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कश्मीरी संगठनों पर एनआईए के छापे से सरकार की नीयत पर संदेह

कश्मीरी संगठनों पर एनआईए के छापे से सरकार की नीयत पर संदेह

दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष ज़फ़र-उल-इसलाम ख़ान और 6 अलाभकारी संस्थाओं के 9 ठिकानों पर राष्ट्रीय जाँच एजेन्सी के छापे से कई तरह के सवाल खड़े हो गए हैं। 

दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष ज़फ़र-उल-इसलाम ख़ान और 6 अलाभकारी संस्थाओं के 9 ठिकानों पर राष्ट्रीय जाँच एजेन्सी के छापे से कई तरह के सवाल खड़े हो गए हैं। केंद्र सरकार पर यह आरोप पहले से लगता रहा है कि वह केंद्रीय एजेन्सियों का इस्तेमाल अपने विरोधियों को परेशान करने और उनके राजनीतिक पर कतरने के लिए करती है। इन आरोपों के बीच अब यह भी कहा जाना लगा है कि वह राष्ट्रीय जाँच एजेन्सी यानी एनआईए का इस्तेमाल विरोध या असहमति के सुरों को दबाने के लिए कर रही है। 

एनआईए ने 'फलाह-ए-आम ट्रस्ट,' 'चैरिटी अलायंस,' 'ह्यूमन वेलफ़ेयर फाउंडेशन,' 'जम्मू-कश्मीर यतीम फ़ाउंडेशन,' 'साल्वेशन मूवमेंट' और 'जम्मू-कश्मीर वॉयस ऑफ़ विक्टिम्स' के यहां छापे मारे हैं।

कारण क्या है

इनमें से दो संगठन चैरिटी अलायंस और ह्यूमन वेलफेयर फाउंडेशन दिल्ली में हैं, बाकी सभी संगठन जम्मू-कश्मीर में हैं। 

ज़फ़र-उल-इसलाम ख़ान मिल्ली गज़ट के संस्थापक संपादक और चैरिटी अलायंस के अध्यक्ष हैं। 

एनआईए का कहना है कि 'टेरर फंडिंग' यानी आतंकवादी गतिविधियों को पैसे देने के मामले में ये संस्थान शामिल हैं, इसलिए उनके यहां छापे मारे गए हैं।

एनआईए ने इसी आरोप में मंगलवार को जम्मू-कश्मीर के कुछ मानवाधिकार संगठनों, ग़ैर-सरकारी संगठनों और एक अख़बार के दफ़्तर पर छापे मारे थे। ये छापे उसने श्रीनगर और बडगाम में 10 ठिकानों पर मारे गए थे।

निशाने पर कश्मीरी संगठन

एनआईए ने मंगलवार को जिन व्यक्तियों से जुड़ी जगहों पर छापे मारे थे, उनमें 'जम्मू-कश्मीर सिविल सोसाइटी' के संयोजक ख़ुर्रम परवेज़, उनके सहयोगी परवेज़ अहमद बुख़ारी, परवेज़ अहमद मट्टा के नाम शामिल हैं। इनके अलावा 'एसोशिएसन ऑफ़ पैरेंट्स ऑफ़ डिसअपीयर्ड पर्सन्स' की प्रमुख परवीन अहंगर के यहां भी छापे मारे गए थे। एनआईए ने 'ग्रेटर कश्मीर ट्रस्ट' और एक अन्य ग़ैर-सरकारी संगठन के ठिकानों पर भी छापे मारे थे।

एनआईए ने कहा है कि इन छापों में उसे कई तरह के आपत्तिजनक काग़ज़ात और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण मिले हैं। एजेन्सी ने स्थानीय पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों के साथ मिल कर यह अभियान चलाया था।

पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी प्रमुख महबूबा मुफ़्ती ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहमति के अधिकार का उल्लंघन बताया है।

कश्मीर में एनआईए

जम्मू-कश्मीर से पत्रकार हारून रेशी का कहना है कि दो साल पहले एजेंसी ने अलगाववादी नेताओं के ख़िलाफ़ वित्तीय गड़बड़ियों के आपराधिक मामले दर्ज किए थे और एक दर्जन से अधिक नेताओं और व्यापारियों को जेल में डाल दिया था। ये सभी फिलहाल जेल में हैं और उनके ख़िलाफ़ अदालतों में सुनवाई चल रही है।

बीजेपी ने जून 2018 में जब गठबंधन सरकार से समर्थन वापस ले लिया और महबूबा मुफ़्ती की सरकार गिर गई, उसके एक महीने बाद महबूबा ने आरोप लगाया था कि राज्यपाल प्रशासन एनआईए का उपयोग कर उनकी पार्टी पीडीपी को तोड़ना चाहता है। 

महबूबा ने कहा था कि उनकी पार्टी के नेताओं को भ्रष्टाचार के झूठे मामले दर्ज करने की धमकी दी जा रही है। उन्होंने कहा था कि उनकी पार्टी के नेताओं को कहा जा रहा है कि अगर उन्होंने पार्टी नहीं छोड़ी, तो उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा दिए जाएंगे और उसकी जाँच एनआईए से कराई जाएगी।


महबूबा मुफ़्ती, नेता, पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी

दो साल पहले, श्रीनगर में एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान अलगाववादी नेता मुहम्मद यासीन मलिक ने आरोप लगाया था कि एनआईए दिल्ली के वार्ताकार दिनेश्वर शर्मा के साथ बातचीत शुरू करने के लिए हुर्रियत पर दबाव डाल रही है।

विरोधियों को परेशान करने के लिए सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के इस्तेमाल के आरोप केंद्र सरकार पर पहले ही लगते रहे हैं। अब इस सूची में एनआईए का नाम भी जुड़ गया है। जम्मू-कश्मीर का मामला अधिक संवेदनशील है क्योंकि वहां वैसे भी केंद्र के ख़िलाफ़ असंतोष है। यदि एनआईए के छापे को आवाज़ कुचलने की कोशिश से जोड़ कर देखा गया तो यह नाराज़गी और बढ़ सकती है।

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