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अंतिम चरण में कितनी वापसी कर पाएगा एनडीए?

अंतिम चरण में कितनी वापसी कर पाएगा एनडीए?

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के तीन चरणों के अंतिम चरण में शनिवार को 15 ज़िलों की 78 सीटों पर मतदान हो रहा है। क्या एनडीए महागठबंधन को पछाड़ पाएगा?

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के तीन चरणों के अंतिम चरण में शनिवार को 15 ज़िलों की 78 सीटों पर मतदान हो रहा है। इसमें 12 मंत्रियों समेत वीआईपी के अध्यक्ष मुकेश सहनी और एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान के भाग्य का फैसला होना है।  इसी दिन वाल्मीकिनगर संसदीय क्षेत्र के लिए उपचुनाव का मतदान होना है।

इस चरण की अधिकतर सीटें सीमांचल, कोसी और कुछ सीटें मिथिलांचल में हैं। इन इलाक़ों में लोक जन शक्ति पार्टी और पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी के प्रदर्शन भी नज़र रहेगी। बड़ी पार्टियों में जहाँ सीमांचल में कांग्रेस और आरजेडी का पलड़ा भारी रहने के कयास लगाये जा रहे हैं वहीं कोसी-मिथिलांचल में भाजपा-जदयू अपना पूरा जोर लगाये हैं।

28 अक्टूबर को पहले चरण के मतदान से पूर्व हुए चुनाव सर्वे में एनडीए को साफ़ बढ़त दिखायी जा रही थी लेकिन उसी दौरान आरजेडी के तेजस्वी यादव के दस लाख नौकरी के वादे से मुक़ाबला रोचक होना शुरू हो गया। इसके जवाब में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री सुशाील कुमार मोदी ने बजट की समस्या उठायी। मुख्यमंत्री ने तो इसपर व्यंग्यात्मक लहजे में टिप्पणी की जिसकी भाषा पर सबको आश्चर्य हुआ।

इसके बाद बीजेपी ने 19 लाख रोज़गार के प्रस्ताव के साथ इस वादे का तोड़ निकालने की कोशिश की। इस मुद्दे पर एनडीए के दोनों पार्टनर जदयू और बीजेपी में एक राय नहीं दिखी। पहले चरण के मतदान के बाद बीजेपी की तरफ़ से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राम मंदिर, जय श्री राम के नारे, धारा 370 और घुसपैठिए आदि पर ऐसी बातें कीं जिनसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की स्थिति असहज होती गयी।

हालाँकि प्रधानमंत्री मोदी ने नीतीश कुमार के कामों की तारीफ़ भी की लेकिन अंतिम चरण के प्रचार की समाप्ति पर कुछ मामलों में दोनों की अलग-अलग राय चुनावी जनसभाओं में सुनने को मिली। नीतीश कुमार को घुसपैठिए के मुद्दे पर खुलकर कहना पड़ा कि अल्पसंख्यकों को कौन भगा सकता है।

जनताा दल यूनाइटेड अध्यक्ष नीतीश कुमार के लिए यह चुनाव शुरू में जितना आसान लग रहा था, इसके अंतिम चरण तक उनके भविष्य पर उठने वाले सवाल गंभीर होने लगे। नीतीश कुमार ने अंतिम चरण के लिए चुनाव प्रचार के अंतिम दिन अचानक भावुक होकर कह दिया कि यह उनका अंतिम चुनाव है। पार्टी के नेताओं ने बाद में सफ़ाई दी कि उनके बयान का मतलब रिटायरमेंट नहीं है।

दूसरी तरफ़ तेजस्वी यादव ने कहा कि उन्होंने तो पहले ही कहा था कि नीतीश कुमार पूरी तरह थक चुके हैं। भाकपा माले के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने चुटकी ली कि बिहार की जनता ने उनकी विदाई का मन पूरी तरह से बना लिया है। चिराग पासवान ने कहा कि उनकी इस घोषणा से जदयू में हड़कंप मच गया है। उसके कई नेता बेरोज़गार हो गये हैं और आगे भी वे बेरोज़गार ही रहेंगे।

