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पेट्रोल-डीज़ल को जीएसटी के दायरे में लाने पर सहमति नहीं

पेट्रोल-डीज़ल को जीएसटी के दायरे में लाने पर सहमति नहीं

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जीएसटी परिषद की बैठक की अध्यक्षता की, जिसमें कुछ बेहद अहम फ़ैसले किए गए। वे कौन फ़ैसले हैं और उनका आपसे क्या सीधा संबंध है, पढ़ें। 

जीएसटी परिषद की शुक्रवार को हुई बैठक में पेट्रोल व डीज़ल को जीएसटी के दायरे में लाने पर कोई सहमति नहीं बन पाई। इसका मतलब यह है कि फिलहाल ये उत्पाद मौजूदा प्रणाली में ही रहेंगे, यानी इन पर केंद्रीय उत्पाद कर व राज्यों का मूल्य संवर्धित कर यानी वैल्यू एडेड टैक्स (वैट) लगता रहेगा।

इसका अर्थ यह हुआ कि फ़िलहाल डीज़ल-पेट्रोल की कीमतों में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं होने जा रहा है।  

पेट्रोल-डीज़ल पर हुई बात

समझा जाता है कि जीएसटी परिषद की बैठक में पेट्रोल-डीज़ल को जीएसटी के दायरे में लाने का मुद्दा उठा। लेकिन कई राज्यों के प्रतिनिधियों ने इसका ज़ोरदार विरोध किया। 

उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, झारखंड, छत्तीसगढ़, केरल समेत ज्यादातर राज्यों ने कहा कि पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे से बाहर ही रहने दिया जाए।

इस वजह से यह प्रस्ताव गिर गया। 

निर्मला सीतारमण ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा,

हाई कोर्ट के निर्देश पर पेट्रोल-डीज़ल को जीएसटी के दायरे में लाने पर विचार हुआ। लेकिन सदस्यों ने ज़ोर देकर कहा कि वे इन उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाना नहीं चाहते हैं।


निर्मला सीतारमण, वित्त मंत्री

उन्होंने कहा कि अदालत से यह कह दिया जाएगा कि पेट्रोल-डीज़ल को जीएसटी के दायरे में लाने का समय अभी नहीं हुआ है। 

कैंसर से संबंधित दवाओं पर जीएसटी 12% से घटाकर 5% कर दिया गया है। दिव्यांगों के लिए रेट्रोफिटमेंट किट पर अब 5% जीएसटी लगेगा।दो जीवन रक्षक दवाओं - ज़ोल्गेन्स्मा और विलटेप्सो को जीएसटी में छूट दी गई है।

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जीएसटी परिषद की बैठक में सात राज्यों के उप मुख्यमंत्री शामिल हुए। इस बैठक में अरुणाचल प्रदेश के चौना मेन, बिहार के उप मुख्यमंत्री राज किशोर प्रसाद, दिल्ली के मनीष सिसोदिया, गुजरात के नितिन पटेल, हरियाणा के दुष्यंत चौटाला, मणिपुर के युमनाम जोए कुमार सिंह और त्रिपुरा के जिष्णु देव वर्मा मौजूद थे।

इसके अलावा कई राज्यों के वित्त या भी मुख्यमंत्री की ओर से नामित मंत्री भी शामिल हुए।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एलान किया कि कोरोना की दवाओं पर मिलने वाली जीएसटी में छूट 31 दिसंबर तक बढ़ा दी गई है। इसका मतलब यह हुआ कि कोरोना दवाओं पर जीएसटी की कम दर साल के अंत तक रहेगी।

जीएसटी परिषद की इस बैठक में बायोडीज़ल पर जीएसटी घटाकर 5 प्रतिशत करने को मंजूरी मिली है। धातुओं पर जीएसटी 5% से बढ़ाकर 18% करने पर भी फ़ैसला हुआ है। 

जीएसटी परिषद की यह बैठक अहम दो कारणों से थी। एक तो जीएसटी के टैक्स स्लैब में बदलाव होना था, यानी कुछ चीजों को एक टैक्स स्लैब से निकाल कर दूसरे टैक्स स्लैब में डाला जाना था। 

दूसरा और सबसे अहम मुद्दा था पेट्रोलियम उत्पादों यानी डीज़ल और पेट्रोलियम को जीएसटी के दायरे में लाना।

केरल हाई कोर्ट ने क्या कहा था

केरल हाई कोर्ट ने 21 जून 2021 के एक आदेश में कहा था कि पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाने की मांग पर जीएसटी परिषद को विचार करना चाहिए।

इसके पहले केरल हाई कोर्ट में एक याचिका दायर कर यह कहा गया था कि पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें बहुत ज़्यादा इसलिए हैं कि इस पर केंद्र व राज्य सरकारों ने कई तरह के टैक्स लगा रखे हैं। इसे जीएसटी के तहत लाया जाना चाहिए। 

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इसे इससे समझा जा सकता है कि दिल्ली में पेट्रोल की कीमत टैक्स के पहले 45.05 रुपये प्रति लीटर है।

इस पर केंद्रीय उत्पाद कर और राज्य का मूल्य संवर्धित कर यानी वैट जोड़ा जाता है जो कुल मिला कर 56.29 रुपये प्रति लीटर हो जाता है। यानी पेट्रोल की कीमत का 55.54 फ़ीसदी उस पर लगने वाला टैक्स है।

इसी तरह डीजल की कीमत दिल्ली में 88.77 रुपये प्रति लीटर है। इसकी टैक्स के पहले की कीमत 43.98 रुपये है, इस पर केंद्रीय उत्पाद कर व राज्य का वैट मिला कर 44.79 रुपये प्रति लीटर का टैक्स जोड़ा जाता है। यानी डीजल की कीमत का 50 फीसदी से थोड़ा ज्यादा टैक्स और सेस है।

लग्ज़री कार, तंबाकू उत्पाद समेत तमाम चीजें 28 फ़ीसदी की टैक्स स्लैब में हैं। उनमें भी सरकार कई तरह के सेस लगता है और टैक्स रेट उत्पाद की वास्तविक कीमत के 50 फ़ीसदी से ऊपर पहुँच जाता है।

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