सिद्धू ने छोड़ा मंत्री पद, कांग्रेस की मुसीबत और बढ़ी
आख़िरकार नवजोत सिंह सिद्धू ने पंजाब कैबिनेट से इस्तीफ़ा दे ही दिया। लंबे समय से ऐसा होने के कयास लगाए जा रहे थे क्योंकि मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह से उनकी खटपट सरेआम हो चली थी। हालाँकि सिद्धू ने इस्तीफ़े का जो पत्र राहुल गाँधी को लिखा है, उसमें 10 जून, 2019 की तारीख़ है। इससे यह तय है कि सिद्धू पहले ही इस्तीफ़ा दे चुके थे। बहरहाल, यह जानकारी आम होने से यह माना जा रहा है कि पंजाब में कांग्रेस के भीतर स्थितियाँ बेहद ख़राब हो चली हैं और नए पार्टी अध्यक्ष के लिए जूझ रही कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ गई हैं।
My letter to the Congress President Shri. Rahul Gandhi Ji, submitted on 10 June 2019. pic.twitter.com/WS3yYwmnPl
— Navjot Singh Sidhu (@sherryontopp) July 14, 2019
कैप्टन व सिद्धू के बीच लोकसभा चुनाव के दौरान ही तल्ख़ी बढ़ने लगी थी। चुनाव में पंजाब में कांग्रेस को कम सीटें मिलने का ठीकरा अमरिंदर सिंह ने सिद्धू के सिर फोड़ा था। बताया जाता है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह और उनके क़रीबी मंत्री सिद्धू से काफ़ी नाराज़ थे। अमरिंदर ने सिद्धू का विभाग भी बदल दिया था और उनके कामकाज पर नाख़ुशी जताई थी। सिद्धू को शहरी विकास मंत्रालय की जगह ऊर्जा मंत्रालय दिया गया था और यह माना गया था कि इससे सिद्धू का क़द घटा है।
पिछले महीने हुई कैबिनेट की बैठक में भी सिद्धू नहीं आए थे और प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर पार्टी नेतृत्व और कैप्टन अमरिंदर सिंह को एक तरह से चुनौती दी थी। सिद्धू पर लोकसभा चुनाव में बठिंडा और गुरदासपुर सहित चार सीटों पर हार के लिए दोष मढ़ा गया था। जबकि सिद्धू ने कहा कि मुख्यमंत्री ने उन्हें पंजाब में दो ज़िलों की ज़िम्मेदारी दी थी और कांग्रेस ने इन दोनों ज़िलों में बड़ी जीत हासिल की। सिद्धू ने टीवी चैनलों में दिए गए इंटरव्यू के माध्यम से भी कैप्टन अमरिंदर सिंह को चुनौती देने की कोशिश की थी।सिद्धू ने 9 जून को राहुल गाँधी से मुलाक़ात की थी और राहुल, पार्टी महासचिव प्रियंका गाँधी के साथ एक तसवीर भी सोशल मीडिया पर शेयर की थी।
कांग्रेस पहले से ही कर्नाटक और गोवा में विधायकों के पाला बदलने से ख़ासी परेशान है। पार्टी के भीतर हालात ठीक नहीं हैं और अब पंजाब में सिद्धू के इस्तीफ़े से उसका परेशान होना लाजिमी है। लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद 50 दिन गुजर चुके हैं और पार्टी उसका अध्यक्ष कौन होगा, यही तय नहीं कर पाई है। महाराष्ट्र में उसके नेता विपक्ष बीजेपी में शामिल हो चुके हैं तो राजस्थान में गहलोत और पायलट ख़ेमा खुलकर एक-दूसरे के ख़िलाफ़ ताल ठोक रहा है। ऐसे में पार्टी के सामने हालात बेहद ख़राब हैं और वह इससे निकलने की कोशिश करती भी नहीं दिख रही है।