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इस चरण में कांग्रेस के एक तिहाई से अधिक यानी 25 उम्मीदवार मैदान में हैं। आरजेडी के 46, भाकपा माले के पाँच और भाकपा के दो उम्मीदवार महागठबंधन की सीट बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। एनडीए की तरफ़ से जदयू 37, भाजपा 35 और वीआईपी-विकासशील इंसान पार्टी के पांच उम्मीदवार मैदान में हैं।

इस इलाक़े के लिए मज़दूरों का पलायन, बाढ़ और बेरोज़गारी बड़ी समस्याएँ हैं। इस बार मक्का के किसानों को काफ़ी नुक़सान उठाना पड़ा है और धान की फ़सल भी दो बार बर्बाद हो गयी है। कोरोना के कारण लगे लाॅकडाउन में इस इलाक़े के मजदूरों को काफ़ी समस्याओं का सामना करना पड़ा है।

चुनावी विश्लेषक इस बात पर चर्चा करते रहे हैं कि क्या उनका ग़ुस्सा वोट देने के दौरान बूथ तक पहुँचेगा या अंतिम समय में उनके खाते में आये रुपयों का लाभ एनडीए को मिलेगा।

राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि एनडीए ने इस चरण के लिए अपनी रणनीति बदली है। बीजेपी अपने भावनात्मक मुद्दों और तेजस्वी यादव पर प्रधानमंत्री के कटाक्ष- जंगलराज के युवराज से लाभ लेने की कोशिश में हैं लेकिन उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती जदयू का प्रदर्शन होगी। कई जगह ऐसा माना जा रहा है कि जदयू को बीजेपी के संगठनात्मक तंत्र का वह लाभ नहीं मिल रहा जो 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान मिला था।

 - Satya Hindi

चुनाव विश्लेषकों का मानना है कि पहले चरण में जहाँ महागठबंधन को बढ़त मिली हुई थी वहीं दूसरे चरण में एनडीए ने इस बात को भांपते हुए अपना समन्वय बेहतर करने की कोशिश की है। इस लिहाज से तीसरा चरण दोनों गठबंधनों के लिए महत्वपूर्ण हो गया है। इस चरण में कुछ-कुछ जगहों पर महागठबंधन के उम्मीदवारों को ओवैसी की पार्टी के उम्मीदवारों से वोट कटने का डर भी बना हुआ है।

महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव ने इस चुनाव में ढाई सौ सभाएँ की हैं जबकि पिछले चुनाव में 2015 में लालू प्रसाद ने सर्वाधिक 243 सभाएँ की थीं। महागठबंधन में रहते हुए नीतीश कुमार ने पिछली बार 230 सभाएँ की थीं लेकिन इस बार उनकी सभाओं की संख्या एक सौ से कुछ ही अधिक हो पायी।

तेजस्वी यादव और आरजेडी ने इस बार अपने पोस्टरों और सभाओं में लालू प्रसाद की चर्चा जानबूझकर नहीं होने दी। इसे उनकी इस कोशिश के रूप में देखा गया है कि तेजस्वी अपनी ख़ुद की शख्सियत बनाने में लगे हैं। यह समझा गया कि राजद को उम्मीद है कि इससे उसे लालू-राबड़ी काल के जंगलराज के ताने का सामना भी कम करना पड़ेगा।

कुल मिलाकर तीन चरणों के इस चुनाव में जो सवाल सबसे चर्चित रहा वह यह है कि क्या नीतीश कुमार सातवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले पाएँगे दूसरी तरफ़ तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बनते ही पहले दस्तखत से 10 लाख नौकरियों का तोहफा देने की बात कहकर युवाओं के बीच सबसे अधिक चर्चित हो गये।

वाल्मीकिनगर संसदीय उपचुनाव

वाल्मीकिनगर संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव के लिए मतदान हो रहा है। वैसे तो यहाँ सात प्रत्याशी मैदान में हैं लेकिन मुख्य मुक़ाबला दिवंगत सांसद वैद्यनाथ महतो के बेटे जदयू के सुनील कुमार और कांग्रेस के प्रवेश कुमार मिश्र के बीच है। यहाँ 17 लाख से अधिक मतदाता हैं। पिछली बार यहाँ लगभग 62 प्रतिशत मतदान हुआ था।

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