नेटफ्लिक्स की ‘बॉम्बे बेगम्स’ की स्ट्रीमिंग रोकने का निर्देश क्यों?
नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज़ बॉम्बे बेगम्स विवादों में फँस गई है। शिकायत पर बच्चों के अधिकार और संरक्षण के लिए काम करने वाली एजेंसी ने नोटिस जारी कर दिया। इस पर आरोप लगा है कि इस वेब सीरीज़ में बच्चों का ग़लत चित्रण किया गया है। इसी को कारण बताते हुए इसकी स्ट्रीमिंग को रोकने को कहा गया है। ऐसा नहीं होने पर क़ानूनी कार्रवाई करने की चेतावनी दी गई है। इससे सवाल उठता है कि क्या अब कला का हर प्रदर्शन पर नियंत्रण रहेगा? यदि निगरानी के दायरे में रहेगा तो किस हद तक और क्या शिकायत मिलते ही सीधे ऐसे प्रदर्शनों पर रोक लगाई जाएगी?
इससे पहले भी ओवर द टॉप यानी ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म पर वेब सीरीज़ों और फ़िल्मों पर रोक लगाने की माँग को लेकर विरोध किया जाता रहा है। दक्षिणपंथी संगठन कई कार्यक्रमों को हिंदू-विरोधी और भावनाएँ आहत करने वाला कहकर स्ट्रीमिंग को रोकने की माँग कर चुके हैं। सोशल मीडिया पर बायकॉट का अभियान भी चलाया जा चुका है। और कई मामलों में कंपनियों को झुकना पड़ा है।
ताज़ा मामला राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग यानी एनसीपीसीआर से जुड़ा है। इसने नेटफ्लिक्स को नोटिस जारी किया है कि यदि 24 घंटे में विस्तृत कार्रवाई के बारे में जानकारी नहीं दी गई तो क़ानूनी कार्रवाई शुरू करने को आयोग मजबूर होगा।
सीरीज़ में बच्चों के कथित ग़लत चित्रण पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए आयोग ने कहा कि ऐसी सामग्री 'युवा दिमाग को भ्रष्ट कर सकती है' और इससे बच्चों के साथ दुर्व्यवहार और शोषण भी हो सकता है।
हालाँकि आयोग ने एक शिकायत के आधार पर ही यह कार्रवाई की है जिसमें आरोप लगाया गया है कि सीरीज़ नाबालिगों की आकस्मिक यौन और मादक पदार्थों के सेवन में लिप्तता का सामान्यीकरण करती है।
बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए सबसे उच्च निकाय एनसीपीसीआर ने अपने नोटिस में कहा है, 'नेटफ्लिक्स को बच्चों के संबंध में या बच्चों के लिए कोई भी कार्यक्रम को स्ट्रीमिंग के वक़्त अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए।'
नोटिस में कहा गया है कि आदेश दिया जाता है कि तुरंत इस सीरीज की स्ट्रीमिंग रोक दी जाए और 24 घंटों के भीतर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए। नोटिस के अनुसार, 'अगर ऐसा नहीं होता है तो आयोग सीपीसीआर अधिनियम, 2005 की धारा 14 के प्रावधानों के तहत उचित कार्रवाई के लिए बाध्य होगा।'
बॉम्बे बेगम्स में 5 महिलाओं की कहानी
बता दें कि बॉम्बे बेगम्स में 5 महिलाओं की ज़िंदगी की कहानी है। सोशल मीडिया पर इस सीरीज को महिला सशक्तिकरण की कहानी दिखाने के तौर पर पेश किया जा रहा है। इस सीरीज का निर्देशन अलंकृता श्रीवास्तव ने किया है। सीरीज में पूजा भट्ट के साथ अमृता सुभाष, शाहाना गोस्वामी, आध्या आनंद और प्लाबिता बोरठाकुर हैं।
वैसे, यह पहली बार नहीं है कि ओटीटी की सीरीज़ पर आपत्ति जताई गई है और स्ट्रीमिंग को रोकने के लिए कहा गया है। इससे पहले 'तांडव' से भी भावनाएँ आहत हुई थीं। हिंदू की भावनाओं को ठेस पहुँचाने का आरोप लगा। शिकायत हिंदू देवी-देवताओं के अपमान करने की की गई। शिकायत करने वाले दक्षिणपंथी विचार वाली पार्टी बीजेपी के विधायक और सांसद थे। इस पर सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने अमेज़ॉन प्राइम से जवाब भी माँगा था और भारत में अमेज़ॉन प्राइम के अधिकारियों को तलब किया गया था।
इससे पहले नवंबर महीने में 'ए सूटेबल ब्वॉय' को लेकर ऐसी ही आपत्ति की गई थी। इस मामले में ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म नेटफ्लिक्स के ख़िलाफ़ मध्य प्रदेश के रिवा ज़िले में एफ़आईआर दर्ज कराई गई थी।
ख़ुद को संस्कृति के स्वयंभू रक्षक मानने वालों को आपत्ति उस दृश्य पर थी जिसमें एक लड़का और लड़की को मंदिर में किस करते दिखाया गया था।
ज्वैलरी ब्रांड तनिष्क के एक वीडियो विज्ञापन के मामले में भी यह ऐसा ही विवाद उठा था। बाद में कंपनी ने अपना विज्ञापन हटा लिया था।
ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म पर ऐसी कार्रवाई को यह कहकर जायज ठहराया जा रहा है कि ये बेलगाम घोड़े की तरह हैं जो कला के नाम पर दर्शकों को कुछ भी परोस रहे हैं। ख़ासकर अश्लीलता और नशे के दृश्यों को परोसने पर अक्सर आलोचना की जाती रही है। इस पर कहा जाता रहा है कि इनको नियंत्रित किए जाने की ज़रूरत है। इसके लिए एक नियामक संस्था बनाने की बात भी कही जाती रही है।
बता दें कि हाल ही में केंद्र सरकार ने नेटफ्लिक्स और एमेज़ॉन प्राइम वीडियो जैसी सामग्री देने वाले प्लेटफ़ॉर्म और ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल को जावड़ेकर के मंत्रालय के अधीन कर दिया है। पहले डिजिटल सामग्री को नियंत्रित करने वाला कोई क़ानून नहीं था। केंद्र सरकार ने यह कार्रवाई तब की जब सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए उससे उस पर प्रतिक्रिया माँगी थी जिसमें ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म को नियमित करने के लिए एक स्वतंत्र नियामक की बात कही गई थी।