यह बात किसी और ने नहीं, खुद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कही है कि वह गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया के मर्डर में मुजरिम करार दिए गए शिवहर के पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई में लगे हुए हैं। ऐसा माना जा रहा है कि राजपूत जाति को खुश करने के लिए नीतीश कुमार ने यह कदम उठाने की घोषणा की है।
दिवंगत कृष्णैया 1985 बैच के बिहार कैडर के दलित आईएएस थे। 5 दिसंबर, 1994 को उन्हें हाजीपुर के एक सरकारी कार्यक्रम से मुजफ्फरपुर होते हुए गोपालगंज लौटने के दौरान उग्र भीड़ द्वारा घेरकर मार दिया गया था। उस समय यह आरोप लगा था कि आनंद मोहन और दूसरे लोगों ने भीड़ को इस जघन्य हत्या के लिए उकसाया था।
नीतीश कुमार ने सोमवार को पटना में आयोजित महाराणा प्रताप स्मृति समारोह में उस वक़्त यह बात कही जब उनके भाषण के दौरान आनंद मोहन की रिहाई को लेकर नारेबाजी होने लगी। नीतीश ने कहा कि आपलोगों को कुछ पता नहीं है, उनकी पत्नी से पूछ लेना हम क्या कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने नारा लगाने वालों से कहा, "चुप रहिए, ई सब की चिंता मत करें।"
कुछ दिनों पहले तक राजद कोटे से कृषि मंत्री रहे सुधाकर सिंह के साथ उनके तल्ख रिश्ते को भी इससे जोड़कर देखा जा रहा है। राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह ने नीतीश कुमार से मनमुटाव के बाद कृषि मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद उन्होंने नीतीश कुमार के लिए ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जिन्हें आपत्तिजनक माना गया और फिलहाल उन्हें अपनी ही पार्टी के नोटिस का जवाब भी देना है। सिंह का राजपूत समाज और खासकर कैमूर इलाके में काफी प्रभाव माना जाता है।
कई विश्लेषकों का मानना है कि इस विवाद से राजपूत समाज नीतीश कुमार और महागठबंधन से नाराज चल रहा है। यही कारण है कि एक समय लालू प्रसाद द्वारा नापसंद किए जाने वाले आनंद मोहन के बारे में नीतीश कुमार की इस राय से राजद भी सहमत नजर आता है। विडंबना यह है कि जातिवादी राजनीति का विरोध करने वाली भारतीय जनता पार्टी भी नीतीश कुमार के इस कदम के साथ नजर आती है। यहां तक कि वामपंथी दल भी इस मामले में अब तक नीतीश कुमार का विरोध नहीं कर पाए हैं।
गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया की हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में उस समय बिहार पीपुल्स पार्टी के नेता आनंद मोहन को सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा था। आनंद मोहन को 2007 में जिला अदालत से फांसी की सजा सुनाई गई थी लेकिन 2008 में पटना हाईकोर्ट ने इस सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से जी कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया संतुष्ट नहीं थीं और उन्होंने कहा था कि फांसी की सजा मिलती तो उन्हें ज़्यादा खुशी होती।
एक समय आनंद मोहन को नीतीश कुमार और जॉर्ज फर्नांडिस के नजदीक माना जाता था लेकिन हत्या और सज़ा सुनाए जाने के समय तब राज्य में आरजेडी का शासन था। इस मामले को नीतीश कुमार की उस बात से भी समझा जा सकता है जो उन्होंने सोमवार को राजपूत समाज के उस समारोह में कही। उन्होंने कहा, "राजनीति में वे कुछ भी करें लेकिन जब जेल गये थे तो जार्ज साहब के साथ हम सब उनसे मिलने जेल गये थे। उनके लिए हमेशा शुभकामना रही है। यह सब बात को बोलने की कोई जरूरत नहीं है। ये सब सोचना नहीं चाहिए कि आप लोग मांग कर रहे हैं इसीलिए हो रहा है।"
जदयू के सूत्र बताते हैं कि इससे पहले भी नीतीश कुमार आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद से उनके पति की रिहाई के बारे में बात कर चुके थे। समारोह में नारे लगाने वाली भीड़ शायद उसी वादे को याद दिला रही थी।
बिहार में कानून के जानकारों का कहना है कि चूंकि आनंद मोहन ने उम्रकैद में लगभग 18-19 वर्ष गुजार लिये हैं, इसलिए हो सकता है कि राज्य सरकार बेहतर आचरण के आधार पर उनकी रिहाई के लिए अपनी सहमति दे दे।
नीतीश कुमार के अलावा तेजस्वी यादव भी राजपूत समाज को अपनी ओर करने में लगे हुए हैं। तेजस्वी यादव ने तो अपनी पार्टी की 'एमवाई' वाली छवि को बदलने के लिए 'ए टू जेड' वाली पार्टी का नारा भी दिया है। कभी 'भूरा बाल साफ करो' के कथित नारे के लिए लालू प्रसाद से राजपूत समाज काफी खफा माना जाता था। उस नारे को बीते काफी दिन बदल गया है और राजनीति में नए समीकरण बनने के संकेत लगातार मिल रहे हैं।
यह देखना दिलचस्प होगा कि नीतीश कुमार आनंद मोहन की रिहाई के लिए सरकारी कोशिश में कितनी तेजी दिखाते हैं क्योंकि भारतीय जनता पार्टी इसमें होने वाली देरी को महागठबंधन के राजपूत समाज विरुद्ध होने का नैरेटिव बनाने में इस्तेमाल कर सकती है।
हत्याकांड में मुजरिम करार दिए गए आनंद मोहन की रिहाई के लिए सरकारी कोशिश के बाद कई लोग सीवान के बाहुबली सांसद शहाबुद्दीन के मामले को भी जोड़ रहे हैं। आरजेडी के इस विवादास्पद सांसद की जेल में ही बीमारी से मौत हो गई थी और उस समय आरजेडी के साथ नीतीश कुमार को भी काफी आलोचना का सामना करना पड़ा था।
हाल के दो उपचुनावों में महागठबंधन की हार के लिए भी शहाबुद्दीन परिवार की दूरी को एक हद तक जिम्मेदार बताया गया है। गोपालगंज के उप चुनाव में आरजेडी के उम्मीदवार की दो हज़ार से कम वोटों से हार हुई थी और तब यह कहा गया था कि शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब को दरकिनार करने के कारण उनके समर्थकों ने आरजेडी को दरकिनार कर दिया था।
इस परिस्थिति में महागठबंधन के दोनों महत्वपूर्ण घटक आरजेडी और जदयू सवर्ण जातियों को भी साधने में लगे हुए हैं।