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नीतीश कुमार क्यों जुटा रहे हैं संघ के नेताओं की जानकारी?

नीतीश कुमार क्यों जुटा रहे हैं संघ के नेताओं की जानकारी?

क्या केंद्र में दोबारा मोदी सरकार बनने के बाद नीतीश कुमार को यह डर लगने लगा है कि इससे उनकी पार्टी जेडीयू को ख़तरा हो सकता है?

बिहार में क्या नीतीश कुमार और बीजेपी के बीच खटपट बहुत ज़्यादा बढ़ गई है क्या केंद्र में दोबारा मोदी सरकार बनने के बाद नीतीश कुमार को यह डर लगने लगा है कि इससे उनकी पार्टी जेडीयू को ख़तरा हो सकता है ऐसा एक चौंकाने वाली जानकारी सामने आने के बाद कहा जा रहा है। हुआ यूँ है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 30 मई को शपथ लेने के दो दिन पहले यानी 28 मई को बिहार सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) समेत इससे जुड़े 18 और संगठनों की जाँच कराने को लेकर एक पत्र जारी किया गया था। इस पत्र में बिहार पुलिस की स्पेशल ब्रांच के अधिकारियों से आरएसएस, बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद समेत विभिन्न संगठनों के नेताओं के नाम, पता, पद और व्यवसाय की जानकारी देने को कहा गया था। पत्र की कॉपी स्पेशल ब्रांच के एडीजी, आईजी और डीआईजी को भी भेजी गई थी। 

पत्र में जिन संगठनों के बारे में जानकारी माँगी गई है, उनमें आरएसएस के अलावा विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी), बजरंग दल, हिंदू जागरण समिति, हिंदू राष्ट्र सेना, धर्म जागरण समिति, राष्ट्रीय सेविका समिति, दुर्गा वाहिनी स्वदेशी जागरण मंच, शिखा भारती, भारतीय किसान संघ, हिंदू महासभा, हिंदू युवा वाहिनी, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद समेत 18 संगठन शामिल हैं। 

 - Satya Hindi

अब सवाल यह उठ रहा है कि राज्य में बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चला रहे नीतीश कुमार को संघ और इससे जुड़े नेताओं के नाम, पता, पद और व्यवसाय की जानकारी क्यों चाहिए।

नीतीश के संघ और इससे जुड़े संगठनों के नेताओं से जुड़ी जानकारी माँगने का कारण यह हो सकता है कि शायद उन्हें इस बात का अंदेशा हो कि ये संगठन विधानसभा चुनाव से पहले समाज में धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर सकते हैं। और इससे उनके अपने वोट बैंक को कोई नुक़सान हो सकता है। 

याद दिला दें कि मंत्रिमंडल में उचित स्थान न मिलने की बात कहकर नीतीश कुमार ने जेडीयू के मोदी सरकार में शामिल होने से इनकार कर दिया था। तब भी यह बात सामने आई थी कि नीतीश कुमार और बीजेपी के रिश्ते अब सामान्य नहीं हैं। इस पत्र के सामने आने के बाद सियासत में भी उबाल आने के आसार हैं। जानकारी के मुताबिक़, बीजेपी के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने कहा है कि यह मामला गंभीर है। 

केंद्रीय मंत्रिमंडल में जेडीयू की उपेक्षा से नाराज नीतीश कुमार ने जब बिहार मंत्रिमंडल का विस्तार किया था तो उसमें बीजेपी को जगह नहीं दी थी। उसके बाद यह माना गया था कि ऐसा करके नीतीश कुमार ने बीजेपी और विशेषकर मोदी-शाह से बदला लिया है।

दोनों दलों ने मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ा था। चुनाव में बीजेपी को 17 जबकि जेडीयू को 16 सीटें मिली थीं। बिहार की राजनीति के जानकारों के मुताबिक़, बीजेपी ने राज्य में ख़ुद को सीनियर पार्टनर के तौर पर दिखाना शुरू कर दिया है। 

