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बिहार में जाति आरक्षण 65% तक बढ़ाना चाहते हैं नीतीश

बिहार में जाति आरक्षण 65% तक बढ़ाना चाहते हैं नीतीश

बिहार सरकार ने बिहार विधानसभा में सामाजिक और आर्थिक रिपोर्ट पेश की है जिसमें राज्य के 34.13 प्रतिशत परिवारों की मासिक आय मात्र 6 हजार रुपये ही है। जानिए, अब उन्होंने जाति आरक्षण पर क्या कहा।

नीतीश कुमार ने सामाजिक और आर्थिक रिपोर्ट पेश करने के कुछ देर बाद ही राज्य में आरक्षण को बढ़ाने का प्रस्ताव भी पेश कर दिया। वह जातिगत आरक्षण को बढ़ाकर 65 प्रतिशत करना चाहते हैं। इसमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और अत्यंत पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिए जाने की व्यवस्था है। बिहार सरकार द्वारा प्रस्तावित यह आरक्षण सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत की सीमा से ज़्यादा होगी। नीतीश के 65 फीसदी आरक्षण के प्रस्ताव के अलावा आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों यानी इडब्ल्यूएस के लिए 10 फ़ीसदी आरक्षण भी है और इस तरह बिहार में कुल आरक्षण 75 फ़ीसदी हो जाएगा।

नीतीश कुमार के आरक्षण का यह प्रस्ताव विभिन्न वर्गों की आर्थिक स्थिति का विवरण देने वाले जाति सर्वेक्षण की पूरी रिपोर्ट जारी होने के तुरंत बाद आया। उन्होंने विधानसभा में ही इसकी घोषणा की।

विधानसभा में विस्तृत जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट पेश करने के बाद एक बहस के दौरान नीतीश कुमार ने कहा कि अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए कोटा बढ़ाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि हम उचित विचार-विमर्श के बाद जरूरी कदम उठाएंगे और हमारा इरादा इन बदलावों को मौजूदा सत्र में लागू करने का है।

क्या है प्रस्ताव-

  • एससी- 20%
  • एसटी- 2%
  • ओबीसी और ईबीसी- 43%

फिलहाल, बिहार में राज्य की नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में ईबीसी के लिए 18 प्रतिशत, ओबीसी के लिए 12 प्रतिशत, एससी के लिए 16 प्रतिशत, एसटी के लिए 1 प्रतिशत और पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए 3 प्रतिशत आरक्षण है।

इससे पहले बिहार सरकार ने जाति जनगणना के आँकड़े जारी करने के बाद अब मंगलवार को ही बिहार विधानसभा में इसकी सामाजिक और आर्थिक रिपोर्ट पेश की है। इस रिपोर्ट के मुताबिक बिहार की लगभग एक तिहाई आबादी गरीब है। राज्य के 34.13 प्रतिशत परिवारों की मासिक आय मात्र 6 हजार रुपये ही है। ये ऐसे परिवार हैं जो गरीबी रेखा से नीचे आते हैं। 

बिहार में हुए जाति आधारित गणना के दौरान हुए इस आर्थिक सर्वे में 2.76 करोड़ परिवारों की गणना हुई है। इसमें से 94.42 लाख परिवार जो कि कुल आबादी का एक तिहाई के करीब हैं गरीबी में अपना जीवन काट रहे हैं।

वहीं 6 हजार से 10 हजार तक कमाने वाले परिवारों की संख्या 29.61 प्रतिशत है। 10 हजार से 20 हजार तक कमाने वाले परिवारों की संख्या 18.06 प्रतिशत है। 20 हजार से 50 हजार तक कमाने वाले परिवारों की संख्या 9.83 प्रतिशत है। 50 हजार से अधिक कमाने वाले परिवारों की संख्या 3.90 प्रतिशत है। वहीं इस सर्वे में 4.47 प्रतिशत परिवारों ने अपनी आय की जानकारी नहीं दी है। 

बिहार में सामान्य वर्ग के 25.09 प्रतिशत परिवार गरीब हैं। पिछड़ा वर्ग के अंदर 33.16 प्रतिशत परिवार गरीब हैं। वहीं अत्यंत पिछड़ा में 33.58 परिवार गरीब हैं। बिहार में सबसे अधिक अनुसूचित जाति वर्ग के लोग हैं। इनमें से  42.93 परिवार गरीब हैं। अनुसूचित जनजाति में भी गरीबी काफी अधिक है, इस वर्ग के 42.70 फीसदी परिवार गरीब हैं। इसके साथ ही अन्य जातियों में 23.72 फीसदी परिवार गरीब हैं।

नीतीश कुमार ने आरक्षण बढ़ाने की वकालत तब की है जब एक दिन पहले ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा कि राज्य में जाति सर्वेक्षण कराने का निर्णय तब लिया गया था जब नीतीश कुमार का जेडीयू एनडीए का घटक था। हालाँकि अमित शाह ने यह भी आरोप लगा दिया कि राज्य में जाति सर्वेक्षण में जानबूझकर मुस्लिमों और यादवों की आबादी को तुष्टीकरण की राजनीति के लिए बढ़ा दी गई है।  इस आरोप पर बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने अमित शाह को चुनौती दी है कि वे पूरे देश में जाति जनगणना कराएँ। उन्होंने कहा, 'हम इतना कहना चाहते हैं कि यदि ग़लत हुआ है तो देश भर में करा लें। जितने भी बीजेपी शासित राज्य हैं वहाँ करा लें जाति जनगणना।'

जाति सर्वेक्षण के अनुसार, राजनीतिक रूप से शक्तिशाली यादव बिहार की आबादी का 14.26 प्रतिशत हैं, जो ओबीसी में सबसे अधिक हैं। वे लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल के मुख्य वोटबैंक भी हैं जो राज्य में सत्तारूढ़ महागठबंधन का हिस्सा है।

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