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बीजेपी-जेडीयू में रार? नीतीश बोले- संविधान उल्लंघन कर रहे हैं विधानसभा अध्यक्ष

बीजेपी-जेडीयू में रार? नीतीश बोले- संविधान उल्लंघन कर रहे हैं विधानसभा अध्यक्ष

बिहार में क्या जेडीयू और बीजेपी में सबकुछ ठीक नहीं है और क्या खटास इतनी ज़्यादा बढ़ गई है कि अब हालात बेकाबू हो रहे हैं? आख़िर नीतीश कुमार ने आपा क्यों खोया?

बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू नेता नीतीश कुमार सोमवार को विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा पर भड़क गए। वह ग़ुस्से में जोर-जोर से चिल्लाते हुए बोले कि आप संविधान का खुलेआम उल्लंघन कर रहे हैं। उन्होंने आगे कहा, 'इस तरह से नहीं चलेगा।... आप कौन हैं जो कह रहे हैं...।' जब विधानसभा अध्यक्ष ने बोलना चाहा तो नीतीश ने कहा- 'सुन लीजिए'।

विधानसभा अध्यक्ष मूल रूप से बीजेपी के नेता हैं और समझा जाता है कि यह तनातनी बीजेपी और जेडीयू के बीच तनातनी का नतीजा है। वैसे, जब से गठबंधन की सरकार बनी है तब से दोनों दलों के बीच ऐसी तनातनी की ख़बरें आती रही हैं। इसको लेकर तरह-तरह के कयास भी लगाए जाते रहे हैं।

ताज़ा मामला विधानसभा में तब उठा जब लखीसराय में विधानसभा अध्यक्ष से कथित दुर्व्यवहार का मुद्दा उछला। लखीसराय में सरस्वती पूजा के दौरान कोरोना गाइडलाइन का उल्लंघन करने के आरोप में पुलिस ने कुछ लोगों को गिरफ्तार किया था। इसको लेकर स्पीकर ने हस्तक्षेप किया था। बाद में स्पीकर ने आरोप लगाया था कि पुलिस ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया और पुलिस के प्रति नाराजगी जताई थी। वह लगातार इस मामले में कार्रवाई करने की मांग करते रहे हैं। विधानसभा में यह विवाद सोमवार को भी उठा।

विधानसभा में अध्यक्ष सिन्हा सरकार से पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के लिए कह रहे थे। बीजेपी नेता भी पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई के लिए दबाव बना रहे हैं। 

विधानसभा में यह मुद्दा उठते ही नीतीश कुमार ने अपना आपा खो दिया और अध्यक्ष पर उनकी सरकार के ख़िलाफ़ सवाल उठाकर संविधान का 'खुले तौर पर उल्लंघन' करने का आरोप लगाया। 

नीतीश कुमार ने कहा, 'न तो हम किसी को फ्रेम करते हैं, न ही हम किसी की रक्षा करते हैं। हम ऐसा नहीं करते हैं। आप बार-बार ऐसा क्यों कह रहे हैं? आप इस बारे में और इस तरह से सदन चला रहे हैं। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ।' 

मुख्यमंत्री ने कहा, 'मैं अपने सदस्यों को भी बताना चाहता हूँ। जिस तरह से आप इस सवाल को बार-बार उठा रहे हैं। जब हमने जवाब दिया और कहा कि एक जांच हो रही है, तो क्या आपको जांच के बारे में चिंतित होना चाहिए?' 

जब अध्यक्ष ने हस्तक्षेप करने की कोशिश की तो नीतीश कुमार ने कहा, 'मैं सुन रहा था। मुझे दुख हुआ। यह अस्वीकार्य है। आप मेरी बात सुनें। मैं इसे स्वीकार नहीं करूंगा।'

नीतीश कुमार और बीजेपी के बीच संबंधों में महीनों से खटास आ रही है। नीतीश कुमार 2020 में बिहार में सत्ता में लौटे हैं, लेकिन सत्तारूढ़ गठबंधन में बीजेपी से कम हिस्सेदारी है। जेडीयू (43) ने पहली बार बीजेपी (74) की तुलना में बहुत कम सीटें जीतीं।

जनवरी महीने में ही बिहार बीजेपी के प्रमुख ने तो यहाँ तक चेतावनी दे दी थी कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी अपनी हद में रहे, नहीं तो बिहार बीजेपी के 76 लाख कार्यकर्ता उसको जवाब देंगे।

कुछ महीने पहले ही बीजेपी सांसद राम कृपाल यादव ने लोकसभा में कहा था कि बिहार सरकार प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत काम पूरा नहीं कर पाई है। ग्रामीण विकास व पंचायती राज मंत्री गिरिराज सिंह ने इसे स्वीकार करते हुए कहा था कि राज्य सरकार लक्ष्य पूरा करने में नाकाम रही है। इसके बाद जदयू खुल कर सामने आ गया था। इसके सांसद कौशलेंद्र कुमार ने गिरिराज सिंह से सवाल किया था कि क्या राज्य सरकार के अधिकारियों के साथ अधूरे काम को पूरा करने के लिए उन्होंने कोई बैठक की है। इसके बाद जेडीयू सांसद और पार्टी अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह भी सामने आए थे।

बिहार को विशेष राज्य के दर्जे की मांग पर राज्य में सरकार चला रहे बीजेपी और जेडीयू आमने-सामने आ गए थे। नीतीश सरकार की ओर से विशेष राज्य के दर्जे की पैरवी किए जाने पर जब उप मुख्यमंत्री रेणु देवी ने सवाल उठाया तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पत्रकारों से बातचीत में कहा था कि रेणु देवी को कुछ पता ही नहीं है, जो पत्र नीति आयोग को भेजा गया है वह राज्य सरकार ने ही भेजा है।  

इससे पहले सितंबर महीने में जय प्रकाश नारायण विश्वविद्यालय के एमए राजनीति शास्त्र के पाठ्यक्रम में बदलाव से बीजेपी और जेडीयू में विवाद हो गया था। नीतीश कुमार ने पाठ्यक्रम में बदलाव पर सख्त नाराज़गी जताई थी। तब विश्वविद्यालय के चांसलर बीजेपी के पूर्व नेता और मौजूदा राज्यपाल फागू चौहान थे। जदयू की आपत्ति के बाद पाठ्यक्रम में बदलाव को रद्द कर दिया गया था।

जाति जनगणना के मुद्दे पर भी ऐसा ही टकराव हुआ था। केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ जाकर ख़ुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कह दिया था कि जाति जनगणना के बारे में कैसे आगे बढ़ना है, इस पर उनकी सरकार तैयारी करवा रही है। जबकि मोदी सरकार ने साफ कर दिया था कि वह जाति जनगणना नहीं कराने जा रही है। 

तो क्या दोनों दलों में ऐसी खटपट सामान्या घटना है? या फिर यह खटपट अब ख़तरनाक स्तर तक पहुँचती जा रही है?

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