ात की और सबको साथ आने के लिए मनाया। उन्होंने ही इसकी पहली बैठक बिहार में कराकर औपचारिक शुरुआत भी कराई थी।
जब नीतीश के फिर से पाला बदले जाने के कयास तेज हो गए तो आरजेडी से लेकर कांग्रेस के बड़े नेता तक कहते रहे कि नीतीश इंडिया गठबंधन की नींव हैं। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि यह नीतीश कुमार ही थे जिन्होंने इंडिया की बैठकें बुलाई थीं और विपक्षी गुट उनसे अंत तक भाजपा से लड़ने की उम्मीद कर रहा था। लेकिन बीजेपी ने इसी नींव पर प्रहार किया।
समझा जाता है कि नीतीश कुमार को अपने पाले में करने से बीजेपी को सबसे ज़्यादा फायदा तो यह होता दिख रहा है कि इंडिया गठबंधन बनने से बीजेपी के ख़िलाफ़ जो एक मज़बूत विपक्ष की भावना बनी थी वह ध्वस्त होती दिख रही है। लोकसभा चुनावों से कुछ महीने पहले इस स्तर पर एक उलटफेर से इंडिया गुट को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ेगा और इससे भाजपा के इस तर्क को भी बल मिलता है कि विपक्षी गुट एक अस्थिर गठबंधन है। बीजेपी अब इसको चुनाव में यह कहते हुए भुनाने की कोशिश करेगी कि इंडिया गठबंधन में दल आपस में ही लड़ते रहते हैं और यह देश के लिए ठीक नहीं होगा। बिहार में राजद-जदयू गठबंधन का अंत इंडिया गठबंधन के लिए बिहार के बाहर भी एक झटके के तौर पर देखा जा रहा है।
नीतीश के एनडीए में शामिल होने से इंडिया गठबंधन को झटका लगने के अलावा बीजेपी को सीटों में भी बड़ा फायदा होने की उम्मीद है।
बिहार में 40 लोकसभा सीटें हैं और अब तक इसे इंडिया गठबंधन की मज़बूत स्थिति के रूप में देखा जा रहा था। लेकिन अब जेडीयू के बीजेपी के साथ जाने के बाद बीजेपी की स्थिति पहले से कहीं ज़्यादा मज़बूत होगी।
पिछले एक दशक में नीतीश कुमार लगातार असफलताओं के बावजूद मुख्यमंत्री पद पर बने रहने में कामयाब रहे हैं। हालाँकि, उनकी लोकप्रियता और उनकी पार्टी के चुनावी प्रदर्शन में लगातार गिरावट आई है। 2010 के बिहार चुनाव में 115 सीटों से लेकर 2015 में 71 और 2020 में सिर्फ 43 सीटों तक, विधानसभा में जेडीयू की ताकत कम हो रही है। नीतीश की छवि अब 'पलटू कुमार' की हो गई है। उनकी यह छवि ही मुख्य वजह है कि अभी भी बीजेपी में एक वर्ग उनके ख़िलाफ़ है, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व के फ़ैसले की वजह से उनको स्वीकार कर रहा है।
नीतीश कुमार को लेकर कहा जा रहा है कि वह इंडिया गठबंधन से नाराज़ थे। एक चर्चा नीतीश कुमार को इंडिया गठबंधन का संयोजक बनाए जाने को लेकर थी। पटना में हुई पहली बैठक में गठबंधन को लेकर विपक्षी दलों की गाड़ी आगे बढ़ी तो साथ-साथ ये चर्चा भी बढ़ी कि सभी दलों को जोड़े रखने के लिए एक संयोजक की जरूरत होगी। नीतीश कुमार को संयोजक से लेकर प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे मजबूत दावेदार बताया जाने लगा था। लेकिन चार बैठकों के बाद भी ऐसा कुछ हुआ नहीं। इंडिया गठबंधन ने एक संयोजक की जगह अलग-अलग दलों के नेताओं को लेकर एक कोऑर्डिनेशन कमेटी बना दी।
समझा जाता है कि नीतीश की नाराजगी की एक और वजह अभी तक बिहार में सीटों का बँटवारा नहीं होना भी है। एक दिन पहले ही केसी त्यागी ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस नेतृत्व के एक हिस्से ने लगातार नीतीश को अपमानित करने का काम किया है। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने गठबंधन की प्रक्रिया को इतना लचर और ढील बना दिया कि अब चुनाव में कुछ ही समय बचा है और आज तक इंडिया गठबंधन के अध्यक्ष, संयोजक, घोषणा पत्र, जनसभाएँ जैसी चीजें नहीं हो पाई हैं।
इसके अलावा, लोकसभा चुनाव में जेडीयू की सीटें काफी कम आने की आशंका भी जताई जा रही थी। इस बीच बीजेपी में चुनावी रणनीति और राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर बैठकों का दौर चल रहा है। माना जा रहा है कि चुनाव में इन सभी के असर को देखते हुए ही नीतीश कुमार और बीजेपी साथ आए हैं।