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किसान आंदोलन: लेखक, व्यापारी और पत्रकारों को भी एनआईए का समन

किसान आंदोलन: लेखक, व्यापारी और पत्रकारों को भी एनआईए का समन

एक ओर मोदी सरकार किसान आंदोलन में शामिल नेताओं से बातचीत कर रही है, दूसरी ओर केंद्रीय एजेंसियां आंदोलन का समर्थन करने वालों पर शिकंजा कस रही हैं।

एक ओर मोदी सरकार किसान आंदोलन में शामिल नेताओं से बातचीत कर रही है, दूसरी ओर केंद्रीय एजेंसियां आंदोलन का समर्थन करने वालों पर शिकंजा कस रही हैं। आढ़तियों, पंजाबी गायकों से शुरू हुआ यह सिलसिला लेखकों, पत्रकारों, व्यापारियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं तक जा पहुंचा है। 

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने खालिस्तान समर्थक प्रतिबंधित संगठन सिख फ़ॉर जस्टिस (एसएफ़जे) के द्वारा आतंकवाद के लिए धन उपलब्ध कराने को लेकर एफ़आईआर दर्ज की है। 

एनआईए द्वारा 15 दिसंबर, 2020 को दर्ज की गई इस एफ़आईआर में कहा गया है कि एसएफ़जे की ओर से खालिस्तान समर्थक तत्वों को एनजीओ के जरिये विदेशों से पैसा भेजा रहा है और इस पैसे का इस्तेमाल भारत सरकार के ख़िलाफ़ प्रोपेगेंडा चलाने के लिए किया जा रहा है। 

एफ़आईआर में दावा किया गया है कि एसएफ़जे और कुछ अन्य खालिस्तान समर्थक संगठन इस साज़िश में शामिल हैं और इसके लिए सोशल मीडिया पर लगातार अभियान चला रहे हैं। इसके अलावा ये संगठन युवाओं को अलग खालिस्तान राष्ट्र के लिए भड़का रहे हैं। 

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, एनआईए ने इस मामले में सोमवार को 5 लोगों से पूछताछ की है।

भिंडरावाले के भतीजे को समन

एनआईए ने जिन लोगों को हालिया समन भेजा है, उनमें सिख अलगाववादी जरनैल सिंह भिंडरावाले के भतीजे और अकाल तख़्त के पूर्व जत्थेदार जसबीर सिंह रोड का भी नाम शामिल है। रोड इंटरनेशनल पंथक दल और किसान बचाओ मोर्चा से जुड़े हैं और सिंघु बॉर्डर पर चल रहे आंदोलन में 2 दिसंबर से शामिल हैं। 

जालंधर के रहने वाले और लेखक बलविंदर पाल सिंह को भी समन भेजा गया है। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, बलविंदर ने कहा कि वह किसानों, मजदूरों, सिखों और दलितों को लेकर सरकारी नीतियों के ख़िलाफ़ लिखते रहे हैं। 

किसान आंदोलन पर देखिए वीडियो- 

अमृतसर के पत्रकारों जसवीर सिंह मुक्तसर और तजिंदर सिंह, के टीवी न्यूज़ चैनल के वीडियो एडिटर मोनू सिंह को भी एनआईए ने समन भेजा है। तजिंदर कहते हैं कि ऐसा करके एजेंसी मीडिया की आवाज़ को चुप कराना चाहती है। 

हरियाणा के अंबाला के फ्रीलांस पत्रकार विनर सिंह से हाल ही में उन्हें ब्रिटेन और कनाडा के सिख चैनल से मिले 6 लाख रुपयों को लेकर पूछताछ की गई है। 

होशियारपुर के रहने वाले नोबेलजीत सिंह और करनैल सिंह कहते हैं कि वे पहले दिन से किसान आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं और इस तरह के समन से डरने वाले नहीं हैं। दोनों ही आवाज़-ए-कौम नाम के संगठन से जुड़े हैं। 

सिंघु बॉर्डर पर लंगर चला रहे सिख यूथ पावर ऑफ़ पंजाब नाम के संगठन के पलविंदर सिंह, परमजीत सिंह अकाली और प्रदीप सिंह को भी समन भेजा गया है। परमजीत सिंह अकाली कहते हैं कि उनका एसएफ़जे से कोई संबंध नहीं है।

लंगर चलाने वालों को समन

रंजीत सिंह दमदमी टकसाल कहते हैं कि वे खालिस्तान समर्थक हैं लेकिन उनका एसएफ़जे से कोई लेना-देना नहीं है। रंजीत सिंह भी किसान आंदोलन में सक्रिय हैं। इसी तरह सिंघु बॉर्डर पर लंगर चला रहे मनुष्यता की सेवा नाम के एनजीओ से जुड़े गुरप्रीत सिंह मिंटू का नाम भी समन पाने वालों की सूची में है। 

सिख कार्यकर्ता सुरेंद्र सिंह तिखरीवाला सिंघु बॉर्डर पर पानी, बिस्किट और भिंडरावाले की तसवीरों वाली टी शर्ट बांट रहे हैं। समन मिलने के बाद तिखरीवाला ने कहा कि एनआईए उन्हें डराना चाहती है। इसी तरह लुधियाना के व्यापारी रिशमजीत गाभा और नरेश को भी समन भेजा गया है। एनआईए ने लोक भलाई इंसाफ वेलफेयर सोसायटी के अध्यक्ष बलदेव सिंह सिरसा को भी समन भेजा है। सिरसा किसान आंदोलन में खासे सक्रिय हैं और सरकार के साथ हो रही बातचीत में भी लगातार हिस्सा ले रहे हैं। 

किस काम के लिए मिला पैसा

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने गृह मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से लिखा है कि जिन लोगों को समन भेजा गया है, उन सभी को हाल ही में विदेशों से पैसा मिला है और इसके स्रोत संदेहास्पद हैं। मंत्रालय के एक अफ़सर ने अख़बार से कहा कि एजेंसी को पूरा अधिकार है कि वह इस बात की जांच करे कि उन्हें यह पैसा किस काम के लिए मिला है। 

किसान आंदोलन के समर्थन में कई देशों में भारतीय दूतावास के बाहर हुए प्रदर्शनों के पीछे एसएफ़जे का हाथ होने की बात कही जा रही है।

सरकार के साथ हुई नौवें दौर की बैठक के दौरान किसान नेताओं ने उनके आंदोलन का समर्थन करने वालों के ख़िलाफ़ केंद्रीय एजेंसियों द्वारा की जा रही छापेमारी और उनके ख़िलाफ़ यूएपीए जैसा कड़ा क़ानून लगाए जाने का मुद्दा उठाया था। इस पर सरकार की ओर से कहा गया कि वह इस मामले को देखेगी। 

किसान नेता इस तरह की हरक़तों की निंदा करते हुए सरकार को चेता चुके हैं कि अगर वह किसान आंदोलन का समर्थन करने वालों को निशाना बनाएगी तो यह समाधान की दिशा में नहीं बल्कि कलह को बढ़ाने वाला होगा। भारतीय किसान यूनियन की हरियाणा ईकाई के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने भी सरकार को इसे लेकर कड़े शब्दों में चेताया था। 

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