लोकसभा चुनाव के दौरान लालू प्रसाद यादव की एक किताब - 'गोपालगंज टू रायसीना: माइ पॉलिटिकल जर्नी' को लेकर एक चौंकाने वाली बात सामने आई थी। लालू ने किताब में दावा किया था कि नीतीश कुमार महागठबंधन में वापस आना चाहते थे, लेकिन उन्होंने इसके लिए मना कर दिया था। दावों के मुताबिक़, लालू ने कहा था कि नीतीश पर उनका भरोसा पूरी तरह ख़त्म हो गया है। लालू के मुताबिक़, महागठबंधन छोड़कर जाने के छह छह महीने के भीतर ही नीतीश ने ऐसी मंशा जताई थी। 

लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान भी बीजेपी और जेडीयू में जो विचारधारा का अंतर है, वह साफ़ दिखाई दिया था। 25 अप्रैल को दरभंगा में एक रैली हुई थी, इसमें प्रधानमंत्री मोदी मोदी अपनी पार्टी के नेताओं के साथ हाथ ऊपर उठाते हुए 'वंदे मातरम', का नारा लगाते दिखे थे लेकिन नीतीश कुमार एकदम चुपचाप बैठे रहे थे। इस दौरान वह काफ़ी असहज दिखे थे और आख़िर में कुर्सी से खड़े तो हुए थे, लेकिन तब भी उन्होंने ‘वंदे मातरम’ का नारा नहीं लगाया था। 

उसके बाद राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल की नेता राबड़ी देवी ने यह कह कर सबको चौंका दिया था कि नीतीश कुमार के विपक्षी महागठबंधन में शामिल होने पर वह इसका विरोध नहीं करेंगी। 

वैसे भी धारा 370, तीन तलाक़ क़ानून को लेकर जेडीयू का स्टैंड बीजेपी से पूरी तरह अलग है। इसे लेकर दोनों दलों में कई बार मतभेद भी सामने आ चुके हैं।

आपको बता दें कि बीजेपी ने लंबे समय तक महाराष्ट्र में उसकी सहयोगी रही शिवसेना से 2014 के विधानसभा चुनाव में ख़ुद को बड़ा बताते हुए ज़्यादा सीटों की माँग की थी और ऐसा न होने पर गठबंधन तोड़ लिया था। बस यही डर, जेडीयू को खाए जा रहा है कि बीजेपी उसके साथ ऐसा न कर दे। क्योंकि संघ और बीजेपी का साथ सभी जानते हैं और अगर जिस राज्य में बीजेपी सत्ता में भागीदार हो और वहाँ संघ के नेताओं की जानकारी ख़ुफ़िया ढंग से माँगी जाए तो इसके बाद निश्चित रूप से दोनों संगठन चुप नहीं बैठेंगे। 

लेकिन क्या इससे विधानसभा चुनाव से पहले राज्य सरकार पर भी कोई असर पड़ेगा। क्योंकि 2020 में नवंबर के आसपास राज्य में चुनाव होने हैं और बीजेपी ने मोदी और शाह के नाम पर अपनी पोजिशनिंग का काम शुरू कर दिया है। बता दें कि बीजेपी और जेडीयू पहले भी दो बार मिलकर सरकार चला चुके हैं लेकिन नरेंद्र मोदी को 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने के बाद नीतीश कुमार ने एनडीए से नाता तोड़ लिया था। उसके बाद तीन साल तक आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार चलाने के बाद नीतीश कुमार ने 2017 में फिर से बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। लेकिन बीजेपी शायद नीतीश के मोदी विरोध को नहीं भूली है और मौक़ा मिलने पर वह इसका बदला ज़रूर लेगी क्योंकि सियासत में न कोई स्थायी मित्र है और न ही कोई स्थायी शत्रु।

इस पत्र के सामने आने के बाद और नीतीश कुमार के पहले भी एनडीए से बाहर निकलने के वाक़यों को देखें तो ऐसा नहीं लगता कि वह यह घटनाक्रम नहीं दोहरा सकते। इसका सीधा मतलब यह है कि नीतीश चुनाव से पहले एक बार फिर बीजेपी का साथ छोड़ सकते हैं और अगर ऐसा होता है तो इसमें हैरान होने वाली कोई बात नहीं है। 

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