नीति आयोग- यूपी तीसरा सबसे ग़रीब राज्य, विकास का ढिंढोरा कैसे पीटेगी बीजेपी?
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के कुछ महीने पहले राज्यों की आर्थिक स्थिति पर आई नीति आयोग की रिपोर्ट बीजेपी के लिए चिंता की वजह बन सकती है। यह रिपोर्ट इसकी इन कोशिशों को धक्का पहुँचाएगी जिसके तहत बीजेपी लगातार प्रचारित कर रही है कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने बहुत ही अच्छा काम किया है।
बीजेपी यूपी में बुनियादी सुविधाओं से जुड़ी परियोजनाओं का शिलान्यास-उद्घाटन करने की मुहिम में लगी है, जिसकी अगुआई स्वयं प्रधानमंत्री कर रहे हैं और मुख्यमंत्री एक के बाद एक लोक कल्याणकारी योजनाओं का एलान कर रहे हैं। ऐसे में नीति आयोग की रिपोर्ट राज्य सरकार की पोल खोल कर रख देती है।
यह चिंता की बात इसलिए भी है कि यह रिपोर्ट सरकारी एजेन्सी नीति आयोग की है, जिसकी शुरुआत स्वयं प्रधानमंत्री ने बड़े जोर शोर से की थी।
सरकारी रिपोर्ट होने की वजह से बीजेपी न तो इसे झुठला पाएगी न ही इसके जवाब में कोई थोथा तर्क ढूंढ पाएगी।
चूंकि यह रिपोर्ट मौजूदा सरकार के समय की है, लिहाजा, हर बार की तरह पहले की कांग्रेसी सरकारों और जवाहरलाल नेहरू पर भी ठीकरा फोड़ना मुमकिन नहीं होगा।
क्या है रिपोर्ट में?
नीति आयोग ने बहुआयामी गरीबी सूचकांक यानी मल्टीडाइमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स (एमपीआई) जारी की है।
उत्तर प्रदेश में 37.79 प्रतिशत आबादी ग़रीब है। इस मामले में वह पूरे देश में तीसरे स्थान पर है।
बिहार की 51.91 प्रतिशत जनसंख्या गरीब है। झारखंड में 42.16 प्रतिशत और मध्य प्रदेश में 36.65 प्रतिशत लोग ग़रीब है।
मेघालय में ग़रीबी रेखा से नीचे 32.67 प्रतिशत लोग हैं।
देश के सबसे ग़रीब पाँच राज्यों में से चार में बीजेपी की सरकार है। ये हैं, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और मेघालय।
इनमें से यूपी व एमपी में बीजेपी की बहुमत की सरकार है जबकि बिहार और मेघालय में बीजेपी गठबंधन सरकार में शामिल है।
यह भी कह सकते हैं कि फटेहाल पाँच राज्यों में से चार राज्यों में डबल इंजन की सरकार है।
दूसरी ओर, सीपीआईएम के नेतृत्व वाली सरकार के राज्य केरल में सबसे कम 0.71 प्रतिशत गरीबी है।
इसी तरह डीएमके शासित तमिलनाडु में 4.89 प्रतिशत और कांग्रेस शासित पंजाब में 5.59 प्रतिशत लोग गरीब हैं।
यानी डबल इंजन की सरकार नहीं होने पर भी विकास हो सकता है।
बहुआयामी गरीबी सूचकांक
यह राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनीशिएटिव (ओपीएचआई) और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा तैयार की गई है।
इस एमपीआई में तीन समान आयामों- स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर का मूल्यांकन किया गया है। इसका आकलन पोषण, बाल और किशोर मृत्यु दर, प्रसवपूर्व देखभाल, स्कूली शिक्षा के वर्ष, स्कूल में उपस्थिति, खाना पकाने के ईंधन, स्वच्छता, पीने के पानी, बिजली, आवास, संपत्ति तथा बैंक खाते जैसे 12 संकेतकों के जरिये किया गया है।
नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा, “भारत के राष्ट्रीय बहुआयामी ग़रीबी सूचकांक का विकास एक सार्वजनिक नीति उपकरण स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण योगदान है।"
राजीव कुमार के अनुसार,
“
यह बहुआयामी ग़रीबी की निगरानी करता है, साक्ष्य-आधारित और केंद्रित हस्तक्षेप के बारे में बताता है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कोई भी पीछे न छूटे।
राजीव कुमार, उपाध्यक्ष, नीति आयोग
उन्होंने यह भी कहा है कि भारत के पहले राष्ट्रीय एमपीआई की यह आधारभूत रिपोर्ट राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) की 2015-16 की संदर्भ अवधि पर आधारित है। यानी इसके लिए पिछली सरकारों को दोष देना बीजेपी के लिए मुमकिन नहीं होगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर ज़िले के जेवर में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का शिलान्यास किया और विस्तार से बताया कि किस तरह पूवर्वती सरकारों ने राज्य ने कुछ नहीं किया।
लेकिन सवाल यह उठता है कि खुद नरेंद्र मोदी की सरकार की संस्था नीति आयोग का क्या कहना है?