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रिहाई के बाद राहुल से मिले सिद्धू; क्या पंजाब कांग्रेस में हलचल बढ़ेगी?

रिहाई के बाद राहुल से मिले सिद्धू; क्या पंजाब कांग्रेस में हलचल बढ़ेगी?

जेल में जाने से पहले पंजाब कांग्रेस की राजनीति में हलचल पैदा किए रहने नवजोत सिंह सिद्धू के राहुल गांधी और प्रियंका से मिलने के क्या मायने हैं? क्या पंजाब कांग्रेस में कुछ हलचल बढ़ने वाली है?

10 महीने बाद जेल से रिहा हुए नवजोत सिद्धू ने गुरुवार को दिल्ली में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा से मुलाक़ात की। उनसे मुलाक़ात के बाद नवजोत सिंह सिद्धू ने संकेत दिया कि वह पंजाब की राजनीति में पूरी सक्रियता दिखाने वाले हैं। उन्होंने कहा है कि पंजाब के लोगों के लिए काम करने के उनके संकल्प को कोई डिगा नहीं सकता है।

उन्होंने ट्वीट किया, 'मेरे मेंटर राहुल जी और मित्र, दार्शनिक, गाइड प्रियंका जी से आज नई दिल्ली में मुलाक़ात हुई। आप मुझे जेल में डाल सकते हैं, मुझे धमका सकते हैं, मेरे सभी वित्तीय खातों को ब्लॉक कर सकते हैं लेकिन पंजाब और मेरे नेताओं के लिए मेरी प्रतिबद्धता न तो झुकेगी और न ही एक इंच पीछे हटेगी!! मेर नेता न तो झुकेंगे और न ही एक इंच पीछे हटेंगे।'

सिद्धू के इस ट्वीट से यह संकेत मिलता है कि वह अब फिर से पंजाब कांग्रेस में सक्रिय होने वाले हैं। इससे एक कयास यह लगाया जाने लगा है कि क्या पंजाब कांग्रेस में एक बार फिर राजनीतिक संघर्ष देखने को मिलेगा? यह संदेह इसलिए भी जताया जा रहा है कि पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी कुछ दिन पहले विदेश के दौरे से वापस लौट आए हैं। राज्य में पिछले साल विधानसभा चुनाव से पहले भी गतिरोध बना था।

अभी भी तर्क दिया जाता है कि पंजाब कांग्रेस के बड़े नेताओं में मतभेद की वजह से ही 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार हुई थी। बता दें कि आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को हराकर प्रचंड बहुमत के साथ पंजाब में सरकार बनाई थी।

पंजाब चुनाव के नतीजे आने के कुछ समय बाद ही नवजोत सिंह सिद्धू को रोड रेज की घटना में दोषी ठहराया गया जिसमें 34 साल पहले एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। रोड रेज की घटना के सिलसिले में वह पंजाब के पटियाला में 10 महीने से जेल में थे। उन्हें एक साल की सजा दी गई थी और मई में रिहा होने की उम्मीद थी, लेकिन 'अच्छे व्यवहार' के कारण जल्दी रिहा कर दिया गया।

बहरहाल, सिद्धू जेल से बाहर आ गए हैं और कयास लगाए जा रहे हैं कि उन्हें पार्टी में बड़ी ज़िम्मेदारी मिल सकती है।

उनके जेल से रिहा होने से कुछ दिन पहले ही यह खबर भी आई थी कि कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने सिद्धू को जेल में एक चिट्ठी भेजी थी। इसके बाद से ही सिद्धू के जेल से निकलने के बाद उन्हें कांग्रेस में बड़ी जिम्मेदारी दिए जाने की चर्चाओं ने जोर पकड़ा था।

लेकिन ऐसी चर्चाओं से प्रदेश कांग्रेस के कई नेता असहज महसूस करने लगे थे। तो सीधा सवाल यही है कि क्या पंजाब कांग्रेस में एक बार फिर बड़े नेताओं के बीच टकराव देखने को मिल सकता है। ऐसे टकराव पहले भी देखने को मिले थे। 

नवजोत सिंह सिद्धू को कांग्रेस हाईकमान ने पंजाब में प्रदेश अध्यक्ष जैसे बड़े पद की जिम्मेदारी दी थी लेकिन सिद्धू तत्कालीन मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह से उलझते रहे और हालात यहाँ तक बिगड़े कि अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा और चरणजीत सिंह चन्नी को इस पद पर नियुक्त किया गया। इस बीच अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस छोड़कर अपनी नयी पार्टी बनाई और फिर बाद में वह बीजेपी में शामिल हो गए।

कांग्रेस नेतृत्व को उम्मीद थी कि नवजोत सिंह सिद्धू तत्कालीन नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के साथ मिलकर काम करेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ और सिद्धू ने मीडिया के सामने और चुनावी सभाओं में अपनी सरकार पर तमाम सवाल खड़े करने शुरू कर दिए थे। सिद्धू चाहते थे कि कांग्रेस पंजाब के विधानसभा चुनाव में उन्हें अपना चेहरा बनाए लेकिन पार्टी ने जब चरणजीत सिंह चन्नी के नाम पर मोहर लगाई तो इसे लेकर सिद्धू खासे नाराज दिखाई दिए।

विधानसभा चुनाव में चन्नी मुख्यमंत्री रहते हुए दोनों विधानसभा सीटों से हार गए थे और उसके बाद विदेश चले गए। लेकिन पिछले कुछ महीनों में पंजाब कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन के बाद राजनीतिक माहौल बदला है। पंजाब कांग्रेस की कमान अमरिंदर सिंह राजा वडिंग के हाथों में है जबकि नेता प्रतिपक्ष के पद पर प्रताप सिंह बाजवा बैठे हैं। 

चन्नी दलित समुदाय से आते हैं और पंजाब में इस समुदाय की आबादी 32 से 34 फीसद है। ऐसे में कांग्रेस हाईकमान इतने अहम वोट बैंक को छिटकने नहीं देना चाहेगा और चन्नी को कोई बड़ी जिम्मेदारी देगा।

जबकि अपनी अलग बोलचाल की शैली के लिए पहचाने जाने वाले नवजोत सिंह सिद्धू को भी पार्टी नेतृत्व पंजाब से बाहर के चुनाव में बतौर स्टार प्रचारक उतारता रहा है और 2024 के लोकसभा चुनावों में भी कांग्रेस नेतृत्व उनसे दूसरे राज्यों में चुनावी प्रचार करा सकता है। ऐसे में पार्टी नेतृत्व दोनों नेताओं के बीच कैसे तालमेल बिठाएगा, यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा।

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