+
कमाल खान का न रहना…

कमाल खान का न रहना…

एनडीटीवी के वरिष्ठ पत्रकार कमाल खान का शुक्रवार को निधन हो गया। जानिए लेखक और आलोचक वीरेंद्र यादव उन्हें कैसे याद करते हैं।

कमाल ख़ान का न रहना हम सब के लिए सचमुच स्तब्धकारी और अविश्वसनीय है। अभी कल रात तक वह एनडीटीवी पर मुस्तैदी के साथ ख़बर कर रहे थे। हम लखनऊ वालों के लिए यह विशेष रूप से दुख की घड़ी है। उनके साथ मेरे मैत्रीपूर्ण संबंधों का लंबा सिलसिला है। उनसे मेरा परिचय पत्रकारिता में उनके आने से पहले का है।

उन्होंने अपने करियर की शुरुआत लखनऊ में एचएएल रक्षा प्रतिष्ठान में रुसी से हिंदी अनुवादक/ इंटरप्रेटर के रूप में की थी। इसी दौरान वह वयोवृद्ध क्रांतिकारी शिव वर्मा के संपर्क में आए और कम लोगों को यह पता होगा कि उनकी 'संस्मृतियों' को अंग्रेज़ी में कमाल ख़ान ने ही प्रस्तुत किया था।

इसके बाद उन्होंने स्थानीय हिंदी दैनिक 'स्वतंत्र भारत' में पत्रकारिता को पेशे के रूप में अपनाया। वे पढ़ाकू पत्रकार और पुस्तकों के अनुरागी थे। उनकी यह अध्ययनवृत्ति उनकी टीवी रिपोर्टिंग पर नुमायां होती रहती थी। कई बार दूरदराज के इलाक़ों से रिपोर्टिंग करने के दौरान वह किसी साहित्यिक संदर्भ की पुष्टि के लिए फोन करते थे।

एक बार अरुणाचल प्रदेश से रिपोर्टिंग के दौरान बाबा नागार्जुन की कविता 'बादल को घिरते देखा है' की पुष्टि के लिए फोन किया था। 'हंस' के मीडिया विशेषांक के लिए जब उन्होंने एक कहानी लिखी थी तब आश्वस्त होने के लिए मुझे वह कहानी यह कहकर सुनाई थी कि कहानीनुमा कोई चीज उन्होंने पहली बार लिखी थी।

कई बार उन्होंने हिंदी व सांस्कृतिक मुद्दों पर मेरी बाइट भी ली थी। एक बार प्रतापगढ़ के एक गाँव में एक युवा दलित इंजीनियरिंग छात्र की हत्या कुछ दबंग सवर्णों द्वारा कर दी गई थी, मैंने कमाल ख़ान को इस जघन्य हत्याकांड की जानकारी इसके कवरेज की प्रत्याशा से दी। अपने स्रोतों द्वारा घटना की पुष्टि के बाद वह तुरंत अपनी टीम के साथ प्रतापगढ़ गए और शाम के बुलेटिन में प्रशासन की मंशा के विरुद्ध इसकी विस्तृत कवरेज की और उसका फॉलोअप भी किया  था, जिससे दबंगों की गिरफ्तारी हुई थी। ऐसी कई यादें आज ताज़ा हो आई हैं। 

कई बार वह अपनी विशेष रिपोर्टिंग के वीडियो वाट्सऐप पर भेजते थे। प्रतिक्रिया प्राप्त होने पर आश्वस्त व खुश होते थे। आख़िरी बार उन्होंने पिछले वर्ष अयोध्या की रिपोर्टिंग का वीडियो भेजा था, जो वास्तव में नायाब और यादगार था।

कमाल सचमुच कमाल के रिपोर्टर थे, मुझे आज उनकी निर्मिति के उस आरंभिक दौर से लेकर अब तक का शानदार सफर याद आ रहा है।

विदा साथी कमाल ख़ान, आप हमेशा यादों में रहेंगे।

(वीरेंद्र यादव के फ़ेसबुक पेज से) 

